क्या घोसी की हार ने योगी सरकार के मंत्रिमंडल के विस्तार पर ग्रहण लगा दिया! जानें इनसाइड स्टोरी
यूपी में जिस मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा थी कि घोसी की जीत के साथ ही यह मंत्रिमंडल विस्तार शक्ल ले लेगा वह अभी दूर की…
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यूपी में जिस मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा थी कि घोसी की जीत के साथ ही यह मंत्रिमंडल विस्तार शक्ल ले लेगा वह अभी दूर की कौड़ी दिखाई दे रहा है, लेकिन इसके समानांतर कुछ घटनाक्रम लखनऊ में ऐसे हुए हैं जो मंत्रिमंडल में जगह पाने के आतुर लोगों के मन में आशा की उम्मीदें जगा रहा है.
ओमप्रकाश राजभर ने मंत्रिमंडल में शामिल होने के दावे को जितना शोर मचा कर किया अब यह मंत्रिमंडल विस्तार “बीरबल की खिचड़ी” बन गया है, जो पक ही नहीं रही. दारा सिंह चौहान भी दिल्ली की परिक्रमा कर लौट आए, लेकिन मंत्रिमंडल में शामिल होने के सवाल पर एक अघोषित चुप्पी दिखाई दे रही है.
पिछले एक-दो दिनों में कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए हैं जिसने मंत्रिमंडल में शामिल होने के आतुर लोगों को कुछ उम्मीदें दी हैं, जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से मुलाकात करना और दूसरी तरफ दिनेश शर्मा का राज्यसभा में शपथ ले लेना, यह दिखाता है कि उत्तर प्रदेश में मंत्रिमंडल गठन की पिच तो तैयार है, लेकिन फैसला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को करना है. जिस तरीके से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर अपनी अथॉरिटी बना रखी है उसमें जब तक वह नहीं चाहेंगे तब तक मंत्रिमंडल विस्तार नहीं होगा, यह बिल्कुल साफ दिखाई देता है.
माना जा रहा है कि जब तक ओमप्रकाश राजभर जैसे लोग मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर टिप्पणी करते रहेंगे यानी मुख्यमंत्री की अथॉरिटी को चुनौती देते रहेंगे तब तक यह विस्तार नहीं होगा क्योंकि पहले भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ओमप्रकाश राजभर के बाद बोले बयानों की वजह से नाराजगी जता चुके हैं.
मुख्यमंत्री ने तो घोसी की हार के बाद कुछ नहीं बोला लेकिन केशव मौर्य ने इशारों इशारों में घोसी की हर को एक दुर्घटना करार दे दिया, साथ ही ओमप्रकाश राजभर के बड़बोले नसीहत पर दे डाली।
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माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल विस्तार के मूड में नहीं हैं, लेकिन दिल्ली दरबार का कमिटमेंट ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान से है. ऐसे में मंत्रिमंडल विस्तार लखनऊ और दिल्ली के बीच फंस गया है.
दरअसल, जब योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल का मंत्रिमंडल शपथ हो रहा था तो योगी के सभी करीबी चेहरे बाहर थे. माना गया कि मंत्रिमंडल भाजपा संगठन का है. ऐसे में अब मौका मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास है और उनके ऊपर मंत्रिमंडल विस्तार का दबाव भी, लेकिन क्या योगी आसानी से मंत्रिमंडल विस्तार की हामी भर देंगे, यह बड़ा सवाल है!
माना जा रहा है कि अगर अब मंत्रिमंडल विस्तार हुआ तो फिर यह योगी आदित्यनाथ इच्छा का मंत्रिमंडल होगा यानी मुख्यमंत्री अपने कई विश्वास पात्र चेहरों को मंत्रिमंडल में रखना चाहेंगे. ऐसे में अब नजरें इस बात पर टिकी हैं कि दिल्ली और लखनऊ के बीच मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर बनाया भ्रम दूर कब होता है.
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