कीर्ति कोल की उम्मीदवारी को लेकर सपा पर उठे सवाल, राजभर ने फिर अखिलेश को दे दी ये नसीहत

कुमार अभिषेक

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उत्तर प्रदेश विधान परिषद की दो सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सपा का अनुसूचित जनजाति का दांव लगने से पहले ही फेल हो गया. विधान परिषद सदस्य की योग्यता के पैमाने पर खरा नहीं उतर पाने के कारण कीर्ति कोल की उम्मीदवारी रद्द होने पर अब समाजवादी पार्टी की गंभीरता पर सवाल उठ रहे हैं. राजनैतिक गलियारों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि क्या बेहद ही हल्के अंदाज में चल रही है समाजवादी पार्टी? पार्टी के भीतर बड़े और सीनियर नेताओं के रहते ये कैसे हो गया कि कैंडिडेट का उम्र तक का पार्टी को पता नहीं या विधानपरिषद के लिए तय उम्र पार्टी को पता ही नहीं है.

इस पूरे मामले में चौंकने वाली बात ये कि अखिलेश यादव खुद कीर्ति कोल के प्रस्तावक थे. यही नहीं अखिलेश समेत 10 विधायक कीर्ति कोल के प्रस्तावक थे. यूपी विधान परिषद चुनाव में समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार अनुसूचित जनजाति के चेहरे के तौर पर पेश की जा रहीं कीर्ति कोल की विधान परिषद की उम्मीदवारी खारिज होने से पार्टी के कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए है. सवाल ये उठ रहे हैं कि क्या कोई पार्टी इतनी गैर जिम्मेदार हो सकती है कि उसे विधान परिषद के लिए न्यूनतम उम्र तक का पता ही नहीं.

राजभर ने अखिलेश को फिर दे दी नसीहत

पार्टी के बड़े नेताओं ने इसे “ब्लंडर” करार दिया है. सपा में मुख्य प्रवक्ता अब गलती की जांच करवाने की बात कर रहे हैं तो बीजेपी ने इसे आदिवासी समाज के साथ भद्दा मजाक करार दिया है. वही ओम प्रकाश राजभर ने तो चुटकी ली और कहा कि मैं कहता था कि अखिलेश यादव कोई चुनाव गंभीरता से नहीं लेते हैं और अखिलेश यादव को अभी राजनीति कैसे गंभीरता से की जाती है इसे सीखना बाकी है.

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एक बड़े नेता ने इस गलती के पीछे जताई ये संभावना

कीर्ति कोल की उम्र सिर्फ 28 वर्ष है जबकि विधान परिषद में उम्मीदवारी के लिए 30 वर्ष की उम्र जरूरी है. नाम न छापने की शर्त पर पार्टी के बड़े नेता ने कहा कि हो सकता है कि विधानसभा चुनाव में जो दस्तावेज कीर्ति कोल ने लगाए थे वही दस्तावेज विधान परिषद के चुनाव में भी उन्होंने लगा दिए. ऐसे में किसी ने उनकी उम्र पर ध्यान नहीं दिया. चूकी विधानसभा की वह प्रत्याशी बन चुकी थीं इसलिए विधान परिषद में किसी ने उम्र की जांच करने की जहमत नहीं उठाई.

बहरहाल सपा भले ही इसे ब्लंडर का नाम दे, जांच की बात करें, कन्फ्यूजन की बात कहें, लेकिन इस एक पर्चा के खारिज होने से समाजवादी पार्टी के भीतर पार्टी की कार्यशैली पर गंभीर सवाल जरूर खड़े कर दिए और भाजपा समेत छोटे दलों को भी अखिलेश यादव पर हमला करने का मौका दे दिया.

इससे पहले भी सपा उम्मीदवार के पर्चे हो चुके हैं खारिज

अब चर्चा इस बात की हो रही है कि बीजेपी जैसे ऑर्गेनाइज पार्टी से लड़ने के लिए समाजवादी पार्टी कैसे तैयार होगी. आपको बता दें कि कोई पहला मामला नहीं है जब समाजवादी पार्टी के विधान परिषद प्रत्याशी का पर्चा खारिज हुआ हो. इसी साल मार्च में सपा प्रत्याशी उदयवीर सिंह और राकेश यादव का भी पर्चा खारिज हुआ था. यह मामला इसलिए चर्चित हुआ क्योंकि उदयवीर सिंह के साथ हाथापाई और मारपीट की गई थी, लेकिन उनके पर्ची में भी तकनीकी कमियां रही थीं.

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चुनाव आयोग ने जब उन्हें तकनीकी खामियां ठीक करने के लिए वक्त देकर बुलाया तब भाजपा प्रत्याशी के समर्थकों ने उन्हें जाने नहीं दिया. हाथापाई की गई. मारपीट हुई, लेकिन यह बात भी उतनी ही सच है कि दोनों समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों के पर्चे में गड़बड़ियां मिली थीं. राकेश यादव के पर्चे में सत्यापन के कालम में स्थान और तिथि अंकित नहीं थी, जबकि सपा के ही उम्मीदवार उदयवीर सिंह के तीन कालम में मांगी गईं जानकारियां दर्ज नहीं थीं.

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