राजनीति

यूपी में सारी पार्टियां ब्राह्मण वोटर्स के पीछे, अब BJP ने इस रेस के लिए की खास तैयारी

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों ही कमर कस चुके हैं. हर बार की तरह इस बार भी यूपी की सियासत में राजनीतिक दल जातियों को देखकर दांव पर लगा रहे हैं. पर इस बार जातियों की राजनीति का मामला थोड़ा अलग नजर आ रहा है. इस बार कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी), तीनों ने ब्राह्मण वोटर्स को अपने पाले में खींचने की जुगत भिड़ा रखी है. अब इस रेस में यूपी की सत्ताधारी पार्टी यानी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भी शामिल हो चुकी है.

बीजेपी ने विद्वत समाज सम्मेलन एवं अभिनंदन के जरिए यूपी में ब्राह्मण वोटर्स को साधने की योजना तैयार की है। बीजेपी के ब्राह्मण नेता इसके मद्देनजर प्रदेश में उतारे जाएंगे। यूपी बीजेपी ने राजस्थान के राज्यपाल और यूपी के कद्दावर नेता कलराज मिश्र, केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडे व अजय मिश्रा टेनी सहित अन्य बीजेपी नेताओं की मौजूदगी में ऐसे समारोह करने का फैसला लिया है।

29 अगस्त से होगा आगाज

यूपी बीजेपी ने ब्राह्मण वोटर्स के लिए तैयार की खास रणनीति का आगाज 29 अगस्त से करने का मन बनाया है. 29 अगस्त को सहकारिता भवन में सम्मेलन एवं अभिनंदन समारोह का आयोजन किया जाएगा. यह आयोजन बीजेपी विद्वत समिति यूपी की तरफ से होगा. इसका विषय भारतीय संस्कृति एवं समाज के उत्थान में विद्वतजनों की भूमिका रखा गया है. इस कार्यक्रम में ब्राह्मण समाज के लोगों के सम्मान की भी तैयारी की गई है.

क्यों ब्राह्मण वोटर्स को लेकर फिक्रमंद हैं सभी दल?

यूपी में चंहुओर ब्राह्मण वोटर्स के लिए मचे शोर को देखते हुए यह जानना जरूरी है कि आखिर अचानक सारी पार्टियों इसे लेकर चिंतित क्यों नजर आ रही हैं. एक अनुमान के मुताबिक यूपी में ब्राह्मण आबादी 11 से 13 फीसदी के बीच है. राजनीतिक दलों का ब्राह्मण सम्मेलन करना हो या परशुराम की तस्वीरों, मूर्तियों संग तस्वीरें सामने आना, सबका लक्ष्य इस बड़े मतदाता समूह को आकर्षित करना ही है. 2007 में बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने बहुजन के साथ ब्राह्मण को जोड़कर सत्ता तक पहुंचने का एक विनिंग फॉर्म्युला तलाशा था. तबसे यह माना जाने लगा कि यूपी में ब्राह्मणों ने जिस राजनीतिक पार्टी का साथ दिया, सत्ता उसके पाले में जाती दिखी है. इसलिए सभी दल इस विनिंग फॉर्म्युले को दोहराने के लिए बेकरार दिख रहे हैं.

पिछले चुनावी आंकड़ों को देखें तो बीजेपी को दिखती है बढ़त

यूपी के चुनावी गणित की बात करें तो ब्राह्मणों के मामले में बीजेपी का पलड़ा पिछले तीन बड़े चुनावों में भारी ही नजर आया है. सबसे पहले बात करते हैं लोकसभा चुनाव 2014 की. यह चुनाव 1990 के बाद की गठबंधन की राजनीति को बदलने वाला चुनाव साबित हुआ था. बीजेपी ने अकेले दम पर केंद्र में बहुमत का आंकड़ा छुआ था और इसमें सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी यूपी से मिली जीत ने. लोकनीति की स्टडी के मुताबिक 2014 में ब्राह्मणों के 72 फीसदी वोट बीजेपी को गए. कांग्रेस को 11 फीसदी और बीएसवी व एसपी को 5-5 फीसदी वोट मिले. इस चुनाव में अकेले बीजेपी को यूपी में 71 सीटें मिलीं.

अब बात करते हैं 2017 के विधानसभा चुनावों की. बीजेपी ने लोकसभा चुनावों से आगे बढ़ते हुए ही प्रदर्शन किया. ब्राह्मणों के 80 फीसदी वोट बीजेपी को मिले. बीजेपी को. 312 सीटें मिलीं, जो पार्टी के लिए अभूतपूर्व थीं. 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी दो कदम और आगे निकल गई. सीएसडीएस-लोकनीति के पोस्ट पोल सर्वे के मुताबिक बीजेपी+ को ब्राह्मणों के 82 फीसदी वोट मिले. ऐसा तब हुआ जब बीएसपी और एसपी एक साथ आई थीं और बीजेपी के सामने महागठबंधन की चुनौती थी. महागठबंधन को ब्राह्मण समुदाय के सिर्फ 6 फीसदी वोट मिले. इतने ही वोट कांग्रेस को भी मिले.

हालांकि चुनावी राजनीति में अक्सर वोटों को शिफ्ट होते हुए भी देखा गया है। एक तरफ एसपी, बीएसपी और कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियां हैं, जो ब्राह्मण वोटर्स को 2022 के चुनावों में अपनी ओर आकर्षित करने के लिए राज्य में ब्राह्मणों पर अत्याचार के आरोपों को मजबूती से उठा रही हैं. वहीं अब बीजेपी भी ब्राह्मण बिरादरी की कथित नाराजगी को दूर करने की कोशिश में जुट गई है. ऐसे में 2022 चुनावों के नजदीक आते-आते इस घमासान के और भी तेज होने की उम्मीदें हैं.

इनपुट: कुमार अभिषेक

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