जेवर एयरपोर्ट के जरिए पश्चिमी UP में सियासी उड़ान भरने की कोशिश में BJP! सामने कई चुनौती

कुमार कुणाल

ADVERTISEMENT

UPTAK
social share
google news

कभी नोएडा उत्तर प्रदेश की सत्ता में बैठने वालों के लिए एक अपशकुन के तौर पर देखा जाता था. ऐसा माना जाता था कि जो भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री नोएडा का रुख करता है वो सत्ता वापसी नहीं कर पाता. योगी-मोदी की जुगलबंदी ने न सिर्फ इस मुगालते को तोड़ने की पहल की है, बल्कि नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के जरिए पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासी गणित पर भी अब बीजेपी की नजर है.

पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जो बड़ी जीत हासिल हुई थी, उसमें वेस्टर्न यूपी में बीजेपी के पक्ष में चली आंधी का महत्वपूर्ण योगदान था. ऐसे में जेवर एयरपोर्ट के जरिए इस इलाके में विकास की योजनाओं की नई शुरुआत करने की बात अब बीजेपी कर रही है.

साथ ही साथ किसान आंदोलन की वजह से जो माहौल पार्टी के खिलाफ बना था, उसका रुख मोड़ने की तैयारी भी पार्टी जेवर से करने की कोशिश करेगी. तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के ऐलान के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिमी यूपी में चुनावी बिगुल फूंका है.

यह भी पढ़ें...

ADVERTISEMENT

यहां बीजेपी के फोकस में सिर्फ किसान ही नहीं बल्कि सामाजिक तौर पर बंटे इस इलाके की कई महत्वपूर्ण जातियां भी होंगी. हाल ही में नोएडा में राजा मिहिर भोज की प्रतिमा के अनावरण के मौके पर पार्टी को गुर्जर समुदाय का खासा विरोध झेलना पड़ा था. जेवर के आस-पास इस समुदाय की खासी आबादी है, जहां पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को लगभग हर सीट पर कामयाबी भी मिली थी. जेवर से बीजेपी को दोबारा उनके समर्थन की उम्मीद है, ताकि दिल्ली से सटे इलाकों में अपना दबदबा बरकरार रखा जाए.

जाट वोटरों की अहमियत की अनदेखी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरण में शायद ही कोई पार्टी कर पाए. बुलंदशहर, गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, अलीगढ़, मथुरा, गौतमबुद्ध नगर, बागपत, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर और शामली जैसे जिले ऐसे हैं, जहां जाट वोटर अपने दम पर चुनावों का रुख बदलने की हैसियत रखते हैं.

किसान आंदोलन में इन्हीं की नाराजगी चर्चा का विषय रही. खास तौर पर गन्ना उपजाने वाले किसान चीनी मिलों की मनमानी से परेशान हैं. सरकार से नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि गन्ने की कीमत उस तरीके से नहीं बढ़ाई गई जिस तरह का वायदा किया गया था. साथ ही किसानों को मिलने वाली बिजली की कीमत हरियाणा और पंजाब की तुलना में महंगी होने का मुद्दा भी किसानी के दृष्टिकोण से काफी अहम है. पिछले दिनों जो परेशानी किसानों के घर-घर तक पहुंची है वो है आवारा पशुओं की समस्या, जो खड़ी फसल को काफी नुकसान पहुंचा रही है. गोवंश की सुरक्षा सुनिश्चित तो हो लेकिन किसानों का नुकसान ना हो यह आवाज हर ओर सुनाई पड़ी है.

ADVERTISEMENT

इस बार बीजेपी की चुनौती न सिर्फ इन मुद्दों से है, बल्कि जयंत चौधरी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के समाजवादी पार्टी (एसपी) के साथ लगभग तय गठबंधन की वजह से अपने बेहतरीन प्रदर्शन को दोहराना भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में एक होगा. जाटों के साथ मुसलमान और यादवों का वोट अगर बड़ी संख्या में गठबंधन की तरफ झुका तो सियासी तराजू भी जरूर झुकेगा.

एसपी चीफ अखिलेश यादव की अपने चाचा शिवपाल यादव के साथ अनबन अगर खत्म हो गई तो बीजेपी की मुश्किलें और बढ़ेंगी क्योंकि तब यादव और मुस्लिम वोट बंटने के आसार थोड़े कम हो जाएंगे. बीजेपी की उम्मीद इस बात पर रहेगी कि इस गठबंधन के खिलाफ एक बार फिर से ध्रुवीकरण की राजनीति काम करे और बाकी जातियों का साथ लेकर पार्टी गठबंधन के चुनावी गणित को ऋणात्मक कर दे. ऐसे में एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन औवैसी की भूमिका और उनके परफॉर्मेंस पर भी बीजेपी की नजर रहेगी, क्योंकि पश्चिमी यूपी के ज्यादातर जिलों में अल्पसंख्यक वोटर निर्मायक भूमिका में हैं.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक बड़ी आबादी दलित वोटरों की भी है, इसी वजह से कभी ये बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) का गढ़ माना जाता था. बीएसपी सुप्रीमो मायावती का प्रभाव अब भी कई इलाकों में बदस्तूर कायम है, खास तौर पर जाटवों में. हालांकि बाकी अनुसूचित जातियां मायावती के हिस्से से छिटक गईं और उसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला. इसी इलाके के सहारनपुर से नए दलित नेता के तौर पर उभरने वाले चंद्रशेखर आजाद भी आते हैं, जिन्होंने फिलहाल अपने पत्ते नहीं खोले हैं. बीजेपी जानती है कि बिना एससी वोटरों को साथ जोड़े हुए इस इलाके में चुनावी बैतरणी पार करना लगभग असंभव है, इसलिए प्रधानमंत्री केंद्र और राज्यों की योजनाओं के जरिए दलितों को फिर से साध रहे हैं.

ADVERTISEMENT

यह इलाका न सिर्फ ग्रामीण परिवेश के लिए जाना जाता है बल्कि एक बड़ी आबादी दिल्ली से सटे शहरी इलाकों में भी रहती है. आम तौर पर नौकरी पेशा और उद्योगों से जुड़ी इस आबादी में पार्टी का पॉपुलैरिटी ग्राफ ऊपर ही रहा है. नोएडा, गाजियाबाद और मेरठ सरीखे शहरों को एक्सप्रसवे से जोड़ने के बाद रैपिड रेल और अब जेवर एयरपोर्ट की सौगात से मन मोहने की कवायद है. मगर यहां बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दे भी हैं.

ऐसे में बीजेपी की कोशिश होगी कि जेवर के लॉन्चपैड से सियासत टेक ऑफ करे और उसकी उड़ान बाकी पार्टियों और गठबंधन से कहीं ऊंची हो, जैसा 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के साथ-साथ 2017 के विधानसभा चुनाव में भी हुआ था.

PM मोदी ने नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट का शिलान्यास किया, CM योगी समेत तमाम दिग्गज रहे मौजूद

    follow whatsapp

    ADVERTISEMENT