IPS से MLC बनने का सफर साकेत मिश्रा ने कुछ यूं तय किया, जानें BJP ने क्यों दी ये जिम्मेदारी

शिल्पी सेन

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राजनीति में युवा और साफ सुथरे चेहरों को मौका देने की बात कहने वाली बीजेपी ने यूपी विधान परिषद में मनोनीत कोटे की एमएलसी सूची में साकेत मिश्रा का नाम शामिल किया है. यूपी की योगी सरकार द्वारा भेजे गए जिन 6 नामों पर राज्यपाल ने मुहर लगाई है उनमें से एक साकेत मिश्रा भी हैं.

कौन हैं साकेत मिश्रा?

साकेत मिश्रा वर्तमान में पूर्वांचल विकास बोर्ड के सलाहकार हैं. पर बीजेपी ने उच्च सदन (विधानपरिषद) के लिए उनका नाम मनोनीत करके एक साथ कई एजेंडे को साधने की कोशिश की है.

इन्वेस्टमेंट बैंकर साकेत मिश्रा का नाम उस समय चर्चा में आया था जब लोकसभा चुनाव से पहले श्रावस्ती सीट पर दावेदारों की चर्चा हो रही थी. फाइनेंस के क्षेत्र में कार्य करने का अनुभव रखने वाले साकेत मिश्रा को बीजेपी से टिकट का एक प्रबल दावेदार माना जा रहा था. पर बाद में उनका नाम नहीं घोषित किया गया. सीएम योगी आदित्यनाथ ने उसके बाद उनको पूर्वांचल विकास बोर्ड का सलाहकार बनाया.

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राम जन्मभूमि निर्माण समिति के अध्यक्ष के बेटे हैं साकेत मिश्रा

साकेत मिश्रा राम जन्मभूमि निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा के बेटे हैं. नृपेंद्र मिश्रा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव भी रहे हैं. साकेत मिश्रा ने दिल्ली के सेंट स्टीफेन्स कॉलेज से ईकोनॉमिक्स की पढ़ाई की. उसके बाद उन्होंने भारतीय प्रबंध संस्थान (IIM) कोलकाता से मैनेजमेंट की डिग्री हासिल की. पारिवारिक पृष्ठभूमि प्रशासनिक सेवा की थी. साकेत मिश्रा ने भी सिविल सेवा की परीक्षा दी और 1994 में IPS बने. लेकिन फाइनेंस सेक्टर में गहन रुचि होने के कारण बाद में उन्होंने इस्तीफा देकर फिर से फाइनेंस सेक्टर में लौटने का इरादा किया. साकेत मिश्रा ने कई बैंकों में उच्च पदों पर काम भी किया है.

ननिहाल से राजनीति में एंट्री

हालांकि, साकेत मिश्रा का पैतृक निवास देवरिया के कसिली गांव में है, पर राजनीति में प्रवेश करने के लिए उन्होंने ननिहाल को चुना. उनका ननिहाल श्रावस्ती में है और साकेत के नाना पंडित बदलूराम शुक्ला क्षेत्र के प्रभावशाली ब्राह्मण चेहरों में से रहे हैं. यही नहीं वो कांग्रेस के सांसद (बहराइच से) भी रहे हैं. साकेत मिश्रा ने लोकसभा चुनाव से पहले श्रावस्ती में जमीन पर काम किया और लोगों को जोड़ा. इसमें कोई शक नहीं कि नाना के नाम और पारिवारिक पृष्ठभूमि का लाभ उनको मिला है, पर साकेत मिश्रा लगातार श्रावस्ती में जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ काम करते रहे.

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साकेत मिश्रा के चयन के बाद बीजेपी की ये रणनीति और स्पष्ट हो गई है कि पार्टी प्रशासनिक सेवा में अनुभव और किसी विशेष योग्यता वाले और टेक्नोलॉजी सैवी युवा चेहरों को तरजीह देना चाहती है. साल 2022 में जहां ईडी से इस्तीफा देकर आए राजेश्वर सिंह को पार्टी ने टिकट दिया तो वहीं कन्नौज जैसी सीट से पुराने कार्यकर्ता की जगह पूर्व IPS असीम अरुण को टिकट दिया. असीम अरुण इस समय योगी सरकार में मंत्री भी हैं. इसके अलावा प्रधानमंत्री के करीबी माने जाने वाले पूर्व ब्यूरोक्रेट अरविंद कुमार शर्मा को भी पार्टी ने एमएलसी बनाकर मंत्री बनवाया. इसी कड़ी में साकेत शर्मा का नाम जुड़ा है जिनको फाइनेंस के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल है.

साकेत मिश्रा के सहारे ब्राह्मणों को साधने की कोशिश

पूर्वांचल की राजनीति में हमेशा से से ब्राह्मण चेहरों का वर्चस्व रहा है. साकेत मिश्रा भले ही ब्राह्मण राजनीति में बड़ा नाम न हों पर उनके बहाने ब्राह्मणों को संदेश देने की कोशिश जरूर की गई है. वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद गोस्वामी कहते हैं, ‘मनोनीत नामों को देखें तो ये स्पष्ट हो जाएगा कि 2024 के चुनाव के लिए जातिगत समीकरण साधने की कोशिश की गई गहै. ब्राह्मणों को संदेश देना भी उसी रणनीति का हिस्सा है. वहां हमेशा ब्राह्मण और क्षत्रिय चेहरे प्रमुखता से रहे हैं.’

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