यूपी चुनाव 2022: इस बार राजभर साथ नहीं, क्या काशी में BJP फिर कर पाएगी करिश्मा?

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यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गईं हैं. सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से लेकर समाजवादी पार्टी (एसपी), बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल वोटरों को साधने के लिए तमाम राजनीतिक हथकंडे अपना रहीं हैं.

यूपी विधानसभा चुनाव 2017 से लेकर अब तक राजनीतिक स्थितियों में कितना बदलाव आया है और आगामी विधानसभा चुनाव में यूपी किसका? इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए हम प्रदेश के सभी जिलों की विधानसभा सीटों की चुनावी गणित को समझने की कोशिश कर रहे हैं. इसी कड़ी में आज हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की विधानसभा सीटों का हाल जानते हैं.

वाराणसी में कुल 8 विधानसभा सीटें हैं. विधानसभा चुनाव 2017 में सभी 8 सीटों पर बीजेपी और उसकी सहयोगी दलों ने जीत दर्ज कर की थी. वाराणसी उत्तरी, वाराणसी दक्षिणी, वाराणसी कैंट, रोहनिया, पिंडरा और शिवपुर विधानसभा सीट से बीजेपी को जीत मिली थी. वहीं, सेवापुरी से बीजेपी की सहयोगी अपना दल (एस) और अजगरा से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) को जीत हासिल हुई थी. बता दें कि ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुभासपा 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सहयोगी दल के रूप में चुनाव लड़ा था. बाद में ओम प्रकाश राजभर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से अलग हो गए थे. फिलहाल, वह बीजेपी के जबरदस्त विरोध में जुटे हुए हैं.

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2012 के विधानसभा चुनाव में वाराणसी से 3 सीटें बीजेपी, 2 सीटें एसपी, 1 सीट बीएसपी, 1 कांग्रेस और 1 अपना दल के पास थी. जिन तीन सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी वो सीटें वाराणसी के शहरी क्षेत्रों की थी. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ग्रामीण क्षेत्रों की भी 5 सीटों पर जीत का परचम लहराया था.

2017 के चुनाव में वाराणसी में पहली बार सभी 8 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी. सभी 8 सीटों पर कमल खिलाने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गया था. ऐसा माना जाता है की शहरी सीटों पर ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य-बनिया वोटों के समर्थन से बीजेपी को जीत हासिल हुई थी.

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वाराणसी में 8 विधानसभा सीटें हैं-

  • वाराणसी उत्तरी विधानसभा

  • वाराणसी दक्षिणी विधानसभा

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  • वाराणसी कैंट विधानसभा

  • रोहनिया विधानसभा

  • पिंडरा विधानसभा

  • शिवपुर विधानसभा

  • सेवापुरी विधानसभा

  • अजगरा विधानसभा

  • विधानसभा चुनाव 2012 से 2017 में सभी विधानसभा सीटों पर तस्वीरें कैसी बदल गई , आइए एक नजर डालते हैं.

    वाराणसी दक्षिणी विधानसभा

    2017 में बीजेपी ने सात बार से विधायक रहे श्यामदेव राय चौधरी का चुनाव में टिकट काटकर ब्राह्मण चेहरे नीलकंठ तिवारी को टिकट दिया था. नीलकंठ तिवारी ने कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व सांसद डॉ. राजेश मिश्र को 17,226 वोटों से हराया था. बीएसपी के राकेश त्रिपाठी 5,922 वोट पाकर तीसरे नंबर पर थे.

    वाराणसी उत्तरी विधानसभा

    बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में वाराणसी उत्तरी से एक बार फिर रविंद्र जायसवाल पर भरोसा जताया था. रविंद्र जायसवाल दूसरी बार विधायक चुने गए थे. उन्होंने कांग्रेस के अब्दुल समद अंसारी को 45,5502 वोटों से हराया था. रविंद्र जायसवाल को 1 लाख 16 हजार 17 वोट मिले थे. बीएसपी प्रत्याशी सुजीत कुमार मौर्य को 32, 574 वोट मिले थे, वह तीसरे नंबर पर थे.

    वाराणसी कैंट विधानसभा

    वाराणसी कैंट कायस्थ बहुल विधानसभा है. यहां पिछले 30 सालों से एक ही परिवार का कब्जा है. 1991 से लेकर अब तक श्रीवास्तव परिवार का ही कब्जा है. 1991 में पहली बार बीजेपी से ज्योत्सना श्रीवास्तव को जीत हासिल हुई थीं. 1993 चुनाव में भी वह अपनी सीट बचा पाने में सफल रहीं.

