कानपुर हिंसा: जानिए वो 4 तरीके जिनकी मदद से पुलिस अज्ञात दंगाइयों की कर रही पहचान
कानपुर में 3 जून को जुम्मे की नमाज के बाद 2 पक्षों के बीच जमकर पत्थरबाजी हुई. मामले की जानकारी मिलते ही सूबे के मुख्यमंत्री…
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कानपुर में 3 जून को जुम्मे की नमाज के बाद 2 पक्षों के बीच जमकर पत्थरबाजी हुई. मामले की जानकारी मिलते ही सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तुरंत पुलिस महकमे के आला अधिकारियों को तलब किया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने देर रात तक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मामले की जानकारी ली और दूसरे दिन सुबह से ताबड़तोड़ एक्शन शुरू हो गया.
PAC की 12 और CAPF की 3 कंपनी तुरंत मौके पर तैनात की गईं और कह दिया गया कि इस घटना में शामिल लोगों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए. हालांकि 4 जून को ही ये साफ हो गया था कि हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट लगेगा और उनकी प्रॉपर्टी जब्त होगी.
आपके दिमाग में ये बात जरूर आ रही होगी कि आखिर हजारों की भीड़ में नकाब पहने लोगों में से पुलिस दंगाइयों को कैसे पकड़ेगी? खबर में आगे जानिए आखिर पुलिस दंगाइयों की पहचान कैसे कर रही है?
आपको बता दें कि सबसे पहले वारदात वाली जगह पर पुलिस घटना के समय इस्तेमाल हुए मोबाइल फोन कॉल रिकार्ड्स और लोकेशन ट्रेस करती है. जो मोबाइल फोन सर्विस प्रोवाइडर आसानी से पुलिस को उपलब्ध करा देते हैं. उसके बाद संदिग्ध नंबरों के कॉल रिकॉर्ड डिटेल से नंबर सर्विलांस पर लगा दिया जाता है और ट्रेकिंग डेटा के आधार पर अभियुक्तों की पहचान और गिरफ्तारी होती है.
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दूसरे तरीके में पुलिस सीसीटीव फुटेज को फॉरेंसिक एक्सपर्ट के पास भेज कर दंगाइयों की पहचान कराती है और फिर इसके बाद फेशियल रिक्रिएशन के आधार पर इलाके में कॉम्बिंग ऑपेरशन चलाती है.
तीसरा तरीका है सोशल मीडिया पोस्ट को ट्रैक कर के अपराधियों को पकड़ना. जैसा कि हम सब जानते हैं कि एडवांस कम्युनिकेशन और टेक्नोलॉजी के जरिए किसी भी मैसेज को जल्द से जल्द सर्कुलेट करना बहुत आसान है. इसलिए साजिशकर्ता अक्सर सोशल मीडिया के सहारे भड़काऊ पोस्ट और अफवाह फैला कर देंगे को अंजाम देते हैं. इसलिए पुलिस अब ‘सोशल मीडिया लैब’ का इस्तेमाल करती है. जहां टेक्निकल एक्सपर्ट की मदद से पोस्ट के कंटेंट को फिल्टर किया जाता है और आईपी एड्रेस को ट्रैक कर अपराधियों को धर दबोचा जाता है.
चौथा तरीका है टेक्स्ट और वॉट्सऐप मैसेज के जरिए अपराधियों को ट्रैक करने का. भले ही कोई कंपनी ये क्यों न कहे कि हमारी चैट या मैसेज एन्ड टू एन्ड इनक्रिप्टेड है, लेकिन सच्चाई ये है कि हमारे मैसेज कहां और कितनी बार फारवर्ड हुए हैं, इसका पूरा हिसाब लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी जब चाहे तब निकाल सकती है. जब इस तरह की घटना होती है तो साइबर सेल सबसे पहले फॉरवर्ड मैसेज और उसके कंटेंट को ट्रैक करता है और संदिग्धों को उसी के हिसाब से पहचान कर गिरफ्तार किया जाता है.
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