Moradabad News: उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है जिसने न सिर्फ परिवार वालों को बल्कि पूरे इलाके को हैरान कर दिया. यहां एक महिला ने अपने नवजात शिशु को केवल इसलिए फ्रिज में रख दिया क्योंकि वह लगातार रो रहा था. जब मामले की सच्चाई सामने आई, तो यह साफ हुआ कि महिला एक गंभीर मानसिक बीमारी, पोस्टपार्टम डिसऑर्डर से जूझ रही है. यह घटना एक बार फिर इस बात पर रोशनी डालती है कि डिलीवरी के बाद महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज कितना अनभिज्ञ है.
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फ्रिज में रखा नवजात
घटना मुरादाबाद के एक स्थानीय परिवार की है. घर में मौजूद दादी को बच्चे के रोने की धीमी आवाज सुनाई दी. जब उन्होंने आवाज और ध्यान से सुनी तो वह हैरान रह गईं. उन्होंने देखा कि नवजात शिशु फ्रिज के अंदर पड़ा था. इसके बाद दादी ने तुरंत बच्चे को बाहर निकाला. जब दादी ने बहू से पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया तो महिला ने सामान्य भाव से जवाब दिया, "बच्चा रो रहा था, इसलिए उसे फ्रिज में रख दिया."
परिजनों को पहले लगा कि महिला पर किसी ऊपरी ताकत का असर है. ये सोच के घर वालों ने महिला की झाड़-फूंक करवाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इसके बाद किसी परिचित ने उन्हें मानसिक रोग विशेषज्ञ से मिलने की सलाह दी.
डॉक्टर ने बताई मानसिक बीमारी
जब परिवार ने मनोचिकित्सक डॉक्टर से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि महिला पोस्टपार्टम डिसऑर्डर से पीड़ित है. डॉक्टर के अनुसार, डिलीवरी के बाद 5% महिलाओं को यह समस्या होती है. अगर इसे समय पर न पहचाना जाए तो यह पोस्टपार्टम डिप्रेशन और आगे चलकर पोस्टपार्टम साइकोसिस जैसी गंभीर मानसिक स्थितियों में बदल सकती है.
क्या होता है पोस्टपार्टम डिसऑर्डर?
पोस्टपार्टम डिसऑर्डर एक मानसिक स्वास्थ्य समस्या है जो आमतौर पर डिलीवरी के बाद नई माताओं को प्रभावित करती है. डिलीवरी के बाद महिला के शरीर में हार्मोनल बदलाव होते हैं जो मानसिक संतुलन को भी प्रभावित कर सकते हैं. इसके कारण कई महिलाएं अचानक बिना किसी स्पष्ट वजह के रोने लगती हैं, उदासी महसूस करती हैं और मानसिक रूप से अस्थिर हो जाती हैं.
इस स्थिति के प्रमुख लक्षणों में लगातार चिड़चिड़ापन, गुस्सा आना, नींद न आना और बच्चे के प्रति डर या दूरी महसूस करना शामिल है. कई बार पीड़ित महिला के मन में यह डर बैठ जाता है कि वह या कोई और उसके बच्चे को नुकसान पहुंचा सकता है. गंभीर मामलों में महिला को भ्रम और मानसिक भ्रम की स्थिति (साइकोसिस) भी हो सकती है, जिसमें वह वास्तविकता से कट जाती है. यह एक इलाज योग्य स्थिति है, लेकिन इसके लिए समय पर पहचान और उचित मनोवैज्ञानिक मदद जरूरी होती है. अगर समय रहते इसका इलाज न हो, तो यह समस्या महिला और बच्चे दोनों के लिए गंभीर खतरा बन सकती है.
मां के मानसिक स्वास्थ्य को न करें नजरअंदाज
यह मामला हमें याद दिलाता है कि डिलीवरी के बाद केवल महिला की शारीरिक सेहत ही नहीं, बल्कि मानसिक सेहत का ख्याल रखना भी बेहद जरूरी है.
परिवार के सदस्यों को चाहिए कि अगर नई मां के व्यवहार में बदलाव नजर आए तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. सही समय पर की गई चिकित्सकीय सहायता से इस समस्या का इलाज संभव है.
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