    1996 में उनके पति हरिश्चचंद्र श्रीवास्तव ने इस सीट से जीत का झंडा फहराया. वह 2002 में भी इस सीट से विधायक चुने गए. 2007 और 2012 में फिर ज्योत्सना श्रीवास्तव चुनाव लड़ी और जीत हासिल कीं. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उनके बेटे सौरभ श्रीवास्तव को टिकट देकर इसी सीट से चुनावी मैदान में उतारा. सौरभ श्रीवास्तव ने कांग्रेस के अनिल श्रीवास्तव को 61, 326 वोटों से हराकर जीत का परचम लहराया. कांग्रेस प्रत्याशी अनिल श्रीवास्तव को 71, 283 वोट मिले थे, जबकि बीएसपी के रिजवान अहमद को 14, 118 वोट मिले थे.

    रोहनिया विधानसभा

    रोहनिया सीट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में दिलचस्प मुकाबला हुआ था. इस सीट से अपना दल के दो गुट आमने-सामने थे. मिर्जापुर की सांसद और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की अगुवाई वाली अपना दल (एस) ने बीजेपी को समर्थन दिया था. यहां से अपना दल (कमेरावादी) की अध्यक्ष कृष्णा पटेल खुद चुनाव मैदान में थीं, जबकि बीजेपी से सुरेंद्र नारायण सिंह चुनाव लड़े थे. चुनाव के नतीजों में सुरेंद्र नारायण सिंह को जीत हासिल हुई थी. उन्होंने एसपी के प्रत्याशी महेंद्र सिंह नारायण को 57, 553 वोटों से हराया था. बीएसपी प्रत्याशी प्रमोद कुमार सिंह तीसरे नंबर पर थे.

    दरअसल, इस सीट से यूपी विधानसभा चुनाव 2012 में अपना दल की अनुप्रिया पटेल जीती थीं. लोकसभा चुनाव 2014 में मिर्जापुर से सांसद बनने के बाद उन्होंने रोहनिया सीट छोड़ दी थी. उपचुनाव में एसपी के महेंद्र पटेल जीत गए. 2016 में परिवारिक लड़ाई के चलते पार्टी में टूट हो गई. अनुप्रिया पटेल ने अपनी मां से अलग होकर अपना दल (सोनेलाल) बना लिया. फिर बीजेपी से गठबंधन करके मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री बनीं.

    सेवापुरी विधानसभा

    यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में सेवापुरी से बीजेपी की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने नीलरत्न पटेल नीलू को टिकट दिया था. नीलरत्न पटेल ने एसपी के दिग्गज नेता व राज्य मंत्री रहे सुरेंद्र सिंह पटेल को 49,182 वोटों से हराया था. बीएसपी के महेंद्र कुमार पांडेय को 35, 657 वोट मिले थे, वो तीसरे नंबर पर थे.

    2012 के विधानसभा चुनाव में एसपी के सुरेंद्र सिंह पटेल ने अपना दल के नीलरत्न पटेल को हराया था. सुरेंद्र सिंह पटेल को 56, 849 वोट मिले थे जबकि नीलरत्न पटेल को 36, 942 वोट मिले थे.

    पिंडरा विधानसभा

    पिंडरा विधानसभा से पांच बार से विधायक रहे अजय राय को 2017 के विधानसभा चुनाव में हार का ही नहीं सामना करना पड़ा था, बल्कि वह तीसरे स्थान पर पहुंच गए थे. बीजेपी प्रत्याशी डॉ. अवधेश सिंह ने बीएसपी के बाबूलाल पटेल को 36, 849 वोटों से हराया था. कांग्रेस के अजय राय 48, 189 वोट पाकर तीसरे नंबर पर थे. 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर अजय राय ने बीएसपी प्रत्याशी जय प्रकाश को 9,218 वोटों से हराया था.

    शिवपुर विधानसभा

    शिवपुर से बीजेपी के अनिल राजभर ने एसपी के आनंद मोहन को 54,259 वोटों से हराया था. अनिल राजभर ने 1 लाख 10 हजार 453 वोटों के साथ जीत का परचम लहराया था. समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी आनंद मोहन को 56 हजार 194 वोट मिले थे जबकि बीएसपी के विरेंद्र सिंह 46 हजार 657 वोट पाकर तीसरे नंबर पर थे.

    अनिल राजभर योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. अनिल राजभर के पिता रामजीत राजभर बीजेपी से विधायक थे. अनिल राजभर 1994 में चंदौली स्थित सकलडीहा पीजी कॉलेज से छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए थे. छात्र राजनीति से मुख्यधारा की राजनीति में आने वाले अनिल राजभर 2003 में अपने पिता के निधन के बाद उपचुनाव लड़े थे, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे और भारी मतों से जीत का परचम लहराया.

