UP चुनाव 2022: अखिलेश या योगी, प्रियंका गांधी की सक्रियता से किसे होगा नुकसान? यहां जानिए

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 कौन जीत रहा है? यह वो सवाल है जो आज सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के हर राजनीति प्रेमी को मथ रहा है. हालांकि इसका जवाब देना अभी इतना आसान नहीं पर इसके साथ चल रही साइड स्टोरी पर नज़र डालें तो तस्वीर कुछ हद तक साफ हो सकती है. यूपी की राजनीति की एक ऐसी ही कहानी फिलहाल प्रियंका गांधी के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है.

चाहे लखीमपुर खीरी की हिंसा हो या अभी आगरा में सफाई कर्मी की कस्टोडियल डेथ का मामला, विपक्ष की सियासत में प्रियंका फ्रंट से लीड करती दिखाई दीं. सबसे पहले पीड़ितों से मिलने की कवायद में वह विपक्ष के अपने ‘समकक्ष’ अखिलेश यादव और मायावती से आगे नज़र आईं. प्रियंका ने यूपी में डोमिनेटिंग कास्ट पॉलिटिक्स के आगे जेंडर पॉलिटिक्स का दांव भी चला है. उन्होंने महिलाओं को टिकट बंटवारे में 40 फीसदी आरक्षण और स्कूल-कॉलेज की लड़कियों को स्मार्टफोन व स्कूटी देने का वादा कयास है. यूपी के आज के सबसे महत्वपूर्ण दो चुनावी सवाल यहीं से खड़े होते हैं.

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1- क्या प्रियंका की यह कवायद यूपी में 1989 के बाद से अपने वजूद को तलाश कर रही कांग्रेस को संजीवनी देने में कामयाब हो पाएगी?

2- यूपी में प्रियंका और कांग्रेस की मजबूती का खामियाजा सबसे अधिक किसे उठाना पड़ेगा? अखिलेश (समाजवादी पार्टी) को या योगी आदित्यनाथ (बीजेपी) को?

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इसको लेकर अलग-अलग तरह की राय सामने आ रही है. एक पक्ष है जो यह मान कर चल रहा है कि कांग्रेस अगर बढ़ती है तो खामियाजा अखिलेश को उठाना होगा. वहीं दूसरा पक्ष है जो यह कह रहा है कि कांग्रेस की मजबूती उत्तर प्रदेश में त्रिकोणीय मुक़ाबले की राह प्रशस्त करेगी, जिसका नुकसान BJP को होगा, एसपी को नहीं.

यूपी तक ने देश के जाने माने चुनाव विश्लेषकों से इस संबंध में बात कर इन दोनों सवाल के जवाब जानने चाहे.

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कांग्रेस के बढ़ने से सबसे पहली समस्या एसपी को होगी: यशवंत देशमुख

हमने सी वोटर के संस्थापक और मशहूर चुनाव विश्लेषक यशवंत देशमुख से बात की. उन्होंने महिलाओं को टिकट बंटवारे में आरक्षण जैसी कवायदों पर कहा कि ‘सबसे पहले तो प्रियंका का स्वागत होना चाहिए कि कम से कम वह पार्टी में जान फूंकने की कोशिश तो कर रही हैं. प्रियंका को उन जगहों पर भी ऐसा निर्णय लेना चाहिए जहां उनकी पार्टी की सरकार है या वो मजबूत स्थिति में हैं.’

यशवंत देशमुख ने हमें बताया, ’50-60 सालों से कांग्रेस के मौलिक वोट तीन रहे हैं, ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम. ऐसे में अगर कांग्रेस मजबूत होती है निश्चित तौर पर वह तीनों (SP, बीजेपी और BSP) को कुछ न कुछ नुकसान पहुंचाएगी.’

तो किसे होगा ज्यादा नुकसान: यशवंत देशमुख कहते हैं कि, ‘इधर लगातार BJP से ब्राह्मणों की नाराजगी की बात कही जा रही है. इसके बावजूद तमाम वोट ट्रैकर्स यूपी में BJP को 40-42 फीसदी वोट पाते दिखा रहे हैं. ऐसे में अगर ब्राह्मण उसे वोट नहीं भी करता या कांग्रेस को कर देता है, तो भी BJP को कोई खास नुकसान होता नजर नहीं आ रहा.’ वह आगे कहते हैं कि…

BSP के पास अब सिर्फ कोर जाटव वोट ही नज़र आ रहा है. ऐसे में कांग्रेस ब्राह्मण और मुस्लिम वोट पर ही असर डालती नजर आ रही है.यह भी इस बात पर डिपेंड करेगा कि कांग्रेस बड़ी तादाद में किसे टिकट देती है. अगर वे मुस्लिम हुए तो SP को ज्यादा नुकसान होगा.

