जानिए 2007 गोरखपुर हिंसा का पूरा मामला जिसपर आया SC का फैसला, CM योगी से कैसा कनेक्शन?

सृष्टि ओझा

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UP news: सुप्रीम कोर्ट आज 2007 में हुई गोरखपुर हिंसा और CM योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath news) से जुड़े एक अहम मामले में फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने की मांग करने वाली वाली याचिका को खारिज कर दिया है. यह फैसला उस याचिका पर आया है जो इस मामले में CM योगी आदित्यनाथ और अन्य के खिलाफ कथित भड़काऊ भाषण देने के आरोप में मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं देने के यूपी सरकार के निर्णय के खिलाफ दाखिल की गई थी. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सीवी रमना के नेतृत्व वाली बेंच ने बुधवार, 24 अगस्त को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सुप्रीम कोर्ट के सामने दाखिल की गई याचिका में हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें एक स्वतंत्र जांच एजेंसी द्वारा कथित भड़काऊ भाषण की जांच की मांग को खारिज कर दिया गया था. इसमें बताया गया है कि योगी आदित्यनाथ के खिलाफ केस चलाने की मंजूरी नहीं देने का यूपी सरकार का फैसला 2017 में उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद लिया गया है. इस मामले की पिछली सुनवाई में याची के वकील कपिल सिब्बल ने बेंच के सामने बहस से असमर्थता जताई थी. कपिल सिब्बल ने कहा था कि इसका कारण नहीं ही बताया जाना बेहतर है. बेंच इस मामले से कपिल सिब्बल के हटने पर राजी भी हो गई.

2007 गोरखपुर हिंसा मामला: CM योगी पर मुकदमे की इजाजत नहीं देने के खिलाफ याचिका पर फैसला आज

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इसके बाद याचिकाकर्ता की तरफ से वकील फुजैल अहमद अय्यूबी ने जिरह की थी. उन्होंने हाई कोर्ट में उल्लेखित मुद्दों में से एक का जिक्र करते हुए कहा था कि हाई कोर्ट ने यह तय नहीं किया कि क्या राज्य किसी प्रस्तावित आरोपी के खिलाफ केस चलाने की अर्जी खारिज कर सकता है, जो इस बीच मुख्यमंत्री के रूप में चुने जाते हैं. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि इसे लेकर कोई विवाद है ही नहीं कि भाषण नहीं दिया गया क्योंकि योगी आदित्यनाथ ने स्वीकार किया है कि उन्होंने भाषण दिया.

जिरह के दौरान कहा गया कि इस मामले को गृह विभाग और कानून विभाग के बीच ही पूरी तरह निपटाया गया. मध्य प्रदेश पुलिस प्रतिष्ठान के मामले में 5 जजों की बेंच के आदेश के अनुरूप इसे स्वतंत्र फैसले के लिए राज्यपाल के पास नहीं भेजा गया. वहीं यूपी सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने याची के वकील की जिरहों पर आपत्ति जताई. उन्होंने कोर्ट से कहा कि जुर्माना लगाकर इस मामले को खारिज कर देना चाहिए.

हाई कोर्ट के निर्देश के बाद दर्ज हुआ था केस

याचिकाकर्ता ने साल 2007 में योगी आदित्यनाथ को आरोपी बताते हुए केस दर्ज करने की मांग की थी. तब मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने इस मांग को खारिज कर दिया था. बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीजेएम को इस मामले में नए सिरे से फैसला देने का निर्देश दिया था. इसके बाद सीजेएम ने FIR दर्ज कराने की अनुमति दी थी. तब तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 153, 153A, 153B, 295, 295B, 147, 143, 395, 436, 435, 302, 427, 452 के तहत केस दर्ज किया गया था.

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FIR दर्ज होने के एक दिन बाद राज्य सरकार ने आदेश पारित करते हुए केस को यूपी पुलिस की सीबीसीआईडी, क्राइम ब्रांच को ट्रांसफर करने का निर्देश दिया. इसके बाद एक आरोपी ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. फिर हाई कोर्ट ने मामले की जांच पर रोक लगा दी. यह रोक 2008 से लेकर 2012 तक जारी रही. हालांकि दिसंबर 2012 में हाई कोर्ट के आदेश की वैधता बरकरार रही और आगे की जांच शुरू हुई.

सीबीसीआईडी ने इस मामले की अंतिम रिपोर्ट भी दाखिल कर दी. दिसंबर 2016 में सीबीसीआईडी के IO की तरफ से हाई कोर्ट के सामने एक एफिडेविट दाखिल की गई. इसमें बताया गया कि राज्य ने अभियोजन के लिए मंजूरी देने के लिए प्रमुख सचिव (कानून और कानूनी स्मरण) के कार्यालय को अपनी मंजूरी के साथ मसौदा अंतिम रिपोर्ट (DFR) भेज दी है.

2017 में राज्य सरकार ने आरोपी के खिलाफ अभियोजन दाखिल करने की मंजूरी नहीं दी. प्रमुख सचिव (गृह) ने कानून विभाग की राय के बाद यह सहमति जताई कि सबूतों के अभाव में अभियोजन की इजाजत देने की कोई जरूरत नहीं है. इसके बाद राज्य सरकार के इस आदेश को भी हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. हालांकि 22 फरवरी 2018 को हाई कोर्ट ने चुनौती की इस याचिका को खारिज कर दिया.

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आपको बता दें कि याचिकाकर्ता परवेज परवाज ने आरोप लगाया था कि योगी आदित्यनाथ ने 27 जनवरी, 2007 को गोरखपुर में आयोजित एक बैठक में “हिंदू युवा वाहिनी” कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मुस्लिम विरोधी अभद्र टिप्पणी की थी. इसके बाद गोरखपुर में दंगे भड़के थे और जान-माल का नुकसान हुआ था.

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