52 सालों का राजनीतिक करियर, 8 बार MLA, 7 बार MP, एक बार MLC भी, कहानी मुलायम सिंह यादव की

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उत्तर प्रदेश समेत देशभर में समाजवादी पार्टी को फर्श से अर्श पर पहुंचाने वाले पार्टी के वर्तमान संरक्षक मुलायम सिंह यादव सोमवार चिर निंद्रा में चले गए. अब रह गईं है तो उनकी यादें और बच्चों के गुरुजी से राजनैतिक गुरु तक के सफर की कही अनकही बातें.

मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर 1939 को सैफई में मूर्ती देवी और सुघर सिंह यादव के परिवार में हुआ था. नेता जी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह यादव ने 1960 के दशक में ही यूपी की राजनीति में एंट्री ली थी. एक आम शिक्षक से देश की सर्वाधिक चर्चित राजनीतियों में शुमार होने वाले मुलायम सिंह यादव की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है.

उनके जीवन में राजनीति के हर रंग हैं. साथ का, प्यार का, घात का, प्रतिघात का. सत्ता के लिए महाभारत लोगों ने किताबों में पढ़ी होगी, मुलायम सिंह यादव को अपने घर में जीते-जी यह महाभरत देखनी पड़ी. राजनीतिक साजिशें हुईं, गोली से हमले का शिकार हुए, लेकिन पहलवान मुलामय सिंह हर बार विरोधियों को चित कर राजनीति में फिर उठ खड़े हुए.

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1967 में पहली बार विधायक बने, 3 बार रहे सीएम

मुलायम सिंह यादव तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे. 1989 से 1991, 1993 से 1995 और 2003 से 2007. उन्होंने 1996 से 1998 तक देश के रक्षामंत्री का भी पद संभाला. मुलायम सिंह यादव 1967 में पहली बार विधायक बने फिर लगातार आठ बार विधायक का चुनाव जीता. आपातकाल के दौरान समाजवादी राजनीति और इंदिरा सरकार की मुखालफत को लेकर गिरफ्तार हुए और 19 महीने जेल में रहे. मुलायम सिंह यादव ने 1982 से 1985 तक यूपी में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका अदा की थी. आज यूपी विधानसभा में इस पद पर उनके बेटे अखिलेश यादव हैं. आइए आपको समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की कहानी बताते हैं.

जानिए सपा की कहानी

समाजवादी पार्टी की स्थापना 4 अक्टूबर 1992 को मुलायम सिंह यादव ने की थी. ऐसे में पार्टी की नींव पड़ने का इतिहास भी काफी हद तक मुलायम के राजनीतिक सफर के इर्द-गिर्द ही है. उत्तर प्रदेश के इटावा में जन्मे मुलायम अपनी युवा अवस्था में राम मनोहर लोहिया के समाजवादी आंदोलन से काफी प्रभावित हुए थे. कुश्ती के शौकीन और अध्यापक रहे मुलायम की चुनावी अखाड़े में एंट्री कराने में उनके राजनीतिक गुरु नत्थू सिंह का बड़ा हाथ माना जाता है.

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नत्थू सिंह ने 1967 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुलायम को जसवंतनगर सीट से उतारने पर जोर दिया था. उस दौरान नत्थू सिंह ने लोहिया से कहा था कि वे उनकी पार्टी को एक नौजवान और जुझारू नेता दे रहे हैं. नत्थू सिंह के जोर देने के बाद मुलायम को उस साल जसवंतनगर सीट से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया. मुलायम ने अपने राजनीतिक गुरु की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए इस चुनाव में जीत हासिल की और वह 28 साल की उम्र में राज्य के सबसे कम उम्र के विधायक बने.

जनता दल में हुए शामिल

हालांकि, मुलायम जिस समाजवादी मुहिम से जुड़े थे, उसे तब एक बड़ा झटका लगा, जब 12 नवंबर 1967 को लोहिया का निधन हो गया. लोहिया के निधन के बाद संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी कमजोर पड़ने लगी. 1969 के विधानसभा चुनाव में मुलायम भी हार गए. इसी बीच, चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय लोकदल मजबूत होने लगी थी. ऐसे में मुलायम भी इसी पार्टी में शामिल हो गए. इसके बाद समय के साथ मुलायम का सफर जनता दल तक पहुंच गया.

पहली बार ऐसे बने यूपी के सीएम

साल 1989 में जब जनता दल उत्तर प्रदेश की सत्ता में आया तो मुलायम को मुख्यमंत्री बनाया गया. बीजेपी इस सरकार को बाहर से समर्थन दे रही थी, जिसने कुछ ही वक्त में अपना समर्थन वापस भी ले लिया. सियासी उठापटक के बीच, 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की अगुवाई वाली जनता दल की सरकार गिर गई.

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प्रधानमंत्री के तौर पर वीपी सिंह के इस्तीफे के बाद, केंद्र में कांग्रेस की मदद से चंद्रशेखर की अगुवाई वाली सरकार बनी, जो जनता दल से अलग हो गए. वहीं यूपी में, कांग्रेस ने चंद्रशेखर के गुट में शामिल मुलायम की अगुवाई वाली सरकार को बाहरी समर्थन से समर्थन दिया. हालांकि, 1991 में कांग्रेस के समर्थन वापस लेने के बाद ये दोनों सरकारें गिर गईं.

इस दौरान भले ही बतौर मुख्यमंत्री मुलायम का कार्यकाल छोटा रहा, लेकिन वह उत्तर प्रदेश की सियासत का बड़ा चेहरा बन चुके थे. बीजेपी जब राम मंदिर के लिए मुहिम पर जोर दे रही थी, उस दौरान मुलायम मुस्लिमों के प्रति नरम रुख नेता के तौर पर उभरे. आखिरकार मुलायम ने 1992 में खुद की पार्टी (एसपी) बना ली. बाद में मुलायम सिंह यादव ने 1992 में सपा का गठन किया. बीएसपी के साथ गठबंधन कर 1993 का चुनाव जीता. 1995 में बीएसपी ने समर्थन वापस ले लिया. गेस्ट हाउस कांड हुआ. 2003 में मुलायम ने फिर यूपी का चुनाव जीता और सीएम बने.

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