यशवंत देशमुख

यशवंत देशमुख को क्यों याद आया त्रिपुरा चुनाव का उदाहरण?

प्रियंका गांधी की सक्रियता क्या यूपी में कांग्रेस की दशा बदल पाएगी? क्या चुनाव से पहले अब इतना वक़्त बचा है कि प्रियंका की राजनीति कांग्रेस के लिए मौसम बदलने वाली साबित हो जाए? यशवंत देशमुख किसी संभावना को खारिज नहीं करते बल्कि त्रिपुरा चुनाव का उदाहरण देते हैं, जहां कम वक्त में BJP ने पूरा माहौल ही बदल दिया. हालांकि वह यूपी में ऐसा हो पाने की ‘नगण्य संभावनाओं’ के तकनीकी पक्ष को भी एक्सप्लेन करते हैं. वह कहते हैं,

यूपी में सिचुएशन बदल सकती है अगर BJP के वोट कम हों. ट्रैकर्स के हिसाब से BJP जब 40 फीसदी से नीचे आ ही नहीं रही है, या एसपी 40 फीसदी के पास जाते भी नहीं दिख रही, तो तस्वीर बदलने की गुंजाइश बहुत कम है.

यशवंत देशमुख

अंत में यशवंत कहते हैं कि लब्बोलुआब यह है कि कांग्रेस की बढ़त SP को ज्यादा प्रभावित करेगी. उनके मुताबिक, ‘उत्तर प्रदेश में BJP के साथ नॉन यादव ओबीसी, नॉन जाटव दलित और अपर कास्ट को वोट इंटैक्ट नजर आ रहा है. अगर ब्राह्मण वोट कम भी होता है तो BJP पर कोई खास असर पड़ता नहीं दिख रहा.’

अमिताभ तिवारी की इन दो रिजनिंग से जानिए प्रियंका गांधी किसपर डालेंगी असर

हमने यूपी से जुड़े इस सियासी सवाल के बारे में जाने माने चुनावी विश्लेषक और ‘वाररूम स्ट्रेटेजीज’ के सीनियर एडवाइजर अमिताभ तिवारी से भी बात की. उन्होंने भी महिला वोटर्स पर फोकस करने की प्रियंका गांधी की कवायद की तारीफ की. उन्होंने कहा कि यह यूपी की कास्ट बेस्ड पॉलिटिक्स के सामने जेंडर पॉलिटिक्स का अल्टरनेटिव पेश करने की कवायद है और इसका सिर्फ फायदा ही है, नुकसान कोई नहीं.

वह इसे आगे एक्सप्लेन करते हुए बताते हैं कि ‘लगातार महिला वोटर्स का महत्व बढ़ता जा रहा है. जो सरकारें जीत रही हैं, वो महिलाओं के बीच लोकप्रिय नजर आ रही हैं. चाहे वह नीतीश हों, शिवराज हों, ममता हों या मोदी हों. जो स्कीम महिलाओं की जिंदगी को आसान बना रही हैं, वो उसे लाने वाले को तरजीह दी रही हैं.’

इसके अलावा अमिताभ यूपी में महिला लीडरशिप के वैक्यूम की तरफ भी इशारा करते हैं. वह कहते हैं कि मायावती की स्थिति कमजोर होने के बाद यह वैक्यूम आया है और प्रियंका खुद को इसके लिए प्रोजेक्ट कर रही हैं.

हालांकि वह इस बात को लेकर सशंकित दिख रहे हैं कि प्रियंका की यह कवायद वोट के रूप में ट्रांसलेट होगी या नहीं. हालांकि कांग्रेस की मजबूती से किसे फायदा या नुकसान होगा, इस सवाल पर उनकी राय स्पष्ट है.

अमिताभ इसके लिए दो रीजनिंग देते हैं. पहली डिवीजन ऑफ वोट यानी वोटों का बंटवारा और दूसरी रीजनिंग कांग्रेस के वोटों का ब्रेकअप. अमिताभ बताते हैं कि…

BJP आज भी 40-42 फीसदी वोटों पर खड़ी है. एसपी BSP 22-22 फीसदी के आसपास और कांग्रेस 5 के आसपास. कांग्रेस के 5 पर्सेंट के ब्रेकअप में सबसे ज्यादा वोट मुस्लिम, ब्राह्मण और अपर कास्ट अदर के हैं. ऐसे में अगर कांग्रेस का वोट बढ़ेगा तो इसी समूह से बढ़ने की संभावना ज्यादा है. मुस्लिम वोट पर एसपी, दलित पर बीएसपी और अपर कास्ट पर बीजेपी का डोमिनेन्स है. ऐसे में थोड़ा तो सबको डैमेज होगा लेकिन गेम है कि आबादी किसकी ज्यादा है. मुस्लिम 20 फीसदी हैं, दलित 20 और ब्राह्मण 10 फीसदी हैं. ब्राह्मणों की संख्या ही कम है, ऐसे में अगर कांग्रेस उनका वोट पाती है तो BJP का नुकसान कम होगा.

