नागा साधुओं को रात में कितने बजे दी जाती है गुप्त दीक्षा? ये रहस्य जान लीजिए

यूपी तक

नागा साधुओं की तपस्या और जीवनशैली हमेशा से रहस्य और कौतूहल का विषय रही है. हमारी मुलाकात ऐसे ही एक नागा साधु दिगंबर विजय पुरी से हुई, जो अपने शरीर पर सवा लाख रुद्राक्ष धारण किए हुए हैं. उन्होंने नागा साधु बनने की नई प्रक्रिया और जीवनशैली पर कई अहम जानकारियां साझा कीं.

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प्रयागराज के महाकुंभ में नागा साधु दिगंबर विजय पुरी से मुलाकात हुई, जिन्होंने अपने शरीर पर सवा लाख रुद्राक्ष धारण किए हैं. उनका दावा है कि इन रुद्राक्षों से उन्हें मानसिक शांति मिलती है.

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बाबा ने बताया कि नागा साधुओं का वस्त्र भस्म है. भस्म उनका पवित्र आवरण है, और रुद्राक्ष आध्यात्मिक शक्ति का स्रोत है. दिगंबर विजय पुरी ने 35 किलो वजनी रुद्राक्ष हमेशा धारण किए रहते हैं.

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नागा साधु बनने के लिए 12-13 साल की कठिन तपस्या करनी पड़ती है. यह जीवन पूरी तरह संयम, तपस्या, और साधना पर आधारित है. यह सांसारिक सुखों को त्यागने का जीवन है.

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नागा बनने की दीक्षा रात 2 से 2:30 बजे के बीच गुप्त रूप से दी जाती है. यह प्रक्रिया 48 घंटे तक चलती है और इसमें साधुओं को आत्मा की ओर ध्यान केंद्रित करना सिखाया जाता है.

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पहले दीक्षा के दौरान साधुओं को शारीरिक झटके दिए जाते थे, जिससे कई मौतें हो जाती थीं. अब, यह प्रक्रिया सुरक्षित आयुर्वेदिक औषधियों की मदद से की जाती है.

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बाबा ने बताया कि कामवासना पर काबू पाने के लिए आयुर्वेदिक औषधि दी जाती है. साथ ही, साधु अपने मन को मारकर आत्मा की बात सुनने की कला सीखते हैं.

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नागा साधु बनने का मुख्य उद्देश्य जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाना है. यह जीवन मोक्ष प्राप्ति के लिए समर्पित होता है.

 

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नागा साधु बनने का जीवन त्याग और तपस्या का प्रतीक है. बाबा ने कहा, "हमारा सुख भजन और ध्यान में है. यही हमारा जीवन है, और यही हमारी साधना है."

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