कृषि कानूनों की वापसी से यूपी चुनाव में BJP को मिलेगी जीत या PM ने किया सेल्फ गोल? जानें

कुमार अभिषेक

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शुक्रवार, 19 नवंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने माफी मांगने के साथ ही तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया. सियासी जानकारों के मुताबिक बीजेपी के लिए चुनावी दृष्टि से पंजाब से कहीं ज्यादा सिरदर्दी उत्तर प्रदेश की थी, क्योंकि यहां पार्टी का काफी कुछ दांव पर लगा है. ऐसे में यूपी चुनाव के ऐलान के पहले मोदी सरकार का यह फैसला एक बड़े चुनावी फैसले की तरह देखा जा रहा है. दरअसल बीजेपी को लगता है अब वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों और खासकर जाटों की नाराजगी को कम कर सकेगी जिससे उन्हें चुनावी फायदा मिलेगा.

पीएम की तरफ से कानून वापसी का फैसला सामने आने के बाद से किसानों में खुशी की लहर है. पटाखे फूट रहे हैं और किसानों के बीच मिठाइयां बंट रही है. हालांकि विपक्ष हमलावर जरूर , लेकिन उसके हाथ से अब यह मुद्दा निकल सकता है. यही वजह है कि अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री के ऐलान के बाद एक नया नारा दिया कि “साफ नहीं है इनका दिल, चुनाव के बाद फिर लाएंगे यह बिल”.

चुनाव से पहले का सबसे बड़ा फैसला?

दरअसल 2022 के चुनाव के पहले उत्तर प्रदेश के लिए इससे बड़ा कोई फैसला नहीं हो सकता था, क्योंकि पश्चिम में किसानों और जाटों की नाराजगी के अलावा यह आंदोलन तराई में फैल चुका है. लखीमपुर खीरी में किसानों को कुचलकर मारने के मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे पर आरोप लगे हैं. इस मामले के बाद पूरे उत्तर प्रदेश में किसानों के बीच नाराजगी की बातें सामने आ रही थीं. चुनावी रण में ये मामला बीजेपी के लिए असहज करने वाली स्थिति में बना हुआ है.

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बीजेपी अब खुलकर चुनावी पिच पर खेलेगी!

नए कृषि कानूनों की वापसी के फैसले ने बीजेपी के भीतर एक नया जोश भरा है. अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी फ्रंट फुट पर खेलने की तैयारी में है. यहां उसके नेता, कार्यकर्ता जाट बहुल गांव में घुसने से डर रहे थे, अब पार्टी नए जोश के साथ पश्चिमी यूपी में जाटों को साधने की कोशिश में जुटे जाएगी. प्रधानमंत्री ने तीनों कानूनों को वापस लिया उसके पहले अमित शाह को पश्चिम का प्रभारी बनाया गया है. ऐसे में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनाव का समीकरण कैसा रहेगा, ये देखना रोचक होगा.

क्या कहते हैं बीजेपी और समाजवादी पार्टी के जाट नेता

बीजेपी के जाट चेहरे और योगी सरकार में मंत्री भूपेंद्र चौधरी कहते हैं कि “जाटों का एक बड़ा तबका पहले से ही बीजेपी के साथ था. कृषि कानूनों के बावजूद हम जाट बिरादरी को समझाने में सफल थे लेकिन प्रधानमंत्री के इस फैसले के बाद अब बची-खुची नाराजगी भी खत्म होगी और 2019 की तरह वापस जाट बीजेपी से जुड़ेंगे.’ हालांकि समाजवादी पार्टी के जाट चेहरे संजय लाठर का मानना है कि ‘प्रधानमंत्री ने तीनों कानूनों को वापस लेकर सेल्फ गोल कर लिया है. जाट और किसान अपमान और तकलीफों को नहीं भूलेंगे बल्कि इसका बदला लेंगे.’

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बहरहाल अब चौक चौराहों पर इस बात की चर्चा शुरू हो चुकी है कि आखिर इन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का कितना सियासी असर उत्तर प्रदेश के चुनाव पर होगा. बीजेपी को लगता है कि प्रधानमंत्री ने जिस तरीके से संवेदनशीलता जताते हुए माफी मांगी है और जिस तरीके से यह किसानों और जाटों की जीत के तौर पर सामने आया है आने वाले वक्त में बीजेपी अपने खिलाफ गुस्से को कम करने में सफल होगी.

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