बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की करारी हार का असर सिर्फ राजनीतिक ही नहीं, बल्कि आरजेडी और लालू यादव के परिवार पर भी दिखना शुरू हो गया है. चुनाव नतीजों ने महागठबंधन के अंदर ब्लेमगेम और विवाद को जन्म दिया है और लालू परिवार में तनाव की लकीरें गहरी होती नजर आ रही हैं.
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लालू परिवार में कलह कोई नई बात नहीं है. इससे पहले ही उनके बड़े बेटे तेजप्रताप यादव ने अपनी अलग पार्टी बना ली थी. लेकिन इस बार के चुनाव परिणामों के बाद परिवार और पार्टी दोनों में ही विवाद और आरोप-प्रत्यारोप की स्थिति बन गई है.
रोहिणी आचार्य की पोस्ट
लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने सोशल मीडिया पर एक सनसनीखेज पोस्ट करके विवाद बढ़ा दिया है. उन्होंने लिखा कि "मैं राजनीति छोड़ रही हूं. साथ ही अपने परिवार से नाता तोड़ रही हूं. मुझे संजय यादव और रमीज ने जो कुछ करने के लिए कहा, मैं वही कर रही हूं. मैं सभी दोष अपने ऊपर ले रही हूं." इस पोस्ट में रोहिणी ने दो नाम लिए हैं, संजय यादव और रमीज और आरोप लगाया कि इन्हीं दोनों ने उन्हें यह कदम उठाने के लिए प्रेरित किया.
कौन है रमीज
रमीज का राजनीतिक और सामाजिक कनेक्शन बिहार से पहले उत्तर प्रदेश से है. वे यूपी के बलरामपुर के पूर्व सांसद रिजवान जहीर के दामाद हैं. रमीज पर हत्या समेत कई मामले दर्ज हैं और वे जमानत पर हैं. पार्टी में रमीज सोशल मीडिया और चुनाव प्रबंधन के मामलों में सक्रिय हैं. उनकी पत्नी तुलसीपुर विधानसभा सीट से 2017 और 2022 में चुनाव लड़ चुकी हैं लेकिन दोनों बार हार का सामना करना पड़ा.
संजय यादव की भूमिका
संजय यादव ने 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. वे तेजस्वी यादव के मुख्य सलाहकार हैं और पार्टी में उनके दखल को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. चुनाव के दौरान वे हर रैली, यात्रा और पार्टी के बड़े कार्यक्रमों में तेजस्वी के साथ दिखाई दिए.
संजय यादव मूल रूप से हरियाणा के महेंद्रगढ़ के रहने वाले हैं. पार्टी में तेजस्वी के बाद उन्हें दूसरे नंबर का महत्व माना जाता है. हार के बाद अब संजय यादव की भूमिका और रणनीतियों को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है.
पार्टी और परिवार में उभरी कलह
चुनाव में मिली हार के बाद आरजेडी के अंदर असंतोष और दोषारोपण की स्थिति बनी है. परिवार में भी तनाव और विवाद उभरने लगे हैं. तेजस्वी यादव अब यह सोच रहे होंगे कि आखिर इतनी कम सीटें क्यों मिलीं और हर सदस्य की भूमिका पर सवाल उठना स्वाभाविक है. इस हार के बाद आरजेडी में आने वाले समय में भीतरी कलह और रणनीतिक पुनर्गठन पर नजर रखी जाएगी.
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