जिस मकान को धरोहर घोषित करना था उसपर बुलडोजर चलाया... हॉकी के महान खिलाड़ी मोहम्मद शाहिद के परिवार का दर्द!
स्वर्गीय पद्मश्री मो. शाहिद के पुश्तैनी मकान को वाराणसी में सड़क चौड़ीकरण के कारण बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया गया. परिवार ने शादी और पुनर्वास के लिए मोहलत मांगी थी, लेकिन उन्हें समय नहीं मिला. मुआवजे की राशि और पुनर्वास व्यवस्था को लेकर भी परिवार ने चिंता जताई.
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भारतीय हॉकी के चमकते सितारे, पद्मश्री और ओलंपियन स्वर्गीय मो. शाहिद का वह पुश्तैनी मकान जहां से उन्होंने अपने खेल करियर की शुरुआत की थी, रविवार को बुलडोजर की जद में आ गया. लोक निर्माण विभाग (PWD) ने पुलिस और प्रशासन की मौजूदगी में इस मकान समेत कुल 13 मकानों को तोड़ दिया गया. हालांकि कानूनी प्रक्रिया के तहत यह कार्रवाई की गई, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा मो. शाहिद के घर की ही रही, जो अब पूरी तरह मलबे में तब्दील हो चुका है.
उनके परिवार ने सड़क चौड़ीकरण का विरोध नहीं किया, लेकिन शादी और पुनर्वास की गुहार के साथ कुछ समय की मोहलत मांगी थी. दुर्भाग्यवश, वह समय उन्हें नहीं मिल पाया.
पुश्तैनी मकान से जुड़ी थीं कई यादें
मो. शाहिद का यह मकान वाराणसी के कचहरी चौराहे के पास स्थित था. यहीं से उन्होंने हॉकी में अपनी ऐतिहासिक पारी की शुरुआत की थी. यह सिर्फ एक मकान नहीं, बल्कि उनकी यादों और संघर्षों की निशानी थी. हालांकि उनका परिवार इस मकान को पहले ही छोड़ चुका था लेकिन उनके सगे भाई और उनके परिवार अब भी यहीं रह रहे थे. अब यह मकान भी बीते कल की बात हो चुका है.
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परिवार ने मांगा था बस अक्टूबर तक का वक्त
यूपी तक से बातचीत में शाहिद के बड़े भाई राजू ने बताया कि इस मकान पर अदालत से स्टे भी मिला हुआ था और मकान के कुल 9 हिस्सेदार हैं, जिनमें से 6 ने मुआवजा लेकर मकान छोड़ दिया था. लेकिन राजू और उनके परिवार ने सिर्फ अक्टूबर तक का समय मांगा था, क्योंकि घर में बेटी की शादी तय थी.
राजू ने कहा कि, “हमने सिर्फ थोड़ा वक्त मांगा था. कोई जमीन हमारे पास नहीं है और न ही सरकार ने पुनर्वास की कोई व्यवस्था की. अधिकारी आकर कहते हैं सामान निकालो... बताइए, हम जाएंगे कहां?”
9 लोगों में बंटेगा 35 लाख का मुआवज़ा
परिवार का कहना है कि प्रशासन ने 35 लाख रुपए का मुआवजा तय किया है, जिसे 9 लोगों में बांटना है. इस रकम में नए सिरे से बसने की कल्पना करना भी मुश्किल है. मो. शाहिद के एक अन्य भाई मोइनुद्दीन ने बताया कि उन्होंने सिर्फ कुछ महीनों की मोहलत मांगी थी. उनका कहना था, “हमने अक्टूबर तक का वक्त मांगा था. हमने सड़क चौड़ीकरण का विरोध नहीं किया, सिर्फ थोड़ा समय और थोड़ी इज्जत मांगी थी.”
"शाहिद के मकान को धरोहर घोषित करना चाहिए था"
परिवार का दर्द इस बात को लेकर भी है कि देश के लिए गोल्ड मेडल लाने वाले खिलाड़ी का मकान संरक्षित किया जा सकता था. मोइनुद्दीन ने कहा, “जब हमें एक महीना समय नहीं मिला तो मकान को धरोहर घोषित करने का सवाल ही कहां उठता है? बाबू केडी सिंह के बाद देश के लिए गोल्ड मेडल लाने वाला खिलाड़ी मेरा भाई था. लेकिन उसकी यादें भी अब मलबे में दफ्न हो गई हैं.”
देश ने दिया सम्मान, पर परिवार को नहीं मिला संबल
मो. शाहिद को भारत सरकार ने पद्मश्री से नवाज़ा, उन्होंने ओलंपिक समेत कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भारत का प्रतिनिधित्व किया. उनके खेल को देखकर उन्हें "ड्रिबलिंग का जादूगर" कहा जाता था. लेकिन जिस मकान से उनके संघर्ष की शुरुआत हुई, उसे बचाने के लिए उनका परिवार प्रशासन से सिर्फ कुछ समय मांगता रहा.
परिवार का कहना है कि वे देश के कानून और विकास कार्यों का सम्मान करते हैं, लेकिन एक ओलंपियन की विरासत को थोड़ी इज्जत और समय मिल जाता, तो शायद आज हालात कुछ और होते.