प्रियंका के बहाने 3 अक्टूबर 1977 को इंदिरा की गिरफ्तारी का जिक्र! जानें क्या था वो किस्सा

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सबसे पहले इन दो बयानों को देखिए…

”3 अक्टूबर 1977 को स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी जी की गिरफ्तारी. 3 अक्टूबर 2021 को प्रियंका गांधी जी की गिरफ्तारी. इतिहास फिर दोहरा रहा है.”

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद

”अगर 3 अक्टूबर 1977 को श्रीमती इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी जनता पार्टी की सरकार की समाप्ति की वजह बनी, तो 3 अक्टूबर 2021 को हुई प्रियंका गांधी की गिरफ्तारी बीजेपी सरकार के अंत की शुरुआत है.”

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़

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लखीमपुर खीरी में 3 अक्टूबर को हुई हिंसा की घटना को लेकर कांग्रेस उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार पर जमकर हमलावर है. इस घटना के बाद लखनऊ पहुंच पुलिस को छकाते हुए लखीमपुर खीरी पहुंचने की कोशिश में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को सीतापुर के पास हिरासत में ले लिया गया. प्रियंका गांधी को 22वीं बटालियन के गेस्टहाउस में रखा गया, जहां उनके सत्याग्रह करने की भी खबरें आईं. इस बीच एक वीडियो भी सामने आया, जिसमें प्रियंका गेस्ट हाउस के गंदे कमरे में झाड़ू लगाती नजर आईं.

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प्रियंका को हिरासत में लेने के साथ ही कांग्रेस के नेताओं को 3 अक्टूबर 1977 को पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के साथ घटी कहानी याद आ गई. इसकी बानगी आप ऊपर सलमान खुर्शीद और सुनील जाखड़ के बयानों में देख सकते हैं.

अब एक स्वभाविक सवाल सबके मन में उठ रहा होगा कि आखिर 3 अक्टूबर 1977 को इंदिरा गांधी के साथ क्या हुआ था? आखिर कांग्रेस के नेता इस कहानी को याद कर इतिहास दोहराने की बात क्यों कह रहे हैं?

तो इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए हमारे साथ इंदिरा गांधी के जमाने में चलिए और इस सियासी किस्से को समझिए

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इंदिरा गांधी के जमाने में लेकर चलने के लिए हमारा सहारा बनेगी प्रतिष्ठित मैग्जीन इंडिया टुडे और 31 अक्टूबर 1977 का इसका खास अंक, जो इंदिरा से जुड़ी इसी घटना पर केंद्रित था.

तारीख 3 अक्टूबर 1977: यह वह तारीख थी, जब अपने समय में भारत की ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे शक्तिशाली राजनीतिक शख्सियतों में शुमार किए जाने वाली इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी हुई थी. इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के समय इंडिया टुडे के रिपोर्टर्स मौका-ए-वारदात पर मौजूद थे और वे इसके बाद हुए राजनीतिक घटनाक्रम के गवाह भी थे. उस जमाने के इस बड़े राजनीतिक घटनाक्रम को कवर स्टोरी बनाया गया था. कहा जाता कि इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी तब की जनता पार्टी सरकार की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल थी.

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इंडिया टुडे की कवर स्टोरी के मुताबिक, 1977 में केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनते ही तकरीबन कैबिनेट की हर इंफॉर्मल बैठक में इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने को लेकर चर्चा होती थी. तब गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह थे. तत्कालीन उद्योग मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस, स्वास्थ्य मंत्री राज नारायण, विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और सूचना प्रसारण मंत्री लालकृष्ण आडवाणी, सबका दबाव था कि इंदिरा को तत्काल गिरफ्तार किया जाए.

पर तत्कालीन गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह के सामने दूसरी राजनीतिक चुनौतियां भी थीं. हालांकि उन्होंने अधिकारियों को इंदिरा की फाइल खंगालने पर लगा जरूर लगा था, लेकिन कहीं न कहीं उनके मन में इंदिरा गांधी के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर भी जरूर था. आखिरकार वह पंडित नेहरू की बेटी थीं और इंदिरा ने अपने दम पर देश पर 11 साल तक राज भी किया था.

इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के बाद लखनऊ की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में चरण सिंह ने इसे स्वीकार भी किया था और कहा था कि वह बहन की तरह इंदिरा का सम्मान करते हैं.

