वाराणसी: बुनकरों ने हाई स्पीड करघे पर बुन दिया तिरंगा, लागत ₹70 पर बांटे जाएंगे मुफ्त

रोशन जायसवाल

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Varanasi news: देश इस साल आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर अमृत महोत्सव मना रहा है और हर घर तिरंगा अभियान के तहत तिरंगा फहराया जा रहा है. इसी क्रम में सभी भारतवासी अपने-अपने तरीके से राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रप्रेम को प्रकट भी कर रहे हैं. उन्हीं में वाराणसी के बुनकर भी शामिल हैं. बनारसी साड़ी की बिनाई के लिए मशहूर ये बुनकर आज हाई स्पीड करघे पर तिरंगा बुने जा रहे हैं. पूरी तरह से मानक के अनुरूप तिरंगे की इस बुनाई का लक्ष्य पैसा कमाना नहीं है. ये बुनकर तिरंगे को ही लोगों के बीच खासतौर से अपने समाज में फ्री बांटने की तैयारी में हैं. ऐसा इसलिए ताकि सभी आजादी के इस महापर्व में शरीक हो सकें.

ऐसा पहली बार हो रहा है कि लगभग 1000 साल पुराने बनारस के बिनकारी के पेशे में बुनकर अपने करघे से साड़ी या ड्रेस मटेरियल बुनने के बजाय कुछ और नया प्रयोग कर रहे हों. दरअसल इस बार आजादी के अमृत महोत्सव और हर घर तिरंगा अभियान को सफल बनाने के तहत राष्ट्रीय ध्वज की मांग बढ़ी है. इसी को देखते हुए बनारस के बड़ी बाजार के रहने वाले युवा बुनकर जियाउर रहमान और उनके परिवार के सदस्यों ने अपने हाई स्पीड करघे से तिरंगा की बुनाई करने की ठानी. कम वक्त और नई चुनौती को देखते हुए उन्हें दिन-रात एक करना पड़ा. तब कहीं जाकर उन्हें सफलता हाथ लगी.

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इस बारे में और जानकारी देते हुए युवा बुनकर जियाउर रहमान बताते हैं कि कुछ दिनों पहले ही ऐसा करने का विचार आया. हर कोई अपने स्तर से आजादी के महापर्व को मना रहा है तो उन्होंने भी अपना फर्ज समझा कि कुछ नया किया जाए. इसी के चलते पहली बार हाई स्पीड करघे पर उन्होंने तिरंगा बनाना शुरू कियाय. उन्होंने बताया कि तिरंगे के मानक का पूरा ख्याल रखा गया है. 3-2 के अनुपात के अलावा रंगों का संयोजन और अशोक चक्र की 24 तीलियां पूरे मानक के अनुसार ही बुनी गई हैं.

उनके द्वारा बुने गए राष्ट्रीय ध्वज में खास बात यह है कि इसे सूती और रेशम के धागों को मिलाकर तैयार किया गया है. इसकी मजबूती भी अन्य तिरंगे में इस्तेमाल होने वाले कपड़े से कहीं ज्यादा है. इसकी फैब्रिक से लेकर बुनाई का तरीका साड़ी जैसा ही है. तिरंगे को निशुल्क लोगों में वितरित किया जा रहा है ताकि वे भी इस पर्व का हिस्सा बन सकें. एक तिरंगे को तैयार करने में लगभग 70 रुपये तक की लागत आई है.

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उन्होंने बताया कि पारंपरिक जकाट की मशीन पर अगर तिरंगे को बुनने जाते तो महीनों का वक्त लग जाता. इसलिए वे इलेक्ट्रॉनिक जकाट की मशीन पर कम समय में ज्यादा तिरंगे बना पा रहे हैं. वही जियाउर रहमान के पिता मो यासीन बताते हैं कि हम जब अपने हुनर से साड़ी, सूट और ड्रेस मैटेरियल तैयार करते ही हैं, तो हमने सोचा कि इस बार क्यों ना तिरंगा बनाया जाए. उनके तिरंगे में ना तो जोड़ है और ना ही पेंटिंग करके अशोक चक्र बनाया गया है. तीनों ही रंगों का विशेष ख्याल भी रखा गया है. उन्होंने बताया कि अभी सिर्फ उनकी तरफ से ही तिरंगा बनाया जा रहा है, लेकिन उनकी गुजारिश है कि सरकार बुनकरों पर ध्यान दे और देशभर के बुनकर तिरंगा अपने करघों से बनाए ताकी जगह-जगह तिरंगा लहरा सके.

डिजाइनर सैफुद्दीन ने बताई डिजाइन बनाने की कहानी

साड़ी का नक्शा बनाने वाले नक्शेबाज यानी डिजाइनर के लिए भी तिरंगे को डिजाइन करना माफी मुश्किल था. ऐसा इसलिए क्योंकि डिजाइन में रंगों, तिरंगे के साइज और अशोक चक्र का बहुत ही बारीकी से ख्याल रखना था. साड़ी डिजाइनर सैफुद्दीन बताते हैं कि झंडे को डिजाइन करने का मौका पाकर उन्हें बड़ी खुशी मिली. उन्होंने अपने द्वारा डिजाइन किए गए तिरंगे के बारे में बड़ी जानकारी देते हुए बताया कि बनारसी साड़ी पर एक ही तरफ से डिजाइन बनती है जबकि उसके दूसरे हिस्से को पहनने में उपयोग नहीं किया जा सकता है. इससे अलग उनके द्वारा बनाया गया तिरंगा दोनों तरफ से एक समान है, क्योंकि जब वह हवा में फहरेगा तो दोनों ही तरफ से एक जैसा लगना चाहिए.

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उनके द्वारा बनाए गए तिरंगे का कपड़ा और कलर भी काफी मजबूत है. उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना है कि हर घर में तिरंगा लहराए. इसलिए कम समय में तिरंगा तैयार करके अपने पूरे क्षेत्र में इस बांट रहे हैं. उन्होंने बताया कि मात्र चार-पांच दिनों में ही झंडे को डिजाइन करके बना दिया गया है. इसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी है.

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