SP के कुनबे में सेंध लगाने की तैयारी! जानिए क्या है BJP का ‘यादव ब्रिगेड’ प्लान?

शिल्पी सेन

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पूर्ण बहुमत पाकर उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी कर चुकी बीजेपी ने अब मिशन 2024 के लिए तैयारी शुरू कर दी है. इसके लिए पार्टी की नजर उस यादव वोट बैंक पर भी है, जिसे अब तक प्रदेश में समाजवादी पार्टी का मूल वोट बैंक माना जाता रहा है. इसके लिए अब पार्टी ने अपनी यादव ब्रिगेड को तैयार करने के काम पर अमल शुरू कर दिया है, जिनके जरिए 2024 से पहले यादव खास तौर पर युवा यादव वोटरों तक पहुंचने का लक्ष्य पार्टी ने बनाया है.

कहते हैं कि बीजेपी ऐसी पार्टी है जो एक चुनाव के बाद दूसरे चुनाव की तैयारी शुरू कर देती है. यूपी चुनाव के नतीजों से उत्साहित बीजेपी ने अब आगे के लिए रोड मैप बनाना शुरू कर दिया है. इस चुनाव के नतीजों की समीक्षा में ये बात सामने आई है कि जहां दूसरे वर्ग के लोगों ने बीजेपी को पहली पसंद के तौर पर वोट दिया है, वहां यादव अब भी समाजवादी पार्टी के कोर वोटर (core voter) हैं.

बीजेपी ने अब अपनी ‘यादव नेताओं को फौज‘ को आगे करने की रणनीति बनाई है. इसके लिए उन चेहरों को भी चुना गया है, जिनकी लोकप्रियता युवाओं के बीच है और उन युवा नेताओं को भी पार्टी मौका दे रही है जो पार्टी कैडर से निकले यादव नेता हैं.

विधानपरिषद चुनाव में एसपी के यादव vs बीजेपी के यादव

विधानपरिषद की 36 सीटों में से बीजेपी ने जहां रमाकांत यादव के बेटे अरुण यादव को आजमगढ़ से टिकट दिया, वहीं यादव बेल्ट के एटा-मैनपुरी सीट पर आशीष यादव ‘आशु’ को प्रत्याशी बनाया. आशीष यादव ‘आशु’ विधानपरिषद के पूर्व सभापति रमेश यादव के बेटे हैं. रमेश यादव मुलायम परिवार में खटास के साथ ही शिवपाल यादव की तरफ हो गए और एसपी के वर्तमान नेतृत्व से उनकी दूरी बढ़ती गई.

ऐसे में उनके बेटे को बीजेपी से विधानपरिषद के टिकट ने लोगों को चौंकाया, लेकिन इसके पीछे पार्टी का ये प्रयोग था कि यादव बेल्ट से उन्हीं की पार्टी में रहे यादव नेता को लड़ाया जाए. आशीष यादव आशु ने बीजेपी के उमम्मीदवार के तौर पर यादव बेल्ट की सीट से जीत दर्ज की.

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रमाकांत यादव के बेटे अरुणकांत यादव को भी बीजेपी ने आजमगढ़ जैसी महत्वपूर्ण सीट और एसपी के गढ़ से टिकट दिया. हालांकि अरुणकांत यादव चुनाव हार गए और बीजेपी के ही एमएलसी यशवंत सिंह के बेटे विक्रांत सिंह ‘रिशु’ ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की. पर अरुणकांत के बहाने पार्टी में सपा के गढ़ में ‘यादव’ को ही आगे करने का दांव चला.

बीजेपी ने विधानपरिषद चुनाव में अपना तीसरा उम्मीदवार अपनी पार्टी के प्रदेश मंत्री और युवा मोर्चा के पूर्व अध्यक्ष सुभाष यदुवंश को बनाया. सुभाष यदुवंश को पार्टी ने इससे पहले भी बड़ी जिम्मेदारियां देकर आगे के लिए तैयार करने का संकेत दिया था. इंजीनियरिंग कर कोचिंग चलाने वाले सुभाष यदुवंश को जब प्रदेश युवा मोर्चा का अध्यक्ष बनाया तो उन्होंने अपने कार्यकाल में हर जिले में यादव युवा कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़ा.