यूं रचा गया था इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी का चक्रव्यूह

उस दौर में कैबिनेट सहयोगियों का दबाव काम आया और चौधरी चरण सिंह ने भी इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी का मन बना लिया. इसके लिए एक भरोसेमंद अफसर चाहिए था. चौधरी चरण सिंह ने सीबीआई के एसपी एनके सिंह को इस काम के लिए चुना. लेकिन उनको साफ आदेश थे. इंदिरा गांधी को हथकड़ी नहीं लगेगी और कोई बुरा बर्ताव नहीं होगा.

पहले एक अक्टूबर को होनी थी गिरफ्तारी: इंदिरा गांधी को पहले शनिवार, एक अक्टूबर 1977 को गिरफ्तार करने की योजना बनाई गई. लेकिन चौधरी चरण सिंह की पत्नी ने आशंका जाहिर की कि शनिवार को गिरफ्तारी होने से गड़बड़ी हो सकती है. चौधरी चरण सिंह के स्पेशल असिस्टेंट और आईबी के पूर्व डीआईजी विजय करण ने भी सुझाव दिया कि गिरफ्तारी 2 अक्टूबर के बाद हो.

3 अक्टूबर, शाम 4:55 बजे: सीबीआई की टीम इंदिरा गांधी के आवास 12 विलिंग्डन क्रेसेंट के बाहर खड़ी थी. स्थानीय पुलिस भी मौजूद थी. वे अंदर घुसे. इंदिरा गांधी के एक सहयोगी दरवाजे पर आए. उन्हें बताया गया, ”हम प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के सेक्शन 5 (2) के तहत श्रीमती इंदिरा गांधी को कस्टडी में लेने आए हैं.”

सहयोगी यह सुनकर जितनी तेजी से अंदर गए, इंदिरा के बेटे संजय गांधी उतनी ही तेजी से बाहर निकले. शाम 5 बजे घर का फोन बजा और संजय की पत्नी मेनका गांधी ने उठाया. फोन पर इंडिया टुडे के रिपोर्टर थे, जो इंटरव्यू के लिए पूछ रहे थे. मेनका गांधी ने भांप लिया कि कुछ गड़बड़ है. उन्होंने जवाब दिया, श्रीमती गांधी अभी व्यस्त हैं, हम सभी व्यस्त हैं, यहां सीबीआई पहुंची हुई है.

ठीक उसी समय चौधरी चरण सिंह एफआईआर की कॉपी देख रहे थे. अचानक वह चीखे, उन्हें बुलाओ. असिस्टेंट ने पूछा किन्हें? वह फिर चीखे, सीबीआई के लोगों को, यह वह केस नहीं है, जिस पर अभी ऐक्शन लिया जाना चाहिए था. पर तब तक देर हो चुकी थी. उन्हें बताया गया कि सीबीआई और स्थानीय पुलिस इंदिरा के घर पर है.

एक घंटे के भीतर ही बहू मेनका गांधी और आरके धवन ने खलबली मचा दी

रिपोर्ट के मुताबिक, गिरफ्तारी करने वाले अधिकारी ने इंदिरा गांधी को एक घंटे का वक्त दिया था. यह एक घंटा ही इंदिरा गांधी और उनके सहयोगियों के लिए पर्याप्त था. मेनका गांधी ने सूर्या मैग्जीन को फोन लगाया, जिसकी संपादक वह खुद थीं. दूसरों ने इंदिरा के सबसे खास आरके धवन को फोन लगाया. देश की सबसे शक्तिशाली महिला के घर से फोन घनघनाने लगे और जनता सरकार के देखते ही देखते खलबली मच गई.

3 अक्टूबर शाम 6:05 बजे: इंदिरा गांधी बरामदे में आईं और आते ही पूछा, हथकड़ियां कहां हैं. उन्होंने कहा कि मैं बिना हथकड़ी के नहीं जाने वाली. एक शोर सा उठ खड़ा हुआ. उधर मेनका गांधी के फोन कॉल ने बिल्कुल मनचाहा परिणाम दिया. सूर्या मैग्जीन में उनके असिस्टेंट एडिटर रघु कृष्णन ने उस समय के लगभग सभी बड़े विदेशी मीडिया संस्थानों को कॉल कर दिया. सबको सधे अंदाज में एक ही खबर दी गई. सीबीआई श्रीमती गांधी के घर पर है.

देश में इंदिरा के सारे करीबियों के फोन बजे. देशव्यापी प्रतिरोध की तैयारियों का खाका एक घंटे में खींचा गया. तब के यूथ कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर ने इसी दौरान पार्टी के नौजवान नेताओं तक संदेश पहुंचा दिया. थोड़ी ही देर में विलिंग्डन क्रेसेंट के बाहर सैकड़ों चेहरे नारों के साथ मौजूद थे.

