होली में रंग पड़ जाएं तो क्या करें मुसलमान? संभल के शहर मुफ्ती कारी अलाउद्दीन ने उपाय बता दिया

अभिनव माथुर

संभल में इस बार होली का त्योहार जुम्मे के दिन पड़ रहा है. इसे लेकर शहर मुफ्ती कारी अलाउद्दीन ने मुस्लिम समुदाय के लिए खास अपील की है.

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Mufti Qari Alauddin
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संभल में इस बार होली का त्योहार जुम्मे के दिन पड़ रहा है. इसे लेकर शहर मुफ्ती कारी अलाउद्दीन ने मुस्लिम समुदाय के लिए खास अपील की है. उन्होंने कहा कि जहां केवल मुस्लिम आबादी वाले इलाके हैं, वहां मस्जिदों में तय समय पर ही नमाज अदा की जाए. लेकिन जिन क्षेत्रों में होली के रंगों का उत्सव चल रहा हो, वहां मस्जिद कमेटियों से विचार-विमर्श कर नमाज का समय एक घंटे आगे बढ़ाने की सलाह दी गई है. इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि होली का त्योहार और जुम्मे की नमाज दोनों शांतिपूर्ण तरीके से मनाया जा सके.

अमन और शांति की अपील

शहर मुफ्ती ने कहा कि हिंदुस्तान हमेशा से शांति और भाईचारे का प्रतीक रहा है. रमजान का पवित्र महीना इबादत के लिए होता है, और इस बार संयोग से होली और जुम्मा एक ही दिन पड़ गए हैं. ऐसे में उन्होंने सुझाव दिया कि होली वाले इलाकों में नमाज का वक्त थोड़ा आगे किया जाए ताकि दोनों समुदाय अपने-अपने तरीके से उत्सव और इबादत मना सकें. उन्होंने जोर देकर कहा कि यह समय आपसी समझ और सहयोग का है.  

शहर मुफ्ती ने बड़ा बयान देकर कहा कि प्रशासन की तरफ से जबरदस्ती रंग डालने वालों को हिदायत भी दी गई है. अगर कोई गलती से रंग डाल देता है तो उसको बर्दाश्त किया जाए ना की कोई मुसलमान भाई की तरफ से कोई कदम उठाया जाए.

 

 

जामा मस्जिद कमेटी से मशवरा

शहर मुफ्ती ने कहा की जामा मस्जिद कमेटी के लोग भी हमारे पास आए थे और उन लोगों ने हमसे मशवरा किया था. तो हमने उनको 1 घंटे आगे नमाज का वक्त बढ़ाने के लिए अपनी राय रखी थी और उनको बताया था कि वह लोग भी हमारे ही वतन के लोग हैं. इसलिए हमें उम्मीद है कि रंग डालने वाले लोग भी एहतियात बरतेंगे और मुस्लिम लोग भी उसी समय मस्जिदों में जाएं जबकि नमाज का वक्त हो जाए.

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आपसी सम्मान का पैगाम

इस अपील का मकसद दोनों समुदायों के बीच तालमेल बनाए रखना है. मुफ्ती ने कहा कि रमजान और होली जैसे पर्व हमें एकता का संदेश देते हैं. अगर दोनों पक्ष थोड़ी सावधानी और समझदारी दिखाएं, तो यह दिन न सिर्फ शांति से गुजरेगा, बल्कि आपसी भाईचारे को भी मजबूत करेगा. संभल के लिए यह एक मिसाल बन सकता है कि कैसे त्योहार और इबादत साथ-साथ चल सकते हैं.

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