What is NOTA: देश में लोकसभा चुनावों के लिए जबर्दस्त माहौल है. इस वक्त दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की चुनावी प्रक्रियाओं पर दुनियाभर की निगाहें टिकी हुई हैं. यह दुनिया के लिए हमेशा हैरत का विषय रहा है कि इतनी बड़ी जनसंख्या की चुनावी प्रक्रिया इतनी स्मूथ तरीके से कैसे संपन्न होती है. भारत के इलेक्टोरल प्रोसेस के कई बिंदु ऐसे हैं जो बेहद खास हैं. ऐसी ही एक खासियत है NOTA वोट (नोटा वोट) यानी ' उपरोक्त में से कोई नहीं' (None Of The Above) का विकल्प. भारत के चुनावों में प्रत्याशियों के चुनाव के दौरान मतदाताओं को उनके विकल्प के अलावा एक नोटा का भी विकल्प दिया जाता है.
ADVERTISEMENT
क्या होता है नोटा?
नोटा को अस्वीकृत करने का अधिकार भी कहा जाता है. कितनी खास बात है न कि भारत में मतदाताओं को ये अद्भुत अधिकार मिला हुआ है. नोटा के विकल्प का मतलब होता है कि अगर किसी वोटर को लगता है कि उसकी सीट पर जितने भी कैंडिडेट्स चुनाव लड़ रहे हैं, उनमें से कोई योग्य नहीं है, तो मतदाता वोट देने का यह विकल्प चुन सकता है. यह एक तरह का विरोध का अधिकार भी है, जो वोटर नोटा का बटन दबाकर बताता है कि कोई मौजूदा उम्मीदवार वोट के काबिल ही नहीं है. खास बात यह है कि नोटा से कोई हार तय नहीं हो सकती. इससे केवल उम्मीदवारों को नकारने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
नोटा का इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और बैलेट पेपर, दोनों ही तरह के मतदान के दौरान किया जा सकता है. ध्यान देने वाली बात यह है कि भले नोटा से किसी की हार तय नहीं होती, लेकिन बकायदा इस वोट की गिनती होती है और इसे कत्तई अमान्य वोट नहीं माना जा सकता.
अगर किसी सीट पर नोटा वोट ज्यादा हो तो क्या होता है?
वैसे अबतक भारत में ऐसा नहीं हुआ है, लेकिन एक संभावना ऐसी कभी भी बन सकती है कि किसी सीट पर हुए चुनाव में नोटा वोटों की संख्या किसी भी कैंडिडेट को मिले वोटों से ज्यादा हो. सवाल यह है कि ऐसी स्थिति बनी, तो उस सीट पर क्या फैसला होगा? इस मामले में नोटा के बाद जिस कैंडिडेट को सबसे अधिक वोट मिले होंगे, उन्हें विजेता घोषित कर दिया जाएगा.
भारत में कब शुरू हुआ नोटा का इस्तेमाल?
पीपुल्स यूनियन फॉप सिविल लिबर्टीज (PUCL) Vs. भारत सरकार के एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में एक फैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि देश के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में नोटा का विकल्प लेकर आएं. 2013 में पहली बार छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली के विधानसभा चुनाव में पहली बार नोटा का इस्तेमाल किया गया था.
2019 के लोकसभा चुनावों में 1.04 फीसदी मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना था. इसमें बिहार और असम में तो करीब 2.08 फीसदी वोटर्स ने नोटा का विकल्प चुनाव था.
ADVERTISEMENT