अतीक-अशरफ की मौत के मुद्दे को भुनाने में जुटी BJP, निकाय चुनाव पर क्या होगा असर, समझें

कुमार अभिषेक

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यूपी निकाय चुनाव में एक बार फिर लॉ एंड ऑर्डर बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है. बीजेपी को उम्मीद है कि उमेश पाल मर्डर के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार की सख्त कार्रवाई ने एक बार फिर लॉ एंड ऑर्डर को लेकर लहर पैदा कर दी है, जिसके बाद बीजेपी अपने मजबूत संगठन के जरिए निकाय चुनाव में इसे वोटों की सुनामी में बदल सकती है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश से निकाय चुनाव की सभाएं शुरू की हैं और हर सभा में माफियाओं के खिलाफ मिट्टी में मिला देने की कार्रवाई को मुद्दा बना रहे हैं. इससे यह तय है कि अतीक अहमद से लेकर असद तक की मौत को बीजेपी इस चुनाव में भुना लेना चाहती है.

जिताऊ उम्मीदवार के लिए हर दांव लगाने को तैयार

बीजेपी का संगठन हर उस शख्स पर दांव लगाने को तैयार है, जो चुनाव जीत सकता है. जिस तरीके से बीजेपी ने बिल्कुल आखिरी वक्त में शाहजहांपुर से समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार अर्चना वर्मा को तोड़कर बीजेपी से टिकट दिया, यह दिखाता है कि बीजेपी का संगठन जीत के लिए हर दांव चलने को तैयार है.

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बीजेपी के नए संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह के लिए निकाय चुनाव एक लिटमस टेस्ट की तरह है. संगठन में बिल्कुल चुपचाप काम करने वाले धर्मपाल सिंह खतौली उपचुनाव की हार और रामपुर उपचुनाव की जीत दोनों के सबक के साथ निकाय चुनाव में नए प्रयोग कर रहे हैं.

बीजेपी ने परिवारवाद को कहा ना

धर्मपाल सिंह ने पार्टी के पुराने स्टैंड का प्रयोग और मजबूती से दोहराया. यानि परिवारवाद और करप्शन के आरोपों पर कोई समझौता नहीं होगा. ना तो मंत्री सांसद और विधायक के परिवार से कोई टिकट मिलेगा और ना ही किसी घोटाले के आरोपी को. यानी अगर कोई सांसद, विधायक या मंत्री है, तो उसके पत्नी, बेटे, भाई, मां, करीबी रिश्तेदार को टिकट नहीं मिलेगा. संगठन ने यहां मजबूती से अपने पांव गड़ा दिए हैं. चाहे प्रयागराज से निवर्तमान मेयर और गोपाल गुप्ता नंदी की पत्नी अभिलाषा गुप्ता का मेयर का टिकट कटना हो या फिर अयोध्या के ऋषिकेश उपाध्याय का जिनपर अयोध्या में ज़मीन के घोटाले का आरोप लगा, संगठन ने सख्ती से इस मुद्दे पर स्टैंड लिया. उन सभी नेताओं के हाथ मायूसी लगी, जिन्होंने अपने बेटे-बेटी या पत्नी के लिए इस निकाय चुनाव में आवेदन किया था.

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अपने परिवार के लिए टिकट मांगने वालों की एक लंबी फेहरिस्त थी. लखनऊ से विधायक नीरज वोरा, पूर्व मंत्री मोहसिन रजा, कानपुर एमपी सत्यदेव पचौरी, लखनऊ की पूर्व मेयर संयुक्ता भाटिया सरीखे कई नाम ऐसे थे जो अपनी पत्नी अपनी बेटी-बहू के लिए मेयर का टिकट चाहते थे. इन लोगों ने बकायदा पार्टी में आवेदन भी कर रखा था लेकिन संगठन के आगे परिवार की एक नहीं चली.

मुस्लिमों को भी दिए टिकट

बीजेपी संगठन ने इस बार मुसलमानों के साथ भी नए प्रयोग किए हैं. इस बार नगर निकाय चुनाव में रिकॉर्ड स्तर पर मुसलमानों को टिकट दिए गए इतने टिकट बीजेपी ने पहले कभी नहीं दिए. खासकर नगर पालिका और नगर पंचायत चुनाव के लिए बीजेपी ने कई कैंडिडेट उतारे. नगर पालिका अध्यक्ष के लिए 5 मुस्लिम उम्मीदवार बीजेपी ने दिए हैं. इसमें आजमगढ़, रामपुर, बिजनौर, अंबेडकरनगर, अमरोहा जैसे जिलों में नगर पालिका अध्यक्ष के लिए बीजेपी ने मुस्लिम चेहरों को उतारा है. नगर पंचायत के लिए मुस्लिम चेहरों की भरमार है. इस बार 300 से ज्यादा मुस्लिम चेहरों पर बीजेपी ने यूपी निकाय चुनाव में दांव लगाया है. पार्टी को लगता है कि मुसलमानों का एक बड़ा तबका, जो उनके बीच में बेशक संख्या में कम हो लेकिन पार्टी के साथ खड़ा है, उसे जोड़ने का वक्त है.

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कुछ महीने पहले अनौपचारिक बातचीत में संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह ने दावा किया था कि गोला गोकरण और रामपुर उपचुनाव में मुसलमानों ने अच्छी तादाद में बीजेपी को वोट किया था. कई ऐसे पोलिंग बूथ थे जहां बीजेपी को समाजवादी पार्टी से भी ज्यादा मुसलमानों वोट मिले थे. इसे आधार बनाते हुए बीजेपी संगठन ने इस बार मुसलमानों को लेकर बड़े प्रयोग किए हैं. बीजेपी मुस्लिम मोर्चा के अध्यक्ष बासित अली के मुताबिक पिछली बार की तुलना में 3 गुना से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार इस बार निकाय चुनाव में बीजेपी के संगठन ने उतारे हैं. बासिल अली का कहना है कि अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम संगठन की उम्मीदों पर खरा उतरें और मुसलमानों के भीतर अपने समर्थकों को बूथ तक ले आएं. बीजेपी को लगता है अतीक अहमद मामले के सख्ती से निपटारे के बाद निकाय चुनाव स्वीप करने की स्थिति बन रही है और उसमें संगठन की भूमिका बेहद अहम हो गई है.

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