लोकसभा चुनाव में भी एसपी के धर्मेंद्र यादव को हराने के लिए बदायूं में सुभाष यदुवंश को लगाया गया. सुभाष ने यादवों, युवा यादवों को हर जिले में पार्टी पदाधिकारी बनाने के साथ ही पंचायत चुनाव में ब्रज क्षेत्र की जिम्मेदारी संभाली और धर्मेंद्र यादव यादव की बहन बेबी यादव और बहनोई अनुजेश यादव की भी बीजेपी में जॉइनिंग करा दी.

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सुभाष यदुवंश का कहना है,

“दरअसल सैफई परिवार से नाम जुड़ने की वजह से यादव को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है, क्योंकि एसपी वंशवाद और परिवारवाद का पर्यायवाची है. यादव राष्ट्रवादी हैं. यादव गौ-पालक है, तो गौ संरक्षक के साथ रहेगा. मुख्यधारा में रहेगा और विकास करेगा.”

सुभाष यदुवंश

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हालांकि, सिर्फ पार्टी कैडर के यादव ही नहीं बीजेपी को लोकप्रिय यादव चेहरों में भी भरोसा होता दिख रहा है. अखिलेश यादव की खाली की हुई आजमगढ़ की सीट पर एक बार फिर भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ की उम्मीदवारी की चर्चा हो रही है, तो वहीं यूपी फिल्म विकास परिषद के चेयरमैन के तौर पर राजनीति में किस्मत आजमा चुके राजपाल यादव के नाम की चर्चा भी है. दोनों ही औपचारिक घोषणाएं फिलहाल नहीं हुई हैं, लेकिन हाल ही में दोनों ने सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर चर्चा को और बल दिया है.

यादवों पर नजर क्यों?

ऐसा नहीं है कि बीजेपी ने पहले यादव नेताओं को मौका नहीं दिया. पहले धनराज यादव, शिवनाथ यादव, हरनाथ यादव या फिर बाद में महेंद्र यादव और संतराज यादव जैसे नेताओं को पार्टी ने सदन से संगठन तक प्रतिनिधित्व दिया. मगर इस बार यादव नेताओं को आगे बढ़ाने के पीछे महज प्रतिनिधित्व देना नहीं सियासी विरोधी की ताकत को धीरे-धीरे कम करना है. दरअसल इसमें कोई शक नहीं कि उत्तर प्रदेश की सत्ता में यादवों को लाने के लिए मुलायम सिंह यादव ने सबसे पहले योगदान दिया और तब से यादव समाजवादी पार्टी के ‘विनिंग कॉम्बिनेशन‘ M+Y (मुस्लिम-यादव) का अनिवार्य हिस्सा बन गए.

हालांकि, समाजवादी पार्टी में बिखराव और एसपी के चुनावी राजनीति की दौड़ में पिछड़ने पर अब बदली हुई स्थितियों में बीजेपी के लिए एक मौका है. इसके पीछे यादवों को लेकर ये बात भी है कि यादव राजनीति की ताकत से बहुत समय तक दूर नहीं रहना चाहते. शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच राजनीतिक अस्पष्टता ने भी उनको ये सोचने के लिए राह दिखाई. खुद बीजेपी के उम्मीदवार बनकर एटा-मैनपुरी सीट से एमएलसी बने आशीष यादव इसके उदाहरण हैं.

बीजेपी को शायद इसी मौके का इंतज़ार था कि अखिलेश और एसपी की दूसरी बार हार के साथ ही यादव को अपना नया सियासी ठिकाना तलाशना होगा, क्योंकि मुलायम सिंह यादव के साथ आने पर जो राजनीतिक लाभ यूपी में यादवों को मिला था वो अब सपा की दूसरी बार हार से राजनीतिक नुकसान में बदलता नजर आएगा और बीजेपी के रणनीतिकार इसी के इंतजार में थे. क्योंकि अगर कुछ यादव भी बीजेपी की तरफ आए तो इससे मिलने वाला संदेश बड़ा होगा, और 2024 से पहले ये संदेश दिया तो 2027 के लिए बड़ा बदलाव भी ला सकता है.

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