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मोपला | CM योगी बोले- ‘जिहादियों ने हिंदुओं का नरसंहार किया’, इतिहासकार क्या कहते हैं?

यूपी तक

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”आज से 100 वर्ष पूर्व केरल के मालाबार में जिहादी तत्वों ने हजारों हिंदुओं का नरसंहार किया था. इसमें 10 हजार से अधिक हिंदुओं की निर्मम हत्या कर दी गई थी. सैकड़ों मंदिर तोड़ दिए गए थे. माता, बहनों व बेटियों पर अत्याचार किए गए थे. मालाबार में हिंदुओं की हत्या इसलिए हुई, क्योंकि उन्होंने मतांतरण करने से मना कर दिया था. वामपंथी इतिहासकारों ने सत्य को छुपाया, लेकिन स्वातंत्र्यवीर सावरकर जी ने इसकी सच्चाई समूचे राष्ट्र के समक्ष प्रस्तुत की.”

योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री, यूपी

योगी आदित्यनाथ ऑफिस के ट्विटर हैंडल से शनिवार 25 सितंबर को कुछ ट्वीट किए गए. ये ट्वीट ‘पाञ्चजन्य’ की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम से जुड़े हुए थे. कार्यक्रम था ‘मोपला नरसंहार’ के 100 वर्ष पूरे होने पर विशेष परिचर्चा का. सीएम योगी आदित्यनाथ इस कार्यक्रम में शामिल हुए थे और उन्होंने इसी में उक्त ये बातें कहीं. सीएम योगी ने इस कार्यक्रम में और क्या-क्या कहा, इसे नीचे एंबेड किए गए उनके ट्विटर हैंडल पर मौजूद वीडियो में सुना जा सकता है.

मोपला या मालाबार आंदोलन पिछले कुछ दिनों से काफी चर्चा में है. असल में 20 अगस्त 2021 को इसके 100 साल पूरे हुए हैं. पिछले दिनों संघ से प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक नंद कुमार ने मांग की थी कि सरकार को 25 सितंबर को ‘मालाबार हिंदू नरसंहार दिवस’ के रूप में मनाना चाहिए. इसके पीछे का तर्क 25 सितंबर 1921 की उस कथित घटना को बताया जा रहा है, जिसमें मालाबार के एक गांव में करीब 55 हिंदुओं के मारे जाने का दावा किया जा रहा है.

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पिछले साल इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च (ICHR) ने मोपला विद्रोह की स्टडी के लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी भी बनाई थी. इस कमेटी को Dictionary of Martyrs: India’s Freedom Struggle 1857-1947 किताब के पांचवें वॉल्यूम की एंट्रीज का रिव्यू करना था. कमेटी की राय है कि इसमें से 387 ‘मोपला शहीदों’ के नाम हटाए जाने चाहिए. तर्क यह दिया गया कि मोपला में जो हुआ था वह आजादी का आंदोलन नहीं, साम्प्रदायिक हिंसा थी. पिछले दिनों बीजेपी के पूर्व महासचिव राम माधव ने तो मोपला की घटना को भारत में तालिबानी विचार का पहला प्रमाण तक कहा था.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर मोपला या मालाबार में क्या हुआ था? इतिहास इसे किस नजरिए से देखता है. इस रिपोर्ट में हमने यही समझने की कोशिश की है.

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क्या है मोपला आंदोलन/विद्रोह/हिंसा?

इंडियन एक्सप्रेस पर मौजूद एक आर्टिकल के मुताबिक पिछले 20 अगस्त को मालाबार विद्रोह की शताब्दी मनाई गई. इस विद्रोह को मोपला (मुस्लिम) बलवा/दंगा के नाम से भी जाना जाता है. इस आर्टिकल में बताया गया गया है कि यह असल में मुस्लिम काश्तकारों का ब्रिटिश शासन और हिंदू जमींदारों के खिलाफ विद्रोह था. इसकी शुरुआत 20 अगस्त 1921 को मानी जाती है. कई महीने चले इस विद्रोह में काफी हिंसा देखे को मिली थी और कुछ इतिहासकारों का तो यहां तक दावा है कि 2339 विद्रोहियों समेत करीब 10 हजार जानें गईं. 1971 में केरल सरकार ने मालाबार आंदोलन में शामिल लोगों को स्वतंत्रता सेनानी कैटिगरी में भी शामिल किया.

मोपला के मायने क्या?

सिविल सर्विसेज की कोचिंग दृष्टि आईएएस की वेबसाइट पर मोपला की घटना पर हाल ही में एक अपडेट प्रकाशित किया गया है. इसके मुताबिक मोपला या Mappilla नाम मलयालम बोलने वाले ऐसे मुस्लिमों को दिया गया है, जो नॉर्दर्न केरल के मालाबार कोस्ट के आसपास बसे हैं. यहां बताया गया है कि कांग्रेस द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन के संग खिलाफत आंदोलन ने मोपला का बैकग्राउंड तैयार किया. इन आंदोलनों से उपजी ब्रिटिश विरोधी मानसिकता ने मोपला मुस्लिमों को भी प्रभावित किया.

