बाराबंकी सड़क हादसा: ट्रक और बस मालिक के खिलाफ केस दर्ज, बस का फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं था

यूपी के बाराबंकी में 7 अक्टूबर को हुए भीषण सड़क हादसे मामले में पुलिस ने ट्रक और बस मालिक के खिलाफ केस दर्ज कर लिया…

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यूपी के बाराबंकी में 7 अक्टूबर को हुए भीषण सड़क हादसे मामले में पुलिस ने ट्रक और बस मालिक के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है. आपको बता दें कि 7 अक्टूबर की सुबह दिल्ली से बहराइच जा रही एक बस और बालू लदे ट्रक में भिड़ंत हो गई. इस सड़क दुर्घटना में 15 लोगों की मौत हो गई, जबकि 11 घायल अभी भी अपनी जिंदगी की जंग अस्पताल में लड़ रहे हैं. जिले के देवा थाना क्षेत्र के किसान पथ, बबुरी गांव के आसपास यह हादसा हुआ.

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एआरटीओ पंकज सिंह ने बताया, “हादसे वाली बस का फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं था, 41 बार उस बस का चालान हो चुका था. बस में क्षमता से अधिक सवारी बैठे थे.”

बता दें कि जिले में बीते ढाई महीने के अंतराल में हुए दो बड़े बस हादसों में अब तक 33 लोगों की मौत हो गई है. इसके बाद भी परिवहन विभाग के अफसर बेखबर हैं. बिना फिटनेस सर्टिफिकेट व परमिट के बसें क्षमता से अधिक सवारियां लेकर फर्राटा भर रही हैं. हादसा होने के बाद सिर्फ चेकिंग की खानापूर्ति होती है. शासन स्तर से इन लापरवाह अफसरों पर कोई कार्रवाई न होने से यहां के हालत में सुधार नहीं हो पा रहा है.

जिले में ढाई महीने पहले हुए 28 जुलाई को हादसे के 15 दिन तक चली चेकिंग बंद हो गई. चालान की कार्रवाई भी ठप हो गई. नतीजा ये हुआ कि फिर एक और सड़क हादसा 7 अक्टूबर को हो गया.

28 जुलाई को रामसनेहीघाट में खड़ी बस में ट्रक की टक्कर से 18 लोगों की मौत हो गई थी. इस हादसे के बाद लग्जरी और डबल डेकर बस के लिए सम्भागीय परिवहन विभाग ने तीन टीमें बनाकर सैकड़ों वाहनों का चालान किया था. इसके अलावा 100 से अधिक बसों को अहमदपुर, मोहम्मदपुर चौकी में लाकर सीज किया गया था.

समय के साथ ही घटना पर पर्दा पड़ता गया और सम्भागीय परिवहन विभाग का अभियान भी थमता गया. नतीजा यह रहा कि दिल्ली, पंजाब और हरियाणा से आने वाली लग्जरी गाड़ियों की संख्या बढ़ती गई. अहमदपुर टोल प्लाजा से रोजाना करीब 1500 बसें गुजरती हैं. इसमें 500 से अधिक बसें प्राइवेट होती हैं. इसी प्रकार बहराइच मार्ग पर सहावपुर और सुल्तानपुर के हैदरगढ़ टोल प्लाजा से रोजाना 200 से 250 प्राइवेट लग्जरी और डबल डेकर बसें गुजरती हैं.

भले ही बस हादसों में लोग अपनी जान गवां रहे हों, पर परिवहन विभाग के अफसरों को इससे कोई मतलब नहीं है. हादसे के बाद खुद की गर्दन बचाने के लिए अफसर शासन को ऐसी रिपोर्ट भेजते हैं कि जिससे लगे कि विभाग बहुत काम कर रहा है. इसी का नतीजा है कि शासन भी ऐसे अफसरों पर कार्रवाई नहीं करता है. जिले में दो बस हादसों में 33 लोगों की मौत के बाद भी किसी भी अधिकारी के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है.

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