AMU के ‘इस्लामिक स्टडीज’ में होगी सनातन धर्म की पढ़ाई, थियोलॉजी के प्रोफेसर ने सवाल खड़े किए
Aligarh News: पाकिस्तान के इस्लामिक स्कॉलर अबुल अला मोदुदी की किताबों को अपने सिलेबस से हटाने वाला अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का इस्लामिक स्टडीज विभाग अब…
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Aligarh News: पाकिस्तान के इस्लामिक स्कॉलर अबुल अला मोदुदी की किताबों को अपने सिलेबस से हटाने वाला अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का इस्लामिक स्टडीज विभाग अब विद्यार्थियों को सनातन धर्म की पढ़ाई भी करवाएगा. विभाग की ओर से यह कोर्स पोस्ट ग्रेजुएशन में शुरू किया जा रहा है. कोर्स का उद्देश्य सभी मजहबों की बारीकियों को सिखाना है.
बता दें कि पिछले दिनों इस्लामिक स्टडीज विभाग में पाकिस्तान के स्कॉलर मौदुदी के विचार पढ़ाने को लेकर 20 से ज्यादा शिक्षाविदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था, जिसके बाद विवादों से बचने के लिए इस्लामिक स्टडीज विभाग ने मौदुदी ओर सय्यद कुतुब की किताबों को अपने सिलेबस से हटा दिया था. अब विभाग सनातन धर्म की पढ़ाई भी कराएगा, लेकिन इसको लेकर एएमयू के थियोलॉजी विभाग के पूर्व चेयरमैन प्रोफेसर मुफ्ती जाहिद अली खान ने सवाल खड़े किए हैं. उनका कहना है कि अगर सनातन धर्म पढ़ाना शुरू कर रहे हैं, तो उसके लिए अलग विभाग बनाया जाना चाहिए.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पीआरओ ने कहा,
“सनातन धर्म को 50 साल से हमारे यहां एएमयू में थियोलॉजी विभाग पढ़ा रहा है. इस बार इस्लामिक स्टडीज विभाग ने भी इस कोर्स को अमल में लाने के लिए कोशिश शुरू कर दी है और बहुत जल्दी एमए के कोर्स में इसको बहुत मुमकिन है कि शुरू कर दिया जाएगा. यह एक अच्छी मिसाल है. क्योंकि यहां पर हर धर्म हर जाति हर वेश के छात्र पढ़ते हैं और यह एक आवासीय विश्वविद्यालय हैं.”
उमर सलीम पीरजादा
उन्होंने आगे कहा, “सर सैयद अहमद खान ने यह पहल की थी कि आपको दूसरे मजहब का भी इज्जत करनी चाहिए. इसका निष्कर्ष यह है कि मानव सेवा करनी चाहिए उसी चीज को लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं. यह एक देश के लिए बहुत बेहतर चीज होगी. यह पहले से ही थियोलॉजी विभाग में पढ़ाया जा रहा था. अब इस्लामिक स्टडीज का विभाग है उसमें एमए कोर्स के लिए पहल की है. जल्द ही यह कोर्स विभाग में शुरू कर दिया जाएगा.”
प्रोफेसर मुफ्ती जाहिद अली खान ने खड़े किए सवाल-
इस्लामिक स्टडीज विभाग में सनातन धर्म कोर्स को शुरू करने को लेकर थियोलॉजी विभाग के पूर्व चेयरमैन प्रोफेसर मुफ्ती जाहिद अली खान ने ही सवाल खड़े किए हैं. उनका कहना है कि ‘इस्लामिक स्टडीज का धर्म से उस तरह कोई ताल्लुक नहीं है जैसा कि थियोलॉजी में हुआ करता है. थियोलॉजी एक धर्म होता है और वहां धर्म का अध्ययन होता है. यहां धर्म का अध्ययन नहीं होता यहां उसके इतिहास का अध्ययन होता है. इस विभाग में इस्लाम का मुताला होता है. जहां तक सनातन धर्म का ताल्लुक है जिसको हम लोग समझते हैं कि इसका असल नाम वैदिक धर्म है या इसका नाम शाश्वत धर्म है. सनातन धर्म उसकी एक शाख है. तो अगर सनातन धर्म आएगा तो आर्य समाज आएगा, प्रार्थना समाज आएगा और इसके साथ-साथ ब्रह्म समाज वगैरा भी आएगा. तो हम समझते हैं कि जो पढ़ाया जा रहा है उसके पढ़ाने की जरूरत नहीं है.’
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उन्होंने आगे कहा, “इस्लामिक स्टडीज का यह काम नहीं है बल्कि अलग से एक ऐसा विभाग होना चाहिए. जैसे संस्कृत के अंदर पाली और बुद्ध पढ़ाया जाता है. इसीलिए हिन्दू धर्म के लिए अलग से एक विभाग होना चाहिए. हमारे यहां इसका नाम वैदिक धर्म होना चाहिए. हम यह समझते हैं कि सनातन जो है वह उसकी एक हिस्ट्री है और अंबेडकर ने लिखा है. इसकी पढ़ाई होनी चाहिए लेकिन इस्लामिक स्टडीज से कोई ताल्लुक नहीं है. इस्लामिक स्टडीज में कोई धर्म नहीं पढ़ाया जाता है. अगर कोई धर्म नहीं पढ़ाया जाता तो वह सनातन धर्म ही क्यों बनाया जाएगा.”
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