    अजगरा विधानसभा

    अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट अजगरा से बीजेपी गठबंधन की सुभासपा (बीजेपी और सुभासपा अभी नहीं गठबंधन में नहीं है) के कैलाश नाथ सोनकर ने एसपी के लालजी सोनकर को 21 हजार 349 वोटों से हराया था, जबकि सिटिंग विधायक व बीएसपी प्रत्याशी टी राम को 52 हजार 480 वोट मिले थे, वह तीसरे नंबर पर थे. 2012 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी प्रत्याशी त्रिभुवन राम ने एसपी के लालजी को हराकर जीत हासिल की थी. लालजी को 58 हजार 156 वोट मिले थे जबकि बीजेपी के हरिनाथ 22 हजार 855 वोट पाकर तीसरे स्थान पर थे.

    पर्यटन व अध्यात्म की नगरी वाराणसी
    दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों की लिस्ट में शामिल वाराणसी पर्यटन के क्षेत्र में पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान रखता है. भगवान शिव की नगरी से फेमस काशी हिंदू धर्म के सबसे पवित्र शहरों में से एक माना जाता है. वाराणसी का गंगा घाट पर्यटकों के पसंदीदा जगहों में से एक है. देश के तमाम जगहों से बड़ी संख्या में लोग वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव का दर्शन करने आते हैं. शहर में 88 घाट हैं. अधिकांश घाट स्नान और पूजा समारोह घाट हैं, जबकि दो घाटों का प्रयोग विशेष रूप से श्मशान घाटों के रूप में किया जाता है.

    वाराणसी में चार बड़ी यूनिवर्सिटी स्थित हैं. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू), महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी की प्रमुख यूनिवर्सिटी हैं. देश के सभी हिस्सों से छात्र बीएचयू में पढ़ने के लिए आते हैं. परिसर का वातवरण बहुत शांतिपूर्ण और आकर्षक है. इसके अलावा वाराणसी की पहचान लकड़ी खिलौने से भी है. यहां के लकड़ी खिलौने पूरे विश्व में काफी फेमस हैं.

    स्थीनाय समस्याएं व मुद्दे

    • शिवपुर विधानसभा के सरायमोहाना, मोकलपुर, रमचंदीपुर, रामपुर ढाब तक का इलाका गंगा में आई बाढ़ के चलते अक्सर डूब जाता है. अभी तक यहा तटबंध नहीं बन सका है.

    • शहर दक्षिणी विधानसभा में लंबे वक्त से गोदौलिया, बांसफाटक, चौक, मैदागिन, विशेश्वरगंज, भैरवनाथ, लोहटिया, नईसड़क, दालमंडी और चेतगंज की जनता जाम से जूझ रही है. पक्का महाल, चोहट्टा लाल खां, छित्तनपुरा और कोयला बाजार इलाकों की गलियों की हालत खराब है. इसके अलावा कई जगह सड़कें भी खस्ताहाल हैं और यहां जल निकासी भी एक बड़ी दिक्कत है. एक घंटे की बारिश में शहर की हृदयस्थली और अति व्यस्त गोदौलिया पर जलजमाव हो जाता है. बारिश के मौसम में कई जगह तो पता ही नहीं चलता कि सड़क में गड्ढे हैं कि गड्ढे में सड़क.

    • वाराणसी कैंट विधानसभा में अभी भी शुद्ध पेयजल और सिवर का समस्या बनी हुई है. नई बस्ती से लेकर जक्खा मोहल्लों में तो ड्रेनज सिस्टम फेल होने के कारण पूरा इलाका बारिश के दिनों में बजबजाता मिल जाता है. कैंट विधानसभा का बड़ा हिस्सा रामनगर में आता है, लेकिन अभी भी रामनगर के लगभग आधे हिस्से में न तो ड्रेनेज है और न ही सिवेज है. जल निगम की पाइपलाइन भी बिछी जरूर है, लेकिन पेयजल के साथ पाइप के डैमेजे होने के चलते दूषित पानी पीकर लोग अक्सर बीमार भी पड़ जाते हैं.

    • पिंडरा विधानसभा क्षेत्र वाराणसी के बाबतपुर एयरपोर्ट को शहर से जोड़ता है. इसके अलावा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले लोग ज्यादातर ग्रामीण इलाके से संबंधित हैं जोकि कहीं ना कहीं कृषि पर आधारित हैं. बड़ागांव, पिंडरा और फूलपुर जैसे कस्बे बाजारों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर गांव पेयजल की योजना से वंचित हैं.यहां सड़क की व्यवस्था खराब है. सिंचाई के लिए एकमात्र साधन शारदा नहर है जिसमें पानी नहीं आता. वहीं, बड़ा गांव में जल निकासी सिस्टम पूरी तरह से ध्वस्त है. लगभग 2 किलोमीटर में बेस बाजार में हमेशा पानी जमा हो जाता है जो बीमारियों को दावत देता है.

    इन मुद्दों के बीच आगामी विधानभा चुनाव 2022 में देखना दिलचस्प होगा कि वाराणसी में क्या बीजेपी 2017 वाला प्रदर्शन दोहरा पाती है.

    (इनुपट्स- रौशन जायसवाल, बृजेश यादव)

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