विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने बड़े पैमाने पर कार्रवाई करते हुए उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सहित तमाम राज्यों के 37 विश्वविद्यालयों को डिफॉल्टर सूची में डाला है और साथ ही दो हफ्तों का अल्टीमेटम जारी किया है.आयोग ने कहा है कि इन विश्वविद्यालयों को दो हफ्तों के भीतर अपनी वेबसाइट पर अनिवार्य जानकारी अपलोड करनी होगी. अगर वे यह नहीं करते हैं तो यूजीसी उनके मान्यता, कोर्स और डिग्री प्रोग्रामों पर रोक लगा सकता है. बता दें कि यूजीसी सचिव प्रो. मनीष जोशी ने इन विश्वविद्यालयों के नाम पब्लिक किए हैं.
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क्यों डाला गया डिफॉल्टर सूची में?
यूजीसी का कहना है कि कई विश्वविद्यालयों को बार-बार नोटिस भेजे जाने के बाद भी आवश्यक विवरण वेबसाइट पर नहीं अपलोड करने के लिए कहा गया है. लेकिन ये संस्थाएं नियमों का पालन नहीं कर रही हैं. इस वजह से, छात्रों और अभिभावकों को दाखिले के समय सही जानकारी नहीं मिलती, जैसे कि पाठ्यक्रम विवरण, पाठ्यक्रम शुल्क, प्रवेश प्रक्रिया आदि. कई छात्र शिकायत करते हैं कि उन्हें लुभावनी और भ्रामक जानकारी देकर प्रवेश दिलाए जाते हैं. इस परेशानी को दूर करने के लिए अब सभी हायर एजुकेशन इंस्टीटूशन्स की वेबसाइटों की समीक्षा की जा रही है.
कौन-कौन से विश्वविद्यालय शामिल हैं?
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों के विश्वविद्यालयों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की डिफॉल्टर सूची में शामिल किया गया है. यूजीसी की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश का एक और उत्तराखंड के तीन विश्वविद्यालय ने आयोग के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया है, जिसके चलते उन्हें चेतावनी जारी की गई है.
इस सूची में उत्तर प्रदेश के आगरा में स्थित अग्रवन हेरिटेज विश्वविद्यालय और देहरादून का माया देवी विश्वविद्यालय शामिल हैं. इसके अलावा इस सूची में सबसे ज्यादा विश्वविद्यालय मध्य प्रदेश (20) से हैं, इसके बाद गुजरात (6), मणिपुर, सिक्किम, झारखंड और उत्तराखंड (प्रत्येक 3) शामिल हैं. वहीं, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक के दो-दो, और बिहार, असम, गोवा, राजस्थान और महाराष्ट्र के एक-एक विश्वविद्यालयों को भी डिफॉल्टर घोषित किया गया है.
डिफॉल्टर लिस्ट में शामिल विश्वविद्यालयों की पूरी सूची देखने के लिए यहां क्लिक करें.
क्या होगी संभावित कार्रवाई
यूजीसी ने उन विश्वविद्यालयों को साफ अल्टीमेटम दिया है कि वे दो हफ्तों के भीतर अपनी वेबसाइट पर सभी जरूरी चीजों को अपलोड करें. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो आयोग उनकी मान्यता रद्द कर सकता है, साथ ही उनकी डिग्री और पाठ्यक्रम संचालन पर रोक भी लगा सकता है.
छात्र और पेरेंट्स पर इसका असर
छात्र और उनके पेरेंट्स इस कदम को लंबे समय से अपेक्षित सुधार के रूप में देख रहे हैं. वे चाहते हैं कि उच्च शिक्षा संस्थाएं पारदर्शी हों और प्रवेश या पाठ्यक्रम संबंधी सारी जानकारी उपलब्ध कराएं. इस कार्रवाई से उम्मीद है कि भविष्य में विश्वविद्यालय अक्सर गलत, अधूरी या भ्रामक जानकारी नहीं देंगे.
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