रालोद में घर से बाहर का अध्यक्ष बनाएंगे जयंत, अब तक क्या रहा है इस पार्टी का इतिहास
जयंत चौधरी रालोद के तीसरी बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए हैं. मथुरा में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन में जयंत ने कहा कि वह चाहते हैं कि रालोद का अगला मुखिया पार्टी के बाहर का कोई व्यक्ति हो. देखें क्या हैं जयंत के इस बयान के मायने.
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केंद्रीय मंत्री जयंत सिंह राष्ट्रीय लोक दल (रालोद ) के मुखिया चुने गए हैं. रालोद का मथुरा में राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ जिसमें जयंत चौधरी निर्विरोध पार्टी के अध्यक्ष चुने गए. जयंत तीसरी बार लगातार रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं. जयंत का यह कार्यकाल अगले तीन साल तक रहेगा. इस मौके पर अपने संबोधन में जयंत ने एक बड़ा बयान दिया. उन्होंने कहा कि रालोद का अगला मुखिया चौधरी परिवार से बाहर का होना चाहिए. यही फर्क रालोद को अन्य दलों से अलग बनाएगा. जयंत चौधरी के इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में कई तरह की चर्चाएं हैं. सियासी जानकार कह रहे हैं कि जयंत ने अपने इस बयान से परिवारवाद पर हमला बोला है. ऐसे में आइए आज आपको रालोद की पूरी कहनी बताते हैं.
सबसे पहले जानिए जयंत ने क्या कहा?
रालोद के राष्ट्रीय अधिवेशन में जयंत ने कहा, "रालोद मेरे परिवार की पार्टी नहीं है. मेरी दो बेटियां हैं. लेकिन मेरी इच्छा है कि 3 साल बाद आप अच्छा नेता तैयार करें, जो अध्यक्ष बने. यह फर्क रालोद और अन्य दलों में होना चाहिए."
जयंत के इस बयान के कई अर्थ निकाले जा रहे हैं. सियासी जानकारों का कहना है कि अपने इस बयान से जयंत ने परिवारवाद पर हमला बोला है. ऐसा माना जा रहा है कि रालोद का अगला मुखिया जयंत पार्टी से बाहर का इसलिए बनाना चाहते हैं ताकि परिवारवाद का टैग न लग सके.
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आइये आपको बताते हैं रालोद का इतिहास
राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) की स्थापना 1996 में हुई थी. देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजित सिंह ने जनता दल से अलग होकर रालोद को बनाया था. पार्टी का चुनाव चिह्न हैंडपम्प है. चौधरी अजीत सिंह के बाद पार्टी की कमान उनके बेटे जयंत के हाथों में आई. जयंत चौधरी अब तीसरी बार रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए हैं. 2014 से 2022 तक रालोद अपने हाशिए पर रही. यहां तक कि पार्टी अपनी पारंपरिक सीटें भी हार गई. 2022 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में रालोद ने सपा के साथ गठबंधन कर 33 सीटों पर चुनाव लड़ा. रालोद को 9 सीटों पर जीत मिली, जिसने पार्टी को एक नई ऊर्जा दी. हालांकि इसके बाद रालोद, सपा का साथ छोड़ 2024 के लोकसाभा चुनाव से पहले भाजपा के साथ आ गई था.
ये है रालोद का लोकसभा का चुनवी इतिहास
12वीं लोकसभा (1998)
- लड़ी गई सीटें: 8
- जीती गई सीटें: 0
- वोटों का प्रतिशत: -
13वीं लोकसभा (1999)
- लड़ी गई सीटें: 7
- जीती गई सीटें: 2
- वोटों का प्रतिशत: 0.37%
14वीं लोकसभा (2004)
- लड़ी गई सीटें: 10
- जीती गई सीटें: 3
- वोटों का प्रतिशत: 0.63%
15वीं लोकसभा (2009)
- लड़ी गई सीटें: 7
- जीती गई सीटें: 5
- वोटों का प्रतिशत: 0.44%
16वीं लोकसभा (2014)
- लड़ी गई सीटें: 8
- जीती गई सीटें: 0
- वोटों का प्रतिशत: 0.13%
17वीं लोकसभा (2019)
- लड़ी गई सीटें: 3
- जीती गई सीटें: 0
- वोटों का प्रतिशत: 0.24%
18वीं लोकसभा (2024)
- लड़ी गई सीटें: 2
- जीती गई सीटें: 2
- वोटों का प्रतिशत: 0.14%
ये है रालोद का विधानसभा का इतिहास
13वीं विधान सभा (1996)
- लड़ी गई सीटें: 38
- जीती गई सीटें: 8
- वोटों का प्रतिशत: 2.13%
14वीं विधान सभा (2002)
- लड़ी गई सीटें: 38
- जीती गई सीटें: 14
- वोटों का प्रतिशत: 2.65%
15वीं विधान सभा (2007)
- लड़ी गई सीटें: 254
- जीती गई सीटें: 10
- वोटों का प्रतिशत: 1.95%
16वीं विधान सभा (2012)
- लड़ी गई सीटें: 46
- जीती गई सीटें: 9
- वोटों का प्रतिशत: 2.33%
17वीं विधान सभा (2017)
- लड़ी गई सीटें: 171
- जीती गई सीटें: 1
- वोटों का प्रतिशत: 1.71%
18वीं विधान सभा (2022)
- लड़ी गई सीटें: 33
- जीती गई सीटें: 9
- वोटों का प्रतिशत: 2.85%











