उत्तर प्रदेश सरकार ने जातिगत भेदभाव के खिलाफ बड़ी पहल करते हुए पुलिस और अन्य सरकारी दस्तावेजों में आरोपियों या किसी व्यक्ति की जाति लिखने पर रोक लगाने के सख्त निर्देश जारी किए हैं. इसे लेकर सरकार के मुख्य सचिव की तरफ से निर्देश जारी कर दिए गए हैं. आपको बता दें कि यूपी में ये बदलाव इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले की पृष्ठभूमि में आया है. आइए आपको विस्तार से इसकी जानकारी देते हैं.
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पुलिस एफआईआर, अरेस्ट मेमो, और सरकारी रिकार्ड में ‘जाति’ का उल्लेख नहीं
मुख्य सचिव ने निर्देशों के मुताबिक:
- एफआईआर, गिरफ्तारी मेमो, अपराध विवरण फॉर्म, कोर्ट सरेंडर मेमो और पुलिस अंतिम रिपोर्ट सहित सभी पुलिस दस्तावेजों में अब किसी व्यक्ति की जाति नहीं लिखी जाएगी.
- पुलिस रिकॉर्ड्स, सार्वजनिक स्थलों, थानों के नोटिस बोर्ड, वाहनों और साइनबोर्ड्स पर भी जातीय संकेत, नारे या कॉलम हटाए जाएंगे.
- पुलिस रिकार्डिंग सिस्टम (NCRB के CCTNS) में जाति संबंधी कॉलम अब खाली छोड़ा जाएगा, और पुलिस विभाग को यह कॉलम हटाने की प्रक्रिया NCRB को पत्राचार के माध्यम से शुरू करने का निर्देश मिला है.
- अब आरोपी या संबंधित व्यक्ति की पहचान के लिए पिता के नाम के साथ-साथ मां का नाम भी दस्तावेजों में अनिवार्य रूप से लिखा जाएगा.
- राज्य में जाति आधारित रैलियों पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा और सोशल मीडिया पर भी ऐसी गतिविधियों की सख्त निगरानी की जाएगी.
- अपवाद: SC/ST एक्ट संबंधी मामलों में ही कानूनी आवश्यकता के अनुसार जाति का उल्लेख किया जाएगा.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में दिया था ये निर्देश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शराब तस्करी के एक मामले में एफआईआर और जब्ती मेमो में अभियुक्तों की जाति लिखे जाने पर गंभीर आपत्ति जताई थी. न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने कहा कि पुलिस के दस्तावेजों में जाति का उल्लेख न केवल संदिग्ध पहचान और प्रोफाइलिंग को बढ़ावा देता है, बल्कि संविधान की नैतिकता को भी कमजोर करता है.
कोर्ट ने इसे भारत के संवैधानिक लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बताया और राज्य सरकार को यह प्रथा तत्काल समाप्त करने को कहा. निर्णय में निर्देश दिया गया कि सभी पुलिस दस्तावेजों और रिकार्ड्स से जाति एवं जनजाति संबंधी कॉलम और एंट्री तुरंत हटाई जाएं, साथ ही माता का नाम भी अनिवार्य तौर पर रिकॉर्ड किया जाए.
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