आपातकाल की बरसी पर सपा चीफ अखिलेश बोले- आजादी के 75वें वर्ष में भी लोकतंत्र की हत्या जारी
समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शनिवार को कहा कि देश में आपातकाल के 47 वर्ष बीत…
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समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शनिवार को कहा कि देश में आपातकाल के 47 वर्ष बीत चुके हैं पर आज भी 25 जून 1975 की याद सिहरन पैदा कर देती है और अमृत काल (आजादी के 75वें वर्ष) में भी लोकतंत्र की हत्या जारी है.
शनिवार को आपातकाल की बरसी पर सपा मुख्यालय से जारी एक बयान में यादव ने कहा, ”देश में आपातकाल लगे 47 वर्ष बीत चुके है पर आज भी 25 जून 1975 की याद सिहरन पैदा कर देती है.”
उन्होंने कहा, ‘‘ (तब) रातोंरात विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियों के साथ प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई थी. स्वतंत्र भारत में आपातकाल लागू होते ही लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनकर नागरिकों की आजादी को कुचल दिया गया था.”
आपातकाल के दौर की त्रासदी बयां करते हुए उन्होंने कहा कि आज फिर देश पर अघोषित आपातकाल की छाया मंडरा रही है और अमृतकाल में भी लोकतंत्र की हत्या जारी है.
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सपा अध्यक्ष ने कहा, “आर्थिक विषमता, सामाजिक अन्याय का बढ़ना जारी है। अमीर ज्यादा अमीर, गरीब और ज्यादा गरीब होता जा रहा है. असहिष्णुता और नफरत ने सामाजिक सद्भाव को छिन्न-भिन्न कर दिया है.”
उन्होंने दावा किया ,”संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है. किसानों-नौजवानों की आवाज को कुचला जा रहा है और बेरोजगारी में वृद्धि जारी है, महिलाएं-बच्चियां सर्वाधिक अपमान की यंत्रणाएं भोग रही हैं.”
सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी पर सत्ता के दुरूपयोग के सभी रिकार्ड तोड़ने का आरोप लगाते हुए यादव ने कहा कि आजादी के बाद संविधान की अनदेखी कर लगाए गए आपातकाल का विरोध करने वाले लोकतंत्र रक्षक सेनानियों के बलिदान को भी भुलाया जा रहा है.
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संविधान को बचाने के लिए अहिंसात्मक, वैचारिक मूल्यों के लिए समाजवादी पार्टी को प्रतिबद्ध बताते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए जिन्होंने संघर्ष करते हुए जेल में यातना भोगी, उन्हें सम्मानजनक पेंशन देने के लिए समाजवादी सरकार ने अधिनियम बनाया जिससे तमाम लोकतंत्र रक्षक सेनानियों को जीवन-संबल मिला.
उन्होंने कहा, “महात्मा गांधी ने समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के कल्याण का सपना देखा था. समाज और राष्ट्र की नींव की मजबूती के लिए भय-भ्रष्टाचार मुक्त नागरिक अधिकारों की सुरक्षा और संवैधानिक अधिकारों की बहाली के लिए प्रतिबद्धता यही एक रास्ता है.”
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(भाषा के इनपुट्स के साथ)
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