अमिताभ तिवारी

वह आगे कहते हैं, ‘सारे सर्वे में भाजपा का वोट बैंक 40 पर्सेंट का आसपास दिख रहा है. 22-22 पर ये दोनों हैं (एसपी, BSP) कांग्रेस 5, बाकी 10 फ़ीसदी. एसपी 22 से 42 कैसे पहुंचेगी, जब त्रिकोणीय मुकाबला होगा. इसकी अभी सिर्फ कल्पना है कि भाजपा का वोट शेयर 40 से नीचे आएगा. आप 2019 का चुनाव देखिये, 2017 में जो एनडीए 42 पर्सेंट पर थी, वह 50 फीसदी पर पहुंच गई. बंगाल में क्या हुआ. कोई नहीं सोच रहा था कि ममता 42 से 48-50 फीसदी हो जाएंगी. मेरे हिसाब से और सर्वे के हिसाब से भाजपा का वोट शेयर इंटैक्ट है, ट्राएंगुलर कॉन्टेस्ट तभी होगा जब भाजपा 40 से 30 पर पहुंचेगी, वरना तो एकतरफा चुनाव होंगे. यूपी में बंगाल जैसे रिजल्ट आने की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता.’

एक दूसरा विश्लेषण भी है, जहां से नुकसान में दिख रहे योगी

हमने इस सम्बंध में हमने सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड पॉलिटिक्स (CSSP) के फेलो और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. संजय कुमार से भी बात की. वह एक मजेदार आंकड़ा देते हुए यूपी की राजनीति की जटिलता समझाते हैं. डॉ संजय बताते हैं, ‘2017 के चुनावों की बात करें तो बीएसपी को 22.23 फीसदी वोट मिले जबकि सीटें मिलीं 19. समाजवादी पार्टी को 21.82 फीसदी वोट मिले थे, यानी बीएसपी से कम वोट लेकिन सीट 47 सीटें मिलीं. ये जो चुनावी मैट्रिक्स है, इसे समझना बहुत जरूरी है.’

उनके मुताबिक यूपी की राजनीति में जो भी पार्टी 28-30 फीसदी (वोट शेयर) के आसपास होती है, तो वह सरकार बनाने की स्थिति में आ जाती है. 2007 में बीएसी को 30.4 फीसदी वोट मिले और सीटें आईं 206. एसपी को करीब 5 फीसदी वोट कम मिले, तो उनकी सीटें आईं 97. 2012 के चुनावों में एसपी को 29.1 फीसदी वोट मिले तो 224 सीटें मिलीं और उनसे करीब 3 से सवा 3 फीसदी कम वोट पाने (25.91 फीसदी वोट) पर मायावती को 80 सीटें मिलीं.

वह बताते हैं कि मायावती को लेकर कहीं न कहीं ये परसेप्शन बन रहा है कि उनकी BJP से जुगलबंदी है. ऐसे में उनका वोट बैंक दांव पर है. उनके मुताबिक अगर आक्रामक कांग्रेस और एसपी ने दलित वोटों से सेंध लगा दी तो यूपी का चुनाव रोचक हो जाएगा. वह स्पष्ट कहते हैं कि यूपी में दोतरफा चुनाव में BJP भारी है, पर अगर कांग्रेस की कवायद इस चुनाव को त्रिकोणीय बनाती है यो अखिलेश की सम्भावनाएं मजबूत होंगी क्योंकि वह पहले से करीब 28 फीसदी के वोट बेस (मुस्लिम-यादव) पर खड़े हैं. फिर लड़ाई 2012और 2007 के चुनावी आकंड़ों जैसी दिखेगी जहां सारा जोर 30-32 फीसदी वोट पाने का होगा.

हालांकि चुनाव गणित होता है और गणित नहीं भी होता है. चुनाव में रातों-रात खेल बनते और बिगड़ते हैं. ऐसे में ये चुनावी विश्लेषण कितने सटीक होंगे, ये तो वक्त बताएगा. पर एक बात जरूर साफ है कि इस चुनाव में कांग्रेस की क्या पोजीशन होगी, ये एसपी और BJP, दोनों की जीत और हार के लिए काफी अहम सवाल जरूर है.

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