ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मामले की पूरी कहानी, जानें 40 साल पहले शुरू हुआ संघर्ष कैसे पहुंचा इस मुकाम पर

उदय गुप्ता

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Varanasi News : वाराणसी के ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में ASI सर्वे की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद हिंदू पक्ष काफी उत्साहित नजर आ रहा है और इस रिपोर्ट को इस पूरे मामले में मील का पत्थर बता रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह पूरा मामला कब शुरू हुआ था. आज हम उन पक्षकारों की ही जुबानी इस पूरे प्रकरण की कहानी सुनाएंगे. हम आपको यह भी बताएंगे कि श्रृंगार गौरी मामले कि वह चार महिला पक्षकार इस पूरे मामले से कैसे जुड़ी. साथी हम आपको यह भी बताएंगे कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की सर्वे की रिपोर्ट सामने आने के बाद हिंदू पक्षकार और महिला वादी क्या कह रही हैं.

40 साल पहले शुरू हुआ संघर्ष 

ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मामले में हिंदू पक्ष के सोहनलाल आर्य बताते हैं कि इस पूरे मामले की शुरुआत तकरीबन 40 साल पहले 1984 में हुई थी.उस वक्त सोहनलाल आर्य विश्व हिंदू परिषद से जुड़े थे और कर सेवा के लिए अयोध्या गए हुए थे.वहा पर आचार्य रामचंद्र परमहंस से मुलाकात हुई और ज्ञानवापी परिसर के संदर्भ में भी बातचीत हुई.अयोध्या से काशी वापस आने के बाद तकरीबन 6 महीने तक सोहनलाल आर्य ने परिसर का भ्रमण किया. उस दौरान ज्ञानवापी परिसर में ही एक तरफ आर एस एस की शाखा लगा करती थी.इस दौरान ही जानकारी मिली कि इस मामले में श्रृंगार गौरी एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकती है. इसके बाद वे लोग परिसर के पश्चिमी भाग में गए जहां पर एक पिलर मौजूद था. बताया गया कि पहले यहां श्रृंगार गौरी की अनुमति लेकर ही विश्वेश्वर महाराज का दर्शन किया जाता था.

जब दर्शन पर लगी थी रोक

सोहनलाल आर्य आगे बताते हैं कि इसके 15 दिनों के बाद उन लोगों ने शृंगार गौरी का जिला अभिषेक किया. इसके बाद हर साल श्रृंगार गौरी का जलाभिषेक किया जाने लगा.लेकिन इसके बाद उत्तर प्रदेश की  तत्कालीन मुलायम सिंह की सरकार द्वारा इसका विरोध किया जाने लगा. इसको लेकर कई बार गिरफ्तारियां भी की गई. जलाभिषेक को रोकने के लिए वहां पर बैरिकेडिंग भी लगा दी गई थी. सोहनलाल आर्य बताते हैं कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य उन दिनों इलाहाबाद में विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारी हुआ करते थे.उनको भी बुलाया गया.लेकिन जिला अभिषेक के दौरान पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया जिसमें केशव प्रसाद मौर्य के हाथ में चोट आई थी और उनका हाथ फैक्चर हो गया था.दर्शन पूजन पर रोक लगा दी गई थी लेकिन उसके बाद साल में एक बार दर्शन पूजन की अनुमति मिली.1995 में सोहनलाल आर्य इस मामले के वादी बने. सोहनलाल आर्य ने बताया कि कोर्ट से सर्वे का आदेश भी हुआ.लेकिन उसके बाद मुलायम सरकार में हम लोगों की काफी प्रताड़ना होने लगी.

