UP News: 'यूपी तक' के खास शो 'आज का यूपी' में आज उत्तर प्रदेश की राजनीति के तीन बड़े घटनाक्रमों पर हम चर्चा करेंगे. सबसे पहले अखिलेश यादव के उस चौंकाने वाले बयान की चर्चा है जिसमें उन्होंने खुद को क्षत्रिय बताया है. इसके साथ ही बीजेपी द्वारा घोषित किए गए नए राष्ट्रीय और प्रदेश अध्यक्षों के चयन पर अखिलेश यादव ने पीडीए (PDA) के अपमान का मुद्दा उठाते हुए इसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को घेरने का जरिया बनाया है. वहीं,आगामी चुनावों के लिए अखिलेश यादव द्वारा शुरू की गई डे-काउंटडाउन राजनीति और क्षत्रिय समाज को टिकटों में तरजीह देने के वादे का मुद्दा भी चर्चा में है.
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हम भी क्षत्रिय हैं: अखिलेश यादव का नया सियासी अवतार
सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर पिछले कुछ समय से धनंजय सिंह जैसे नेताओं द्वारा क्षत्रिय विरोधी होने का आरोप लगाया जा रहा था. इन आरोपों का जवाब देते हुए अखिलेश यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दो-टूक कहा, क्या हम क्षत्रिय नहीं हैं? कौन तय करेगा कि कौन क्षत्रिय है और कौन नहीं? उनके इस बयान को दो नजरियों से देखा जा रहा है. पहला यादव समाज का सेना (अहीर रेजिमेंट की मांग) और समाज की सुरक्षा में योगदान जिसे वे क्षत्रिय धर्म से जोड़ रहे हैं. दूसरा वे खुद पर लगे अग्रड़ा विरोधी टैग को हटाकर क्षत्रिय वोटों में सेंधमारी करना चाहते हैं.
बीजेपी के नए अध्यक्षों पर 'योगी एंगल' और पीडीए का मुद्दा
बीजेपी ने हाल ही में अपने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष के नामों की घोषणा की है. अखिलेश यादव ने इस पर निशाना साधते हुए कहा कि सात बार के सांसद और पांच-छह बार के विधायक को अध्यक्ष बनाकर बीजेपी ने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का अपमान किया है. उन्होंने एक दिलचस्प एंगल देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री के गृह जनपद के पास से ही अध्यक्षों का चुनाव करना दरअसल 'अपनों को ही काटने' की रणनीति है. अखिलेश के मुताबिक, जिन्हें हटाया नहीं जा सका, उनका कद छोटा करने के लिए यह बिसात बिछाई गई है.
चुनावी बिगुल: 390 दिनों का काउंटडाउन और टिकटों का वादा
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए अब समय घट रहा है और अखिलेश यादव अपनी हर सभा में बचे हुए दिनों की गिनती (लगभग 390 दिन) कर रहे हैं. उन्होंने क्षत्रिय समाज को लुभाते हुए साफ किया कि सपा ने पहले भी सबसे ज्यादा क्षत्रिय मंत्री बनाए थे और आगामी चुनावों में भी उन्हें टिकटों में पूरी तरजीह दी जाएगी. अखिलेश अब केवल अपने कोर वोट बैंक तक सीमित न रहकर अच्छे अगड़ों को भी साथ लेने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.
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