खतौली उपचुनाव: रालोद-सपा गठबंधन के प्रत्याशी मदन भैया कौन हैं? जानें इनका सियासी इतिहास

मयंक गौड़

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मुजफ्फरनगर जिले के खतौली विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए रविवार को राष्ट्रीय लोक दल-समाजवादी पार्टी गठबंधन ने मदन भैया (Madan Bhaiya) को प्रत्याशी घोषित किया है. आइए मदन भैया के बारे में विस्तार से जानते हैं.

गाजियाबाद के लोनी इलाके के जावली गांव के रहने वाले मदन सिंह कसाना को लोग मदन भैया के नाम से भी जानते हैं. इस इलाके में मदन भैया का अपना अलग ही रसूख हैं और उनकी छवि एक बाहुबली की है. इस बात को वह बीते चुनाव में खुद भी कह चुके हैं. मदन भैया खेकड़ा विधानसभा सीट से 4 बार विधायक रह चुके हैं.

जावली गांव में 11 सितंबर 1959 को मदन भैया का जन्म एक गुर्जर परिवार में हुआ था और अपनी पढ़ाई के दौरान ही उनकी दबंगई की कहानियां सामने आने लगी थीं.

साल 1989 में जेल में रहते हुए उन्होंने खेकड़ा सीट से अपना पहला चुनाव लड़ा. हालांकि अपना पहला चुनाव मदन भैया हार गए, लेकिन दूसरे स्थान पर पहुंचकर उन्होंने बहुत सारे राजनीतिक विश्लेषकों को चौका दिया था.

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उन्होंने अपना दूसरा चुनाव साल 1991 में खेकड़ा सीट से ही जनता दल के प्रत्याशी के रूप में जेल के अंदर से लड़ा और उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी लोक दल के प्रत्याशी रिछपाल बंसल को हराकर बाजी अपने नाम कर ली.

साल 1993 के विधानसभा चुनाव में वह फिर चुनाव मैदान में उतरे और समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह्न पर दोबारा से जीत का परचम लहरा दिया. हालांकि 1996 में विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें भाजपा प्रत्याशी रूप चौधरी ने हरा दिया, लेकिन 2002 में उन्होंने रूप चौधरी को हराकर फिर खेकड़ा सीट पर जीत का परचम लहरा दिया.

चौथी बार 2007 में वह फिर चुनाव मैदान में खेकड़ा विधानसभा सीट से ही रालोद के टिकट पर जीत दर्ज किए.

हालांकि खेकड़ा सीट के परिसीमन का असर उनके राजनीतिक कैरियर पर पड़ा. 2012 खेकड़ा सीट पर नए परिसीमन से चुनाव हुआ और खेकड़ा सीट का वजूद खत्म होकर लोनी सीट अस्तित्व में आई. जिसके बाद मदन भैया ने लोनी सीट से 2012, 2017 और 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन इन तीनों ही चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और उनके राजनीतिक कैरियर पर भी सवालिया निशान खड़े हो गए.

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मदन भैया की छवि बाहुबली की रही है और कई आपराधिक मुकदमे भी उन पर दर्ज हुए हैं. 1989 अपने राजनीतिक कैरियर के पहले विधानसभा चुनाव के साथ, 1991 का विधानसभा चुनाव में वह जेल के अंदर से लड़ चुके हैं.

साल 2022 में भी मदन भैया ने लोनी से विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय लोक दल के चुनाव चिन्ह्न पर लड़ा था, लेकिन यहां उन्हें भाजपा के नंदकिशोर गुर्जर के सामने हार का सामना करना पड़ा था. बीते चुनाव में मदन भैया द्वारा दिए गए शपथपत्र से पता चलता है कि साल 1996 में चुनाव के दौरान जावली गांव में बूथ कैप्चरिंगन के आरोप में उनके खिलाफ केस दर्ज हुआ था. साथ ही साल 2001 में पुलिस पर फायरिंग कराने का मामला भी उन पर दर्ज है.

मदन भैया ने बीए फर्स्ट ईयर तक की पढ़ाई की है. साल 2022 विधानसभा चुनाव के दिए गए शपथपत्र के अनुसार, इनके पास 28.15 लाख रुपये की चल और 13.70 करोड़ रुपये की अचल संपत्ति थी, जबकि 40.50 लाख रुपये का कर्जा भी इनके ऊपर है. वहीं, इनकी पत्नी गीता देवी के पास 60.87 लाख रुपये की चल संपत्ति और 1.50 करोड़ रुपये की अचल संपत्ति थी.

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हालांकि 2022 के अभी बीते लोनी विधानसभा में उन्हें बीजेपी के प्रत्याशी नंदकिशोर गुर्जर से महज 8676 मतों से हार का सामना करना पड़ा. लेकिन मदन भैया आगामी विधानसभा चुनाव तक चुप बैठना नहीं चाहते हैं और इस बार नई जगह से हाथ आजमाने खतौली विधानसभा के उपचुनाव में उतर गए हैं. यहां सीधा सामना उनका भाजपा के प्रत्याशी से होने वाला है.

हालांकि, हार-जीत का पता तो नतीजे आने के बाद चलेगा, पर जिस तरह से यह बाहुबली राजनीतिक मैदान में उतर कर हाथ आजमा रहा है, उस नजरिए से लगता है कि खतौली उपचुनाव में इस बार कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा.

खतौली उपचुनाव के लिए रालोद-सपा गठबंधन ने मदन भैया को घोषित किया उम्मीदवार

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