कृत्रिम बारिश: 20000/ स्क्वॉयर किलोमीटर... IIT कानपुर के डायरेक्टर से जानिए क्लाउड सीडिंग पर आ रहा कितना खर्च

प्रदूषण नियंत्रण के लिए दिल्ली सरकार ने IIT-कानपुर के साथ मिलकर मंगलवार को क्लाउड सीडिंग का पहला प्रयोग किया. लेकिन क्लाउड सीडिंग का पहला प्रयास सफल नहीं हो सका. क्लाउड सीडिंग की इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 60 लाख का खर्च आया है.

दिल्ली में कृत्रि‍म बारिश के लिए किया गया क्लाउड सीडिंग का ट्रायल. (Photo: AI-generated)

सिमर चावला

29 Oct 2025 (अपडेटेड: 29 Oct 2025, 10:48 AM)

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प्रदूषण नियंत्रण के लिए दिल्ली सरकार ने IIT-कानपुर के साथ मिलकर मंगलवार को क्लाउड सीडिंग का पहला प्रयोग किया. लेकिन क्लाउड सीडिंग का पहला प्रयास सफल नहीं हो सका. हालांकि आईआईटी कानपुर के निदेशक मनिंद्र अग्रवाल ने कहा कि इस पायलट प्रोजेक्ट से जरुरी डेटा जुटाया गया है जिससे आने वाले समय में कृत्रिम बारिश के प्रयासों को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकेगा.बता दें कि दिल्ली मंत्रिमंडल ने क्लाउड सीडिंग के लिए इस साल मई में 3.21 करोड़ रुपये की कुल लागत से ऐसे पांच परीक्षणों को मंजूरी दी थी. मंगलवाार को हुई क्लाउड सीडिंग की इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 60 लाख का खर्च आया है जो 20,000 रुपये प्रति वर्ग किलोमीटर है.

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दिल्ली सरकार ने शहर की जहरीली हवा को नियंत्रित करने और बारिश लाने के लिए आईआईटी कानपुर के साथ मिलकर अपनी तरह का यह पहला परीक्षण किया था. सीडिंग उड़ानों ने बुराड़ी, उत्तरी करोल बाग, मयूर विहार और बादली जैसे प्रमुख इलाकों को कवर किया. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने बताया कि क्लाउड सीडिंग के लिए ह्यूमिडिटी लेवल की कमी थी. क्योंकि दिल्ली में आर्द्रता का स्तर सिर्फ 10-15 प्रतिशत रहा जिसकी वजह से बारिश नहीं की जा सकी.

अग्रवाल ने बताया कि इसके बावजूद भी इस प्रयोग से प्रदूषण के स्तर को कम करने में मदद मिली.उन्होंने बताया कि पहली सीडिंग के बाद पहली सीडिंग के बाद PM2.5 में 6–10% और PM10 में 14–21% की कमी दर्ज की गई. वहीं दूसरी सीडिंग के बाद PM2.5 में 1–4%, PM10 में 14–15% की कमी दर्ज की गई. 

क्लाउड सीडिंग को लेकर बहस

वादे के मुताबिक बारिश न होने पर विपक्षी दलों ने क्लाउड सीडिंग के इस प्रयास पर निशाना साधा. आम आदमी पार्टी ने इस प्रयास का मजाक उड़ाते हुए इसे भगवान इंद्र का श्रेय चुराने की कोशिश बताया और खर्च किए गए धन पर सवाल उठाए. इसका जवाब देते हुए निदेशक अग्रवाल ने कहा कि सरकार के लिए लागत कोई मुद्दा नहीं होना चाहिए. उन्होंने बताया कि 'आज की प्रक्रिया की लागत लगभग 60 लाख रुपये थी जो 20,000 रुपये प्रति वर्ग किलोमीटर है. पूरे सीजन (चार महीने) का खर्च लगभग 20-30 करोड़ रुपये होगा जो प्रदूषण नियंत्रण के लिए दिल्ली सरकार के कुल बजट से लगभग 100 गुना कम है.'

अग्रवाल ने यह भी कहा कि कृत्रिम बारिश कोई स्थायी समाधान नहीं है और मूल समस्या पर काम करने की आवश्यकता है. उन्होंने जानकारी दी कि बुधवार को दो और परीक्षण किए जाने की योजना है जिसमें नमी का स्तर अधिक होने की संभावना है जिससे बेहतर परिणाम की उम्मीद है.

कब सफल होती है यह प्रक्रिया

नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंस, यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग (यूके) के रिसर्च साइंटिस्ट डॉ. अक्षय देओरास के अनुसार, क्लाउड सीडिंग तीन प्रकार के बादलों में की जा सकती है. पहला जब जमीन के पास के गर्म बादल हों. दूसरा जब गहराई वाले बादल जो तूफानी बादलों में बदल सकते हैं और तीसरा ऊंचाई पर ठंडे बादल मौजूद हों. लेकिन यह तभी असरदार होती है जब वायुमंडल में पर्याप्त नमी और बादलों में ऊर्ध्वाधर विकास (vertical development) हो.  डॉक्टर देओरास के मुताबिक आदर्श स्थिति तब होती है जब वातावरण में भरपूर नमी हो और बादल स्वाभाविक रूप से बारिश के लिए विकसित हो रहे हों. जैसे मानसून के बाद पश्चिमी विक्षोभ के दौरान दिल्ली-एनसीआर में होता है.

क्या है क्लाउड सीडिंग की तकनीक?

क्लाउड सीडिंग आर्टिफिशियल बारिश कराने की एक वैज्ञानिक तकनीक है. इसमें विमान के जरिए बादलों के ऊपर सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड जैसे रसायनों का छिड़काव किया जाता है. ये रसायन बादलों में मौजूद नमी को भारी पानी की बूंदों में बदल देते हैं, जो बारिश के रूप में जमीन पर गिरती हैं. इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए रक्षा, गृह और पर्यावरण मंत्रालय समेत 10 से ज्यादा विभागों से मंजूरी ली गई है. अगर यह तकनीक दिल्ली में कारगर साबित होती है, तो यह प्रदूषण से जूझ रहे दूसरे शहरों के लिए भी एक उम्मीद बन सकती है.

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