संजय गांधी ने युवा समर्थकों को संभाला, मेनका गांधी और यशपाल कपूर ने प्रेस और समर्थकों का स्वागत किया. गेट को पुलिस ने घेर लिया. इस बीच इंदिरा गांधी के बड़े बेटे राजीव गांधी स्क्रू ड्राइवर और प्लायर्स को हाथ में लेकर क्यों टहल रहे थे, यह किसी को समझ में नहीं आया.

इंदिरा गांधी के वकीलों ने अरेस्टिंग ऑफिसर को घेर रखा था. उनके वकील फ्रेंक एंथनी ने कहा, एफआईआर की कॉपी दीजिए. अधिकारी ने कहा कि सॉरी सर, मैंने इसे श्रीमती इंदिरा गांधी के सामने पढ़ दिया है और मैं आपको इसकी कॉपी देने के लिए बाध्य नहीं हूं.

3 अक्टूबर शाम 7:30 बजे: हथकड़ियों को लेकर बहस जारी थी. इसी बीच चरण सिंह ने आदेश दिया. पुलिसवालों को कहो कि उन्हें (इंदिरा को) लेकर तुरंत निकलें. अब वह वक्त आ चुका था. आखिरकार इंदिरा गांधी बाहर निकलीं और कार के ऊपर खड़ी हुईं. खास नेता नीले रंग की मेटाडोर वैन पर सवार हुए जिसे राजीव और संजय चला रहे थे. यह वैन इंदिरा गांधी के पीछे-पीछे चली और इस तरह उनकी गिरफ्तारी हुई.

तब चौधरी चरण सिंह ने कहा कि उन्होंने फिर मुझे धोखा दिया

3 अक्टूबर 1977 को ही देर रात इंफॉर्मल कैबिनेट बैठक बुलाई गई. चरण सिंह 15 मिनट देर से पहुंचे. तब तक तत्कालीन पीएम मोरारजी देसाई ने रक्षा मंत्री जगजीवन राम का सुझाव मान लिया कि अभियोजन पक्ष को पुलिस रिमांड नहीं मांगनी चाहिए. बाद में चौधरी चरण सिंह ने अपने परिवार के एक सदस्य से इस घटना का जिक्र किया. ‘चौधरी साहब को इतने गुस्से में कभी नहीं देखा.’ चौधरी चरण सिंह को तब कहते हुए सुना गया था कि उन्होंने फिर मेरे साथ धोखा किया.

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चलिए अब लौटते हैं प्रियंका गांधी के किस्से पर

यह तो रहा 3 अक्टूबर 1977 को इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी का किस्सा. अब कांग्रेस नेता इस किस्से को लखीमपुर खीरी जाते वक्त प्रियंका गांधी को हिरासत में लिए जाने की घटना से जोड़ रहे हैं. वे दावा कर रहे हैं कि इतिहास एक बार फिर दोहराएगा. असल में गिरफ्तारी के बाद इंदिरा गांधी की लोकप्रियता में एक बार फिर तेजी से उभार आया था और आखिरकार वह जनता पार्टी के प्रयोग को मात देने में कामयाब साबित हुई थीं.

प्रियंका गांधी 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी को मजबूती देने की कोशिश में जुटी हैं. उस पार्टी को जिसका सितारा यूपी में 5 दिसंबर 1989 से ही गर्दिश में चल रहा है. 5 सितंबर 1989 को नारायण दत्त तिवारी का मुख्यमंत्री कार्यकाल खत्म हुआ था और यूपी में कांग्रेस की वही आखिरी सरकार थी.

तब से लेकर आज तक यूपी में कांग्रेस कोशिश करने का दावा तो खूब करती है, लेकिन सफलता हाथ लगते दिखती नहीं. इस बीच 2017 में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था. तब समाजवादी पार्टी को 47 सीट और कांग्रेस को महज 7 सीटों पर जीत मिली थी. यूपी की जनता को यह साथ पसंद नहीं आया था.

अब इस बार प्रियंका गांधी ने यूपी की कमान फिर से संभाली है. अब तक कांग्रेस ने किसी पार्टी के साथ गठबंधन का ऐलान नहीं किया है. संकेत यही देने की कोशिश हो रही है कि 2022 का चुनाव कांग्रेस अकेले लड़ेगी. ऐसे में क्या इंदिरा की तरह प्रियंका सत्तारूढ़ दल को शिकस्त दे पाएंगी या नहीं, इस सवाल का जवाब अभी भविष्य के गर्भ में छिपा है.

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