देव कभी था ड्रग एडिक्ट, चांदनी ने बेचे थे भुट्टे... आज दोनों ही झुग्गी झोपड़ी वाले बच्चों को पढ़ा रहे नोएडा के बड़े स्कूलों में
कूड़ा बीनते हुए बड़े हुए देव और चांदनी. आज सैंकड़ों बच्चों की पढ़ाई का बन रहे जरिए. दोनों की कहानी आपके रोंगटे खड़े कर देगी. देखें पूरी रिपोर्ट.
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देव और चांदनी. आज हम आपको इन्हीं दो नामों की कहानी बताएंगे. देव वो है जो कभी कूड़ा बीनता था. नशे करता था. चोरियां भी करता था. चांदनी का बचपन भी कठिनाइयों से गुजरा. चांदनी ने भी अपने बचपन में कूड़ा बीना तो कभी भुट्टा बेचा. मगर आज ये दोनों समाज के सामने नजीर बनकर उभरे हैं. देव और चांदनी अब उन बच्चों की मदद कर रहे हैं जो पढ़ना चाहते हैं, लेकिन उनके पास कोई मदद नहीं है. देव और चांदनी आज सैंकड़ों बच्चों के लिए उम्मीद की किरण बने हुए हैं. देव और चांदनी की वजह से आज कई बच्चे बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटीज और स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं. ये वो बच्चे हैं, जो झुग्गी झोपड़ी में रहते हैं और जिनके माता पिता मजदूरी या फिर कोई छोटा मोटा काम करते हैं.
शबीना पढ़ रही नोएडा के बड़े प्राइवेट स्कूल में
12 साल की शबीना नोएडा के एक बड़े प्राइवेट स्कूल के 7th क्लास में पढ़ती है. शबीना को देखकर या उससे बात करके कोई यह अंदाजा लगा ही नहीं सकता कि वह कभी नोएडा के सेक्टर 18 में गुलाब के फूल बेचा करती थी. शबीना एक IAS ऑफिसर बनना चाहती है.
शमा की कहानी भी ऐसी ही
शबीना की ही तरह शमा भी ऐसे ही एक गरीब परिवार से आती है. शमा की मां सेक्टर 18 में भुट्टा बेचती है. देव और चांदनी की मदद से शमा अब ग्रेटर नोएडा की एक यूनिवर्सिटी से बीबीए की पढ़ाई कर रही है. हाल ही में उसका एडमिशन हुआ है. शमा की फीस का जुगाड़ दोनों ने मिलकर किया है. शमा कहती है कि उसके लिए यूनिवर्सिटी पहुंचना किसी सपने जैसा है. शबीना और शमा की तरह ही ऐसे बहुत सारे बच्चे हैं जिनकी पढ़ाई में देव और चांदनी ने मदद की और अब धीरे धीरे वो बच्चे अपनी तकदीर बदल रहे हैं. ऐसी ही एक बच्ची जिसने इलाज के अभाव में बचपन में अपना भाई खो दिया था, वो अब डॉक्टर बनना चाहती है.
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वैसे देव और चांदनी इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि सिर्फ किताबी ज्ञान से बच्चे आगे नहीं बढ़ सकते हैं. इन दोनों ने मिलकर अब एक स्टूडियो तैयार किया है, जिसमें बच्चों को कैमरा लाइट एक्शन और एडिटिंग की ट्रेनिंग दी जाती है. इन बच्चों के घरवाले भी अपने बच्चों की तरक्की देखकर बेहद खुश हैं.
देव और चांदनी के लिए सब कुछ नहीं था आसान
लेकिन देव और चांदनी के लिए यह सब कुछ कभी इतना आसान नहीं रहा. देव और चांदनी का बचपन बेहद मुश्किलों में बीता है. ये दोनों खुद कभी दो वक़्त की रोटी के लिए कूड़ा बीना करते थे. दोनों रैग पिकर्स थे. देव की हालत तो ऐसी थी कि वो ड्रग एडिक्ट हो चुका था. छोटी-छोटी चोरियां करता था. लेकिन फिर किसी ने हाथ थामकर सही दिशा दिखाई.
चांदनी भी एक मदारी परिवार से आती है. उसका परिवार रोड किनारे खेल तमाशा दिखाता था. दादा की मौत के बाद चांदनी ने कूड़ा बीना तो कभी भुट्टा बेचा. चांदनी कहती है कि वो कभी स्कूल नहीं गई. हालांकि ओपन स्कूलिंग से उसने बारहवीं तक पढ़ाई की है.
देव बताता है कि उन दोनों का मकसद सिर्फ नंबर बढ़ाना नहीं बल्कि ऐसे रोल मॉडल तैयार करने हैं जो अपने परिवार के साथ-साथ समाज की दशा बदलने की ताकत रखें. देव और चांदनी इन बच्चों के ऐसे टीचर बनकर उभरे हैं, जो उन्हें सिर्फ़ स्कूल का नहीं बल्कि जीवन का ज्ञान भी बहुत अच्छे से समझा रहे हैं.
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