वाराणसी: मुस्लिम महिला ने सपने में पाए भगवान शिव, फिर बदल गई पूरी जिंदगी

शिल्पी सेन

• 05:06 AM • 06 Jun 2022

कानपुर में हिंसा और देश भर में कई जगह मंदिर मस्जिद विवाद के बीच काशी से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है, जिसकी हर तरफ…

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कानपुर में हिंसा और देश भर में कई जगह मंदिर मस्जिद विवाद के बीच काशी से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है, जिसकी हर तरफ चर्चा हो रही है. काशी का हर वासी महादेव को ही अपनी प्रेरणा, मालिक और काशी का राजा मानता है. उन्हीं में से एक हैं नूर फातिमा. सपने में महादेव का मंदिर देख कर नूर फातिमा ने मंदिर बनवाना शुरू किया. उसके बाद ‘महादेव ने कदम-कदम पर नूर फातिमा का हाथ ऐसे थामा कि महादेव और उनकी भक्ति नूर फातिमा के जीवन का हिस्सा बन गए.’

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ऐसी मान्यता है कि काशी महादेव के त्रिशूल पर बसी एक ऐसी अद्भुत नगरी है, जो महादेव को पूजती ही नहीं, महादेव के यहां होने को महसूस करती है, जीती है. कहते हैं काशी के कण-कण में शंकर हैं. यहां हर उस व्यक्ति को महादेव थामे हुए हैं, जो उनकी शरण में आया है. नूर फातिमा भी उन्हीं में से एक हैं.

नूर फातिमा के दिनचर्या का जरूरी हिस्सा सुबह की नमाज भी है. वह तसबीह (माला) हाथ में लेकर दुआ पढ़ती हैं. मगर इसके बाद वह निकलती हैं, उस महादेव के दर पर जो उनकी प्रतीक्षा कर रहे होते हैं. नूर फातिमा शिवलिंग को स्नान कराती हैं, जल चढ़ाती हैं. भोग प्रसाद लगाती हैं, ध्यान लगाकर महामृत्युंजय मंत्र पढ़ती हैं.

‘कब शुरू हुआ महादेव की भक्ति का ये सिलसिला? इसके जवाब में वह कहती हैं,

“पति बनारस में नौकरी करते थे. जब भुज में भूकंप आया तो मन में ऐसे ही इच्छा हुई कि महादेव के त्रिशूल पर काशी बसी है, जिसका कभी विनाश नहीं होता, इसलिए काशी में ही घर बनवाया जाए. फिर हमने काशी में घर बनाया. उसके बाद पति का निधन हो गया.”

नूर फातिमा

पति के निधन के बाद नूर फातिमा डिप्रेशन में चली गई थीं. उनको सपने में मंदिर दिखने लगे. उन्होंने तीन महीने में शिव मंदिर बनवाने का संकल्प लिया. मंदिर के लिए उन्होंने लोगों से सहयोग मांगा. उनका समर्पण देखकर कई लोगों ने उनका साथ दिया. मंदिर बनवाने के लिए कई संतों से मिलीं. नूर फातिमा के मंदिर बनवाने की लगन को देखकर मोरारी बापू ने मंदिर के लिए 5001 रुपए दिए. फिर नूर फातिमा ने सिर्फ 3 महीने में मंदिर बनवा लिया. खुद मंदिर के लिए प्रतिमा खरीदी, हर काम न सिर्फ खुद किया बल्कि मंदिर में पूजा में यजमान बनकर पूजा करवाई.

इसके बाद तो महादेव से नाता ऐसे जुड़ा कि ये सिलसिला चलता ही गया. नूर फातिमा ने न सिर्फ पूजा शुरू कर दी, बल्कि सोमवार को व्रत भी रखने लगीं. अपनी बेटियों के जन्मदिन पर रुद्राभिषेक करवातीं हैं. इस बीच उनके रिश्तेदारों ने भी मान लिया कि महादेव की उनके जीवन में खास जगह है.

आज नूर फातिमा को वो सारे मंत्र याद हैं, जो किसी भी हिंदू को होंगे. वो रोज मंदिर आती हैं, पाठ करती हैं. पेशे से वकील नूर फातिमा की बेटियां भी उनके इस भाव को समझती हैं. वो महादेव से इतनी निकटता महसूस करती हैं कि शिवलिंग को जाड़े में गर्म पानी से नहलाती हैं. खुद AC में सोती हैं तो महादेव के लिए भी मंदिर में AC लगवाया है.

महादेव की भक्ति में डूबीं नूर फातिमा इस बीच कभी अपने मजहब के हिसाब से इबादत करना नहीं भूलीं. रोज़ाना नमाज़ भी पढ़ना वो नहीं भूलतीं. नूर फातिमा मुल्क के हालात पर कुछ नहीं कहतीं, बस यही कहती हैं कि मंदिर मस्जिद के झगड़े बेकार हैं. वो ईश्वर तो एक ही है.

आपको बता दें कि नूर फातिमा ने मंदिर के साथ भजन के लिए हॉल भी बनवाया है. वो चाहती हैं कि प्रदेश मुख्यमंत्री खुद धार्मिक व्यक्ति और महादेव के भक्त हैं, इसलिए वो इस हॉल का उद्घाटन कर लोगों को संदेश दें. काशी के लोगों ने भी नूर फातिमा के महादेव के प्रति समर्पण को सहज भाव से स्वीकारा है. कहते हैं जो महादेव की शरण में आया वो उनका हो गया, तो नूर फातिमा क्यों नहीं?

आज नूर फातिमा उन लोगों के लिए एक सबक हैं, जो धर्म के नाम पर नफरत को ही अपना हथियार मानते हैं. काशी वो जगह है, जहां गंगा घाट की सीढ़ियों पर कबीर ने ‘माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर’ जैसी कड़वी सच्चाई बताई थी. काशी में ही शास्त्रों का अध्ययन कर शाहजहां के बड़े बेटे और औरंगजेब के भाई दारा शिकोह ने ‘ईश्वर एक है’ के सार को समझा. आज उसी काशी में नूर फातिमा महादेव की शरण में जा कर लोगों को प्रेम और भक्ति का असली मतलब समझा रही हैं.

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