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1799 में हुए चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध में टीपू सुल्तान की मौत के बाद मालाबार ब्रिटिश शासन के अधीन मद्रास प्रेसिडेंसी का एक हिस्सा बन गया. ब्रिटिश यहां नया काश्तकारी कानून लेकर आए, जो जमींदारों के पक्ष में था. इसको लेकर धीरे-धीरे विद्रोह शुरू हुआ, जिसमें आगे चलकर बड़े पैमाने पर हिंसा हुईं. 1921 के अंत तक ब्रिटिश सरकार ने ताकत से इस विद्रोह को कुचल दिया. तब उन्हें इसके लिए खास मालाबार स्पेशल फोर्स बनानी पड़ी थी.

मोपला: ब्रिटिशों-जमींदारों के खिलाफ किसान आंदोलन या हिंदू नरसंहार?

एक तबका है जो मोपला को ब्रिटिशों-हिंदू जमींदारों के खिलाफ किसान आंदोलन कह रहा है, तो दूसरा इसे हिंदू नरसंहार बता रहा है. हमने इतिहास के जानकारों से इसे समझने की कोशिश की.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर सज्जाद की राय

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रोफेसर मोहम्मद सज्जाद से हमने इस मसले पर बात की. उन्होंने आधुनिक इतिहास के शिक्षक और एकेडमिशियन रहे केएन पन्निकर के शोध के हवाले से बताया कि मालाबार आंदोलन को साम्प्रदायिक हिंसा बताया जाना गलत है.

उन्होंने कहा, ”केएन पन्निकर ने दस्तावेज के आधार पर इस आंदोलन के बारे में लिखा है. उनके शोध में तत्कालीन कलेक्टर का बयान भी है. इसमें बताया गया है कि यह बुनियादी तौर पर महाजनों और जमींदारों के खिलाफ किसानों का विद्रोह था. किसानों ने सभी जमींदारों के खिलाफ हिंसा नहीं की थी. शोषण के लिए बदनाम जमींदारों के विरोध में हिंसा हुई. किसान अधिकतर मुस्लिम थे और जमींदार अधिकतर हिंदू थे, इसलिए उस समय इसमें प्रॉपेगैंडा फैलाकर इसे साम्प्रदायिक रंग दिया गया. उस समय के अंग्रेज इतिहासकारों और अंग्रेज अधिकारियों ने इसे साम्प्रदायिक रूप दिया था, क्योंकि उनका हित इसी में निहित था.”

पर दिल्ली यूनिवर्सिटी के इतिहास के शिक्षक डॉ. प्रशांत त्रिवेदी की राय अलग है

यूपी तक ने इस मामले में दिल्ली यूनिवर्सिटी के शहीद भगत सिंह कॉलेज में इतिहास के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर प्रशांत त्रिवेदी से भी बात की. डॉक्टर प्रशांत की राय प्रोफेसर सज्जाद की राय से उलट है.

वह कहते हैं, ”इस्लाम धर्म यहां सबसे पहले केरल के तट पर आया. वहां के राजा चेरामन पेरुमल ने इसका स्वागत किया. 20 अगस्त 1991 को मोपला में जो शुरू हुआ वह असल में हिंदुओं के खिलाफ मोपला मुस्लिमों की एकतरफा कार्रवाई थी. अंबेडकर भी मानते थे कि मोपला हिंसा का उद्देश्य मुस्लिम राष्ट्र स्थापित करना था. यहां अनुमान के मुताबिक 20 हजार हिंदू मारे गए और सैकड़ों की संख्या में मंदिर ध्वस्त हुए. अगर यह आंदोलन उपनिवेश विरोधी था या जमींदार-किसान संघर्ष था, तो धर्मांतरण-बलात्कार क्यों हो रहे थे. इनके नेता कुजा मोहम्मद काजी खुद बड़े जमींदार थे, उनको क्यों नहीं क्षति हुई? दूसरे मुस्लिम जमींदारों का भी नुकसान नहीं हुआ. इसे खास समूह के इतिहासकारों ने ही विद्रोह का दर्जा दे रखा है. दरअसल यह साम्प्रदायिक ग्राउंड पर किया गया हिंदुओं का नरसंहार ही है.”

जाहिर तौर पर मोपला को लेकर अलग-अलग राय सामने आ रही हैं. ऐसे में इतिहास की समझ रखने वाला एक धड़ा जहां इसे किसान आंदोलन की संज्ञा दे रहा है, तो दूसरा इसे साम्प्रदायिक हिंसा मान रहा है. ऐसी स्थिति में मोपला को लेकर राजनीति की शुरुआत भी हो चुकी है. मामला अब केंद्र सरकार की तरफ भी उछाला जा रहा है कि वो मोपला को लेकर अपना कोर्स करेक्ट करे. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इसे लेकर क्या रुख अपनाती है.

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