‘ना छोड़नूं’ बोल कारगिल की लड़ाई में शहीद हो गए थे कैप्टन मनोज, बाद में मिला परम वीर चक्र
Kargil Vijay Diwas 2023: कैप्टन मनोज पांडेय भारतीय सेना के वो जांबाज अधिकारी थे, जिनकी शौर्यगाथा सदियों तक सुनाई जाएगी. आपको बता दें कि कैप्टेन…
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Kargil Vijay Diwas 2023: कैप्टन मनोज पांडेय भारतीय सेना के वो जांबाज अधिकारी थे, जिनकी शौर्यगाथा सदियों तक सुनाई जाएगी. आपको बता दें कि कैप्टेन पांडेय 1999 के कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे. अत्यंत उत्कृष्ट शौर्यपूर्ण कारनामे का प्रदर्शन और सर्वोच्च बलिदान करने के लिए कैप्टन मनोज कुमार पांडे को मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
गौरतलब है कि कैप्टन मनोज पांडेय का जन्म 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में हुआ था. उन्होंने 1994 में भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून से स्नातक किया और 13वीं बटालियन गोरखा राइफल्स में शामिल हुए. कैप्टन मनोज पांडेय एक बहादुर और साहसी सैनिक थे. वे हमेशा अपने साथियों की मदद के लिए तैयार रहते थे. कारगिल युद्ध में उन्होंने अपने साहस और बलिदान का परिचय दिया था.
कैप्टन पांडेय ने निडरतापूर्वक दुश्मनों पर बोला था हमला
ऑपरेशन विजय के दौरान 11 गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन के लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे को जम्मू कश्मीर के बटालिक में खालूबार रिज को दुश्मनों से खाली कराने का काम सौंपा गया. 03 जुलाई 1999 को उनकी कंपनी जैसै ही आगे बढ़ी दुश्मन ने उन पर भारी गोलाबारी शुरु कर दी. उन्होंने निडरतापूर्वक दुश्मन पर आक्रमण कर चार सैनिकों को मार डाला और दो बंकर तबाह कर दिए.
चोटिल होने के बावजूद डंटे रहे थे पांडेय
कंधे और पैरों में जख्म होने के बावजूद वे पहले बंकर के निकट पहुंचे और भीषण मुठभेड़ में दो अन्य सैनिकों को मारकर बंकर खाली करा दिया. सिर पर गहरा जख्म लगने से पहले एक के बाद एक बंकर पर कब्जा करने में वे अपने दल का नेतृत्व करते रहे. कैप्टन पांडेय के अदम्य साहस से प्रोत्साहित होकर उनके सैनिकों ने दुश्मन पर हमला जारी रखा और अंततः पोस्ट पर कब्जा कर लिया. अत्यंत उत्कृष्ट शौर्यपूर्ण कारनामे का प्रदर्शन और सर्वोच्च बलिदान करने के लिए लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे को मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
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बताया जाता है कि कैप्टन मनोज के आखिरी शब्द थे- ‘ना छोड़नूं’ (नेपाली भाषा में ‘उन्हें मत छोड़ना’). कैप्टन मनोज की शहादत यूं ही बेकार नहीं गई. उन्हीं के कारण भारतीय सैनिकों ने खालूबार पर कब्जा किया गया. उन्हें ‘हीरो ऑफ बटालिक’ भी कहा जाता है. पांडेय जब शहीद हुए तो उस समय वह महज 24 साल के थे.
क्यों और कब मनाते हैं कारगिल विजय दिवस
कारगिल विजय दिवस भारत में 26 जुलाई को मनाया जाता है. यह दिन भारत के वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि देने का दिन है, जिन्होंने 1999 में कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी. कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच एक सशस्त्र संघर्ष था, जो 26 मई से 26 जुलाई, 1999 तक चला था. यह युद्ध भारत के लिए एक ऐतिहासिक जीत थी, और इसने भारत के सैन्य शक्ति और साहस को दुनिया के सामने पेश किया.
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कारगिल युद्ध की शुरुआत तब हुई जब पाकिस्तान ने भारत के कश्मीर क्षेत्र पर आक्रमण किया. पाकिस्तानी सेना ने कारगिल के ऊंचे पहाड़ों पर कब्जा कर लिया और भारतीय सेना को पीछे धकेलने लगी. भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना का कड़ा मुकाबला किया और अंततः पाकिस्तानी सेना को पराजित कर दिया. कारगिल युद्ध में भारत के 527 सैनिक शहीद हुए थे और 1363 सैनिक घायल हुए थे.
कारगिल विजय दिवस भारत के लोगों के लिए एक गौरव का दिन है. यह दिन भारत के वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि देने का दिन है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर भारत की रक्षा की. कारगिल विजय दिवस भारत के लोगों को एकजुटता और देशभक्ति की भावना देता है. यह दिन भारत के लोगों को यह याद दिलाता है कि भारत एक महान देश है और भारत के सैनिक देश की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं.
कारगिल विजय दिवस के अवसर पर भारत भर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इन कार्यक्रमों में देशभक्ति के गीत गाए जाते हैं, देशभक्ति के नाटक और कविताएं सुनाई जाती हैं, और शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है. कारगिल विजय दिवस का दिन भारत के लोगों के लिए एक राष्ट्रीय पर्व है और यह दिन भारत के लोगों को एकजुटता और देशभक्ति की भावना देता है.
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