उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) चीफ मायावती का जीवन कई तरह के उतार-चढ़ाव से भरा रहा है. जहां एक तरफ उनकी कहानी किसी आम व्यक्तित्व के राजनीतिक शख्सियत बन जाने के बाद के बदलावों को बखूबी बयां करती है, वहीं दूसरी तरफ उनके जीवन से जुड़े कुछ किस्से भेदभाव की उस चिंताजनक हकीकत को सामने रखते हैं, जो समाज में आज भी बरकरार है.
आज भले ही मायावती को एक सशक्त महिला के तौर पर देखा जाता हो, लेकिन उनकी कहानी का एक हिस्सा बताता है कि किस तरह उन्होंने भी उस पूर्वाग्रह का सामना किया था, जिसके तहत बेटियों को बेटों से कम आंका जाता है.
अजय बोस की किताब ‘बहनजी’ के मुताबिक, मायावती ने बताया, ‘मेरे पिता (प्रभु दास) को यकीन था कि उनके बेटे ही उनका भविष्य हैं और इसलिए उन्हें विशेष तौर पर संवारने की जरूरत है. हालांकि मैं परिवार में सबसे अच्छी स्टूडेंट थी, पर मेरे पिता ने मेरी शिक्षा पर कोई पैसा खर्च नहीं किया.’ इसी पूर्वाग्रह के चलते ही प्रभु दास की बेटियों को मुफ्त शिक्षा के लिए सरकारी स्कूलों में भेजा जाता था, जबकि परिवार की सीमित आय बेटों को निजी स्कूलों में पढ़ाने और जरूरत पड़ने पर अतिरिक्त ट्यूशन पर खर्च की जाती थी.
यह पूर्वाग्रह यहीं तक सीमित नहीं था. एस समय ऐसा भी था, जब मायावती के पिता का झुकाव अपने उन रिश्तेदारों और दोस्तों की बात सुनने की तरफ था, जो प्रभु दास को दूसरी शादी करने की सलाह दे रहे थे, सिर्फ इसलिए क्योंकि तब तक मायावती की मां रमारति ने तीन बेटियां पैदा की थीं, किसी बेटे को जन्म नहीं दिया था.
प्रभुदास से कहा जा रहा था कि अपने पिता (मंगल सेन) के इकलौते बेटे के तौर पर उनका कर्तव्य है कि वह बेटे पैदा करें, ताकि उनके परिवार का नाम आगे बढ़ सके.
हालांकि, उस वक्त मायावती के दादा मंगल सेन ने इस मामले में दखल दिया और अपने बेटे को दोबारा शादी करने से मना कर दिया.
मायावती ने लिखा है, ”मेरे दादाजी ने कहा कि पोती परिवार की विरासत को जारी रखने में पूरी तरह सक्षम हैं. उन्होंने कहा कि अगर लड़कियों को अच्छी शिक्षा दी जाए तो वे बेटों से बेहतर नहीं तो उतनी सक्षम तो हो ही सकती हैं.”
आखिरकार, कुछ साल बाद, मायावती की मां ने लगातार 6 बेटों को जन्म दिया. उस वक्त प्रभु दास इतने सारे बेटों के पिता होने को लेकर काफी खुश थे.
हालांकि, वक्त आगे बढ़ने के साथ मायावती के जीवन में एक ऐसा पल भी आया कि वह अपने पिता को एहसास करा सकें कि बेटियों को बेटों से कम आंकना बिल्कुल भी सही नहीं है.
बात 1993 की है, उस वक्त मायावती का राजनीतिक कद तब अचानक बढ़ गया, जब बीएसपी ने उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के लिए समाजवादी पार्टी के साथ हाथ मिला लिया और एसपी के फाउंडर मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने. इस सरकार में मायावती को ‘सुपर चीफ मिनिस्टर’ कहा जाने लगा.
उस दौरान प्रभु दास के पुश्तैनी बादलपुर गांव के दोस्त, रिश्तेदार और बुजुर्ग यह कहते हुए उनसे विशेष कृपा मांग रहे थे कि उनकी बेटी अब वीवीआईपी बन गई है.
ऐसे में, जब मायावती के पिता बादलपुर के लिए कुछ विशेष योजनाओं के ऐलान की मांग को लेकर मायावती से आग्रह करने के लिए लखनऊ आए तो उन्होंने ताना मारते हुए कहा, ”लेकिन मैंने सोचा था कि आपके बेटे परिवार के नाम को आगे बढ़ाने जा रहे थे! आप उनमें से ही किसी को अपने गांव में कॉलेज, अस्पताल और सड़कें बनाने के लिए क्यों नहीं कहते?”
मायावती ने अपनी आत्मकथा में बताया है कि उनके पिता ने क्षमा मांगते हुए कहा था कि उनको एहसास हो गया कि उनकी बेटी ही उनके जीवन में सबसे अहम व्यक्ति है.
मायावती ने भले ही अपने जीवन के शुरुआती हिस्से में लैंगिक भेदभाव का सामना किया, मगर उनके सत्ता में आने के बाद ये सवाल भी उठते रहे कि उन्होंने खुद महिला सशक्तिकरण की दिशा में कितना काम किया.
देर रात दरवाजे पर हुई दस्तक और बदल गई किस्मत, किस्सा मायावती का