रात 2 बजे दी जाती है 48 घंटे वाली दीक्षा, खास चीज पीते ही खत्म हो जाती है कामवासना! नागा साधु ने खोल दिए सारे रहस्य

कुमार अभिषेक

नागा साधु बनने की 48 घंटे वाली दीक्षा रात 2 बजे दी जाती है. खास पेय पीते ही कामवासना खत्म होने का दावा। जानिए नागा साधुओं के रहस्य.

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प्रयागराज: महाकुंभ के दौरान नागा साधुओं की तपस्या और रहस्यमय जीवनशैली लोगों के लिए हमेशा ही कौतूहल का विषय रही है. इन्हीं रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए UP Tak ने महाकुंभ में आए एक नागा साधु दिगंबर विजयपुरी बाबा से खास बातचीत की. मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर से आए बाबा ने बताया कि नागा साधु बनने का सफर बेहद कठिन और रहस्यमय होता है. इस दौरान साधुओं को 48 घंटे की विशेष दीक्षा दी जाती है, जो रात 2 बजे से शुरू होती है. यह दीक्षा गुप्त प्रक्रिया है और इसमें साधुओं को आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां दी जाती हैं, जिनसे उनकी कामवासना पूरी तरह खत्म हो जाती है.

कैसे दी जाती है नागा दीक्षा?


दिगंबर विजयपुरी बाबा ने बताया, "नागा बनने की दीक्षा रात्रि के सबसे शांत समय, 2 बजे से ढाई बजे के बीच दी जाती है. यह प्रक्रिया 48 घंटे तक चलती है. पहले इस प्रक्रिया में झटके दिए जाते थे, जिससे कई साधु जान गंवा बैठते थे. अब दीक्षा के दौरान आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां पिलाई जाती हैं, जिससे साधु अपने मन को पूरी तरह नियंत्रित कर लेते हैं."

कामवासना पर काबू कैसे पाते हैं?


बाबा ने कहा, "मन को नियंत्रित करना ही नागा साधु बनने की सबसे बड़ी चुनौती है. हमारा मन हमेशा कुछ न कुछ पाने की इच्छा करता है, लेकिन नागा साधु बनने के लिए मन को पूरी तरह त्यागना पड़ता है. जैसे मिठाई की दुकान पर जाकर भी अगर मिठाई खाने की इच्छा को दबा लिया जाए, तो मन मर जाता है. यही सिद्धांत कामवासना पर भी लागू होता है."

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रुद्राक्ष और भभूत का महत्व


सवा लाख रुद्राक्ष धारण किए दिगंबर विजयपुरी बाबा ने बताया कि रुद्राक्ष साधुओं के लिए आध्यात्मिक शक्ति का स्रोत हैं. उन्होंने कहा, "ये रुद्राक्ष हमें शांति और ध्यान में मदद करते हैं. इसका वजन लगभग 35 किलो है, लेकिन महादेव की कृपा से हमें कोई परेशानी नहीं होती."

बाबा के शरीर पर भभूत का आवरण था. इसे लेकर उन्होंने कहा, "यह हमारे लिए सबसे पवित्र वस्त्र है. नागा साधु कपड़े नहीं पहनते क्योंकि हमारा जीवन त्याग और तपस्या का प्रतीक है. भभूत हमें सांसारिक सुखों से दूर रखती है."

 

 

मुक्ति की राह पर नागा जीवन


बाबा ने बताया कि नागा साधु बनने का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है. उन्होंने कहा, "यह जीवन हमें बार-बार जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाने के लिए है. हमारी तपस्या और भजन इसी के लिए होते हैं."

नागा बनने की कठिन तपस्या


दिगंबर विजयपुरी बाबा ने बताया कि नागा साधु बनने के लिए 12 से 13 साल तक कठिन तपस्या करनी पड़ती है. इस दौरान साधुओं को सांसारिक जीवन और सुख-सुविधाओं का पूरी तरह त्याग करना होता है.

महाकुंभ में नागाओं का आकर्षण


महाकुंभ में नागा साधुओं की जीवनशैली और उनकी तपस्या हमेशा से श्रद्धालुओं और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र रही है. बाबा ने अंत में लोगों से अपील की कि वे महाकुंभ में शामिल होकर अपने जीवन को पवित्र करें और मोक्ष की ओर अग्रसर हों.

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