अस्पताल में 11 लड़कियों संग जन्मा ‘कन्हैया’! कहानी ‘बृजमोहन’ के ‘बिरजू महाराज’ बनने की
देश के जाने माने कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज का निधन का हो गया है. सांसों की सम पर थम गए पर नृत्य की ततकार,…
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देश के जाने माने कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज का निधन का हो गया है. सांसों की सम पर थम गए पर नृत्य की ततकार, घुंघरुओं की झनकार और ‘महाराज जी’ की जय जयकार हमेशा गूंजती रहेगी.
18 दिनों बाद 84 वां जन्मदिन आ रहा था ‘महाराज जी’ का. तो देखिए अच्छन महाराज जी के लाल बृजमोहन नाथ मिश्र के बिरजू महाराज बनने की कहानी भी कथक की आमद और परण की तरह चक्रदार है.
चार फरवरी 1938 को लखनऊ के एक अस्पताल में ग्यारह लडकियां पैदा हुईं, लेकिन इसी बीच उसी अस्पताल में इकलौता लड़का जन्म लेता है. सब कहते हैं दुखहरण आ गया!, लेकिन कुछ घंटों बाद ही कहा जाने लगा कि चारों तरफ गोपियां बीच में कन्हैया! नाम धरा जाता है बृजमोहन. पंडित जगन्नाथ मिश्र यानी अच्छन महाराज जी की पहली संतान बृजमोहन ही लाड प्यार में लिपट कर बिरजू हुए और फिर आदर सम्मान से सुगंधित हुए तो बिरजू महाराज.
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नौ वां जन्मदिन मनाने के कुछ महीनों बाद ही पिता अच्छन महाराज का साया सर से उठ गया तो दोनों चाचाओं पंडित बैजनाथ मिश्र यानी लच्छू महाराज और शंभू महाराज की सुघड़ देख रेख में आगे बढ़ी भाव, लास्य, श्रृंगार और सुर ताल लय की सरिता! तभी तो सात साल की उम्र में बिरजू ने अपने कच्चे गले से पक्के गाने की शानदार प्रस्तुति मंच पर दी तो सभागार में झूम उठे गुणीजन अवाक रह गए.
तेरह साल की बाली उम्र में तो बिरजू भैया ने दिल्ली के मंडी हाउस इलाके में स्थित संगीत भारती में कथक नृत्य की बारीकियां सिखाना शुरू कर दी थीं. रासलीला, फाग लीला और राधा कृष्ण के विरह मिलन के भाव सिखाया करते थे. हैरानी की बात है कि ये विषय तब भी उनकी पहली पसंद थे और अंत तक राधा कृष्ण लीला में नैन-सैन-बैन पर उनकी पकड़ का कोई सानी नहीं था.
संगीत भारती के बाद फिर नृत्य सिखाने के लिए वह भारतीय कला केंद्र में आए. उनके आने के बाद ही भारतीय कला केंद्र ‘कथक केंद्र’ और बिरजू भैया ‘बिरजू महाराज’ के नाम से जाने जाने लगे.
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‘महाराज जी’ ने अथक साधना और आनंद से सजाई कथक की निधि अपने अनगिनत शिष्यों को लुटाने में कभी कोताही नहीं बरती. शाश्वती भाश्वती हों, नीरज सक्सेना या फिर महाराज जी के दोनों पुत्र राममोहन महाराज, दीपक महाराज और पुत्री ममता महाराज. अपने जीवन समुद्र को साधना से मथकर कथक का जो अमृत भरा उसे पूरे जीवन जी भर कर बांटा.कथक के लखनऊ घराने को दुनिया के सामने जयपुर घराने से अलग एक नई और ललित पहचान दी.
दरअसल, तहजीब और नजाकत का साकार रूप धरे लखनऊ नगरी की सदा से एक बांकी अदा है. एक विशिष्ट अन्दाज! कथक नृत्य की दो मुख्य शैलियां यानी घराने विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं- लखनऊ घराना और जयपुर घराना.
लखनऊ घराने की शुरुआत प्रयाग यानी इलाहाबाद के नजदीकी कस्बे हंडिया के गांव चुलकुला में रहने वाले पंडित ईश्वरी प्रसाद जी से मानी जाती है. दंतकथा प्रसिद्ध है कि नट नागर भगवान श्रीकृष्ण ने पंडित ईश्वरी प्रसाद जी को सपने में नृत्य ग्रंथ बनाने की प्रेरणा दी थी. पंडित जी ने ग्रंथ रच भी दिया.
ग्रंथ-रचना करके उन्हें उसकी पहली शिक्षा अपने तीनों पुत्र-श्री अड़गू जी, खड़गू जी ओर तुलाराम जी को दी. श्री अड़गू जी ने नृत्य विद्या अपने तीनों पुत्र- श्री प्रकाश, दयाल और हरिलाल जी को दी. इन तीनों भाइयों को लखनऊ के कला प्रेमी नवाब आसफ-उद-दौला ने अपने दरबार में बुलाकर प्रोत्साहन दिया. इन तीनों भाइयों ने मिलकर कथक नृत्य को और अधिक दर्शनीय, चमत्कारिक व सुदृढ़ बनाया.
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श्री कालिका महाराज और बिंदादीन महाराज भाई थे. बिंदादिन ने लगभग 1500 ठुर्मारेयों की रचना की और कथक में भाव-सौन्दर्य को बहुत ऊपर उठाया. श्री कालका प्रसाद जी के तीन पुत्र थे-श्री अच्छन महाराज, लच्छु महाराज और शंभू महाराज. इन तीनों ने कथक को ना सिर्फ उत्तर भारत में बल्कि दूर-दूर तक प्रचारित क्रिया.
वर्तमान में लखनऊ घराने को पंडित बिरजू महाराज ने कथक नृत्य को अनेक नए आयाम दिए हैं.
नहीं रहे लखनऊ घराने के मशहूर कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज, 83 साल की उम्र में निधन
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