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औरंगजेब के फतवे से तोड़ा मंदिर

सोहनलाल आर्य बताते हैं कि इसके बाद उन लोगों की फेसबुक के माध्यम से वकील हरिशंकर जैन से संपर्क हुआ.हरिशंकर जैन इन लोगों को सलाह दी कि शृंगार गौरी  मामले में महिलाओं को वादी बनाया जाए. इसके बाद लक्ष्मी देवी सीता साहू मंजू विकास और रेखा पाठक इस मामले की पक्षकार बनी. इसके बाद आंदोलन शुरू हुआ. 2022 में एडवोकेट कमीशन सर्वे हुआ जिसमें बहुत सारे साक्ष्य सामने आए इससे इन महिलाओं का भी काफी उत्साह बढ़ा. इसके बाद आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया की जब 839 पन्नों की रिपोर्ट आई तो  सब कुछ क्लियर हो गया. सोहनलाल आर्य कहते हैं कि सी के सर्वे में मंदिर परिसर में भगवान राम हनुमान जी और हिंदू देवी देवताओं के चिन्ह मिले हैं. 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब के फतवे से यह मंदिर तोड़ दिया गया था.आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया को यह फतवा भी मिला है जो फारसी भाषा में लिखा हुआ है.

महिला पक्षकारों के संदर्भ में बताते हुए सोहन लाल आर्य ने कहा कि इन घरेलू महिलाओं की हिम्मत की दाद देनी होगी. जो घर बार का काम छोड़कर और खतरा मोल लेकर इस संघर्ष में जुटी रही.यह सभी महिलाएं सामान्य परिवार की हैं.सोहनलाल आर्य कहते हैं कि अब मुस्लिम पक्ष को खुद ही इस पूरे मामले से हट जाना चाहिए. इसके बाद हम लोग यहां पर भगवान आदि विशेश्वर का भव्य मंदिर बनवाएंगे.

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महिला पक्षकार ने बताई ये बात

ज्ञानवापी  श्रृंगार गौरी मामले की महिला पक्षकार सीता साहू बताती हैं कि हम लोग मां श्रृंगार गौरी की उपासक हैं. हम लोग जब वहां दर्शन करने जाते थे तो हमारी निगाहें बरबस वहाँ नंदी की पर पड़ जाती थी तो मन में एक छटपटाहट होती थी.मन में ही सवाल उठता था कि इतने बड़े नदी आखिर उस तरफ क्यों देख रहे हैं. पश्चिमी दीवाल की तरफ भी अनगिनत  टूटी फूटी मूर्तियां पड़ी हुई थी. दीवारों पर स्वास्तिक बने हुए थे त्रिशूल बने हुए थे तो मेरे मन में हमेशा सवाल उठता था.हम लोग श्रृंगार गौरी का दर्शन सिर्फ साल में एक बार करते थे. बहुत कम समय मिलता था और बहुत ज्यादा भीड़ होती थी. सीता साहू आगे बताते हैं कि जैसा नाम से ही प्रतीत होता है कि श्रृंगार गौरी श्रृंगार की देवी हैं और सुहाग की देवी हैं. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट आने के बाद सीता साहू काफी उत्साहित नजर आती हैं और कहती हैं कि  यह सिर्फ हम लोगों की नहीं बल्कि सारे सनातनियों की जीत हुई है.जो सत्य पर पर्दा डाला जा रहा था और छुपाया जा रहा था वह सत्य अब सामने आ गया है.

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ओवैसी के बयान पर नाराजगी

ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी की एक अन्य महिला पक्षधर लक्ष्मी देवी बताती हैं कि हम लोग इस मामले से 3 साल पहले जुड़े थे. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट आने के बाद हम लोग काफी खुश हैं कि हमारे ज्ञानवापी का सच सामने आ गया है.हम लोग चाहते हैं कि वहां जो शिवलिंग मिला है उसका भी आर्कोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया द्वारा सर्वे हो जाए. उधर असदुद्दीन ओवैसी को भी सोहनलाल आर्य ने आड़े हाथों लेते हुए कहा कि ओवैसी का रहे हैं कि यह रिपोर्ट हिंदू गुलामी की प्रतीक है. मेरा कहना है कि विगत कालखंड में तलवार के बल पर हमारे मंदिरों को छीना गया.लेकिन हम कानून की मदद से अपने मंदिरों को वापस लेंगे.हम लोग मांग करते हैं कि परिसर में जो शिवलिंग मिला है उसका भी कार्बन डेटिंग हो.ताकि सभी चीज बिल्कुल साफ-साफ क्लियर हो जाएं.

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