UP में कांग्रेस के लिए PK का प्लान? BJP से ज्यादा अखिलेश के लिए चिंता की बात क्यों, समझिए

अमीश कुमार राय

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भारतीय राजनीति में एक बार फिर पीके की चर्चा है. पीके यानी प्रशांत किशोर. 2014 में पीएम मोदी के लिए रणनीति बनाकर बीजेपी के लिए प्रचंड जीत का रास्ता खोलने वालों में से एक पीके की पॉलिटिकल जर्नी ने पिछले 8 सालों में कई मील के पत्थर देखे. नीतीश कुमार का साथ, बंगाल में ममता बनर्जी को बड़ी जीत दिलाना, आंध्र में जगन की ताजपोशी, भारतीय राजनीति में पीके की रणनीति लगातार हैवीवेट होती नजर आई है. इस बार पीके कांग्रेस के संग अपनी गुफ्तगू को लेकर चर्चा में हैं. और खासकर 2024 के लिए उनके कथित प्लान को लेकर बड़ी बातें हो रही हैं, जिसमें यूपी का एजेंडा भी शामिल बताया जा रहा है.

अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स के दावे अलग-अलग हैं. कोई कह रहा है कि पीके ने कांग्रेस में गांधी परिवार समेत खास नेताओं को 600 स्लाइड्स की प्रेजेंटेशन दी है, तो कोई कह रहा है कि 85 पेज की प्रेजेंटेशन दी गई है. लेकिन एक बात अब आधिकारिक रूप से सामने आ गई है कि पीके लंबे समय से कांग्रेस के टच में हैं और संभवत: रणनीति बनाने के साथ-साथ वह पार्टी का भी हिस्सा हो सकते हैं.

पीके के प्लान में सबसे अहम हिस्सा यूपी की सियासत को लेकर भी है. सूत्रों की मानें तो पीके ने सुझाव दिया है कि कांग्रेस को यूपी में अकेले चुनाव लड़ना चाहिए. ऐसे में जबकि 2022 का विधानसभा चुनाव अब समाप्त हो चुका है, तो अब सारे दलों की निगाहें 2024 के रण में हैं. इस रण में सत्ता की चाबी यूपी के पास है, जहां से लोकसभा की 80 सीटें आती हैं. ऐसे में सवाल यह है कि अगर कांग्रेस ने यूपी में पीके के प्लान को अपनाया, तो 2024 में इसका असर क्या होगा?

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क्या पीके के प्लान पर चलकर बीजेपी से ज्यादा सपा को नुकसान पहुंचाएगी कांग्रेस?

हालांकि अभी कांग्रेस के लिए पीके की नई रणनीति की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन यूपी में कांग्रेस पहले भी पीके के प्लान पर चल चुकी है. 2017 के विधानसभा चुनावों में पीके ने यूपी में कांग्रेस के लिए रणनीति बनाई थी और शुरुआती हिचक के बाद सपा के साथ गठबंधन हुआ था. हालांकि तब ‘यूपी को यह साथ पसंद है’ वाला नारा कुछ काम नहीं आया और बीजेपी के सामने सपा-कांग्रेस गठबंधन टिक नहीं पाया.

पर अब हालात बदले हुए हैं. 2022 के विधानसभा चुनावों में अखिलेश यादव बीजेपी के खिलाफ वोट करने वाले वोटर्स में अकेले विकल्प के तौर पर देखे गए. और यह बात मुस्लिम मतदाताओं के लिहाज से ज्यादा अच्छे से समझी जा सकती है.

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लोकनीति-सीएसडीएस के पोस्ट पोल सर्वे के मुताबिक 2022 के विधानसभा चुनावों में 79 फीसदी मुस्लिमों ने समाजवादी पार्टी के लिए वोट किया. 2017 में यही आंकड़ा अखिलेश के लिए 46 फीसदी का था. बीएसपी को 6 फीसदी और कांग्रेस को 3 फीसदी मुस्लिम वोट मिले. इनसे अधिक बीजेपी को 8 फीसदी मुस्लिम वोट मिले.

पर 2024 में कांग्रेस अकेले लड़ी, तो क्या अखिलेश के साथ रहेंगे ये मुस्लिम वोटर्स?

इस सवाल पर यूपी की राजनीति की नब्ज को समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार सैयद कासिम कहते हैं कि ऐसे संकेत साफ हैं कि अखिलेश यादव को 2024 में बीजेपी से भी कम मुस्लिमों के वोट मिलेंगे. वह कहते हैं कि 2022 के चुनावों में मुस्लिम मतदाताओं ने यह देखकर अखिलेश को वोट किया कि अकेले वह बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में दिख रहे थे. लेकिन 2024 में हालात ऐसे नहीं होंगे और मुस्लिमों के वोट जाहिर तौर पर कांग्रेस के साथ जाएंगे.

हमने इस सम्बंध में हमने सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड पॉलिटिक्स (CSSP) के फेलो और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. संजय कुमार से भी उनकी राय जाननी चाही. प्रोफेसर संजय कुमार का कहना है कि ऐसी बातें सामने आ रही हैं कि मुस्लिम अखिलेश यादव को लेकर खुश नजर नहीं आ रहे हैं. वह कहते हैं कि जब भी लोकसभा का चुनाव आता है, कांग्रेस मुख्यधारा में नजर आने लगती है. उन्होंने कहा कि पीके भी चाहते हैं कि कांग्रेस लोकसभा की सभी 543 सीटों पर न लड़े बल्कि कम सीटों पर लड़े. ऐसे में यूपी में कांग्रेस इस रणनीति को देखते हुए कम सीटों पर अकेले या छोटे दलों के गठबंधन से उतर सकती है. ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं कि मुस्लिम वोट खिसकर कांग्रेस के साथ आए.

हालांकि इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार विजय उपाध्याय की राय अलग है. उनका कहना है कि मुस्लिम कांग्रेस के पास शिफ्ट हो सकते हैं लेकिन सवाल यह है कि कांग्रेस के पास क्या अभी क्या है. उनका कहना है कि अल्पसंख्यक काफी रणनीतिक वोटिंग करेगा और वह विपक्ष के जीतने वाले कैंडिडेट को देखकर ही वोटिंग करेगा. विजय उपाध्याय बीजेपी की लाभार्थी वाली राजनीति पर भी फोकस करते हुए कहते हैं कि यूपी का पसमांदा मुस्लिम बीजेपी की तरफ अगर वोट करता नजर आए, तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं होगी.

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हालांकि 2024 की लड़ाई अभी दूर नजर आ रही है, लेकिन यह आगामी चुनाव यूपी में बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस, सपा, बसपा जैसी विपक्षी दलों के लिए चुनौती के रूप में देखा जा रहा है. 2014 के आम चुनावों के बाद बीजेपी ने जिस तरह चुनाव दर चुनाव अपने सामाजिक आधार को न सिर्फ बचाए रखा बल्कि और मजबूत ही किया, वह विपक्ष के लिए अलार्मिंग है. ऐसे में अगर कांग्रेस ने 2024 का चुनाव अकेले लड़ने का मन बनाया, तो उसकी सफलता से इतर यह सपा के साथ बसपा के लिए भी एक चुनौतीपूर्ण स्थिति जरूर हो सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि यूपी में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 19-20 फीसदी के करीब है और विपक्षी दलों की नजर इस बड़े वोट शेयर की तरफ जरूर है.

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