73 हजार रुपये सैलरी पाने वाली पत्नी ने पति से मांगा था गुजारा भत्ता, हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने गजब का फैसला सुनाया

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस मामले में साफ कहा कि अगर पत्नी खुद अच्छी कमाई कर रही है तो उसे पति से गुजारा भत्ता नहीं मिल सकता

Lucknow News

आशीष श्रीवास्तव

• 12:17 PM • 01 Sep 2025

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भारत में तलाक के मामलों के बाद गुजारा-भत्ता को लेकर अक्सर कपल को अदालतों में जूझते देखा जा सकता है. गुजारा-भत्ता के केस में तीखी बहसें भी देखने को मिलती हैं और कई बार ये आरोप सामने आते हैं कि तलाकशुदा पत्नी की तरफ से क्या बेजा गुजारा भत्ता मांगा जा रहा है? ऐसा ही एक मामला लखनऊ से सामने आया है. यहां एक वर्किंग महिला ने अपने पति पर गुजारे भत्ते का केस कर रखा था. अब इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस केस में एक अहम फैसला सुनाया है. ये फैसला आगे आने वाले वक्त में इस तरह के दूसरे मामलों में नजीर भी बन सकता है. 

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हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस मामले में साफ कहा कि अगर पत्नी खुद अच्छी कमाई कर रही है तो उसे पति से गुजारा भत्ता नहीं मिल सकता. हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उस आदेश को पलट दिया, जिसमें पारिवारिक न्यायालय ने पति को पत्नी को हर महीने 15 हजार रुपये भरण-पोषण के लिए देने का निर्देश दिया था. 

हर महीने 73 हजार रुपये सैलरी पाती है पत्नी

इस केस में पति सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और 1.75 लाख रुपये महीना कमाता है. उसकी पत्नी भी सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और उसे 73 हजार रुपये महीने की सैलरी मिलती है. इतना ही नहीं, पत्नी ने बख्शी का तालाब इलाके में 80 लाख रुपये से अधिक कीमत का फ्लैट भी खरीदा है. पति ने पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में कहा था कि जब पत्नी सक्षम है और अच्छा वेतन कमा रही है, तो वह भरण-पोषण की हकदार नहीं हो सकती. 

हाई कोर्ट ने इस दलील को सही माना और कहा कि पत्नी को 73 हजार रुपये वेतन मिलता है, इसलिए वह अपना खर्च खुद उठा सकती है.लेकिन बच्चे के भरण-पोषण का खर्च पति को देना होगा

हालांकि, कोर्ट ने इस पूरे मामले में बच्चे के अधिकार को सबसे ऊपर रखा. कोर्ट ने कहा कि पति को अपने नाबालिग बच्चे का भरण-पोषण करना ही होगा. इसी आधार पर कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह हर महीने 25 हजार रुपये बच्चे के खर्च के लिए देता रहेगा. जस्टिस सौरभ लवानिया की सिंगल बेंच ने यह फैसला सुनाते हुए साफ कहा कि पत्नी के लिए गुजारा भत्ता का आदेश त्रुटिपूर्ण था, लेकिन बच्चे के लिए भरण-पोषण देना पति की जिम्मेदारी है. कोर्ट का यह फैसला भविष्य में ऐसे कई पारिवारिक विवादों के लिए नजीर साबित हो सकता है.

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