मोदी सरकार ने पिछड़ों की ये रिपोर्ट संसद में कर दी पेश तो अखिलेश यादव के PDA का क्या होगा?
UP News: 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. सत्ताधारी भाजपा से लेकर विपक्षी दलों का समूह ‘INDIA‘ चुनावों…
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UP News: 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. सत्ताधारी भाजपा से लेकर विपक्षी दलों का समूह ‘INDIA‘ चुनावों में अपनी जीत सुनिश्चित करने लिए हर तरह के जतन कर रहा है. इस बीच मोदी सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाया है, हालांकि यह किस लिए बुलाया गया है इसकी जानकारी सामने नहीं आई है. मगर ऐसी चर्चा है कि पिछड़े वर्गों के उप वर्गीकरण के मुद्दे पर बनाए गए जस्टिस रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को इस सत्र में पेश किया जा सकता है.
आपको बता दें कि सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाले राज्य उत्तर प्रदेश में ओबीसी वोटों की अहमियत बहुत ज्यादा है. ऐसा कहा जाता है कि यहां ओबीसी वोटर किसी भी कैंडिडेट की जीत और हार में अपनी भूमिका अदा करते हैं. इसलिए यहां ओबीसी वोटों की राजनीति खूब होती है. वहीं, आगामी लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने ‘PDA’ का नारा दिया है. ‘PDA’ मतलब पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक. अखिलेश यादव ने चुनाव से पहले इन्हीं तीन वर्गों को साधने की कोशिश की है. वहीं, दुसरी तरफ यूपी से सटे बिहार में भी ओबीसी वोटों की राजनीति हो रही है. वहां के सीएम नीतीश कुमार ओबीसी और दलित वोटों को साधने के लिए जातिगत जनगणना करा रहे हैं.
रिपोर्ट लागू हुई तो क्या होगा?
ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर मोदी सरकार जस्टिस रोहिणी आयोग की रिपोर्ट लागू कर देती है, तो क्या क्या इम्पैक्ट होगा. ऐसा कहा जा रहा है कि इस रिपोर्ट में काफी कुछ कुछ है, जो आगामी लोकसभा चुनाव का बड़ा मुद्दा बन सकता है. इस रिपोर्ट में देश के कुल मतदाताओं के करीब 40 फीसदी से ज्यादा यानी ओबीसी मतदाताओं का भविष्य है. अगर सत्ताभारी भाजपा ने इस लागू कर दिया, तो वह चुनाव प्रचार के दौरान इसकी खासियत गिनाएगा. वहीं, विपक्ष खामिया गिनाने में जुट जाएगा. कुल मिलकार इसको लेकर राजनीति तेज रहेगी.
ऐसे में चर्चा है कि अगर मोदी सरकार इस रिपोर्ट को लागू कर देती है, तो इससे अखिलेश यादव के ‘PDA’ फॉर्मूले को धक्का लग सकता है. क्योंकि सूत्रों के मुताबिक लगभग 1100 पेज की इस रिपोर्ट के जरिए की गई सिफारिशें दो भागों में है. इन सिफारिशों पर अमल हो गया तो पिछले चार दशकों से चली आ रही ओबीसी आरक्षण नीति की अवधारणा और व्यवहारिक प्रक्रिया में बड़ा बदलाव आ सकता है.
सूत्रों के मुताबिक रोहिणी आयोग की सिफारिशों का ये है सार:
- सभी 2633 obc जातियों और उपजातियों को बराबर रूप से आरक्षण का लाभ मिलेगा.
- रिपोर्ट में सभी ओबीसी जातियों को आरक्षण कोटा के समान और सर्व समावेशी रूप से वितरण की रूपरेखा बताई गई है.
- अब तक सूचीबद्ध 2,633 पिछड़ी जातियों की पहचान, आबादी में अनुपात और अब तक मिले आरक्षण के लाभ के आंकड़ों और तथ्यों का ब्योरा देता है.
- जातियों और उपजातियों के बीच हेरार्की यानी पद अनुक्रम को खत्म कर सबको एक मंच पर रखने की सिफारिश की गई है.
ओबीसी जातियों को सर्वेक्षण से मिले आंकड़ों के आधारचार श्रेणी में बांटा गया है.
(a) जिनको आरक्षण का सर्वाधिक लाभ मिला.
(b) जिनमें कुछ ही उपजातियों को लाभ मिला और अधिकतर उपेक्षित रही. जैसे 994 जातियों की हिस्सेदारी और लाभ का आंकड़ा पढ़ाई और सरकारी नौकरी में 2.68 फीसदी ही रहा. यानी एक तिहाई जातियों के लोग लाभ से वंचित रहे.
(c) जिनमें लाभ पाने वाले और वंचितों के अनुपात में ज्यादा अंतर नहीं.
(d) आरक्षण का शून्य या बेहद मामूली लाभ पाने वाली जातियां या उपजातियां जिनको अवसर की जानकारी नहीं मिल पाई या लाभ ही नहीं मिल पाया. ऐसी जातियों या उपजातियों की संख्या 983 बताई गई है. 2633 जातियों में से 983 यानी लगभग 40 फीसदी शून्य लाभ मिला.
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सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि उत्तर प्रदेश में सपा चीफ, यादव और गैर यादव ओबीसी वोटों को साधने की जुगत में लगे हुए हैं. ऐसे में अगर जस्टिस रोहिणी आयोग की रिपोर्ट लागू हो जाती है तो फिर उसके बाद अखिलेश यादव क्या और कौनसी रणनीति बनाएंगे, यह देखने लायक बात होगी. कुल मिलकार कर इतना जरूर कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में कई तरह के सियासी उठा पटक जरूर देखने को मिलेंगे.
(संजय शर्मा के इनपुट्स के साथ.)
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