कानपुर के किस केस पर भड़का सुप्रीम कोर्ट और यूपी पुलिस के अफसरों पर लगा दिया 50 हजार का फाइन?

यूपी तक

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस के दो अधिकारियों पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगा दिया है. कोर्ट ने इन्हें  संपत्ति विवाद को लेकर गलत तरीके से एफआईआर दर्ज करने के लिए जिम्मेदार माना है.

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सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस के दो अधिकारियों पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगा दिया है. कोर्ट ने इन्हें  संपत्ति विवाद को लेकर गलत तरीके से एफआईआर दर्ज करने के लिए जिम्मेदार माना है. इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "सिविल मामलों में आपराधिक केस दर्ज करना स्वीकार्य नहीं है" और इसे कई महत्वपूर्ण न्यायिक आदेशों का उल्लंघन बताया.

क्या था मामला?

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने यह आदेश दिया. मामले में एफआईआर कानपुर के रिखब बिरानी और साधना बिरानी के खिलाफ दर्ज की गई थी. इन दोनों पर आरोप था कि उन्होंने शिल्पी गुप्ता से संपत्ति खरीदने का समझौता किया था, लेकिन बाद में उसे धोखाधड़ी से बाहर कर दिया.

गुप्ता ने कानपुर में एक गोदाम खरीदने के लिए बिरानी दंपति से 1.35 करोड़ रुपये में एक समझौता किया था. उन्होंने पहले ही 19 लाख रुपये का भुगतान किया, लेकिन जब गुप्ता ने 2020 के सितंबर तक 25% अग्रिम राशि का भुगतान नहीं किया, तो बिरानी दंपति ने गोदाम को एक तीसरे पक्ष को 90 लाख रुपये में बेच दिया और गुप्ता को उसका 19 लाख रुपये का भुगतान वापस नहीं किया.

 

 

गुप्ता ने इस मामले में क्रिमिनल केस दर्ज कराने के लिए स्थानीय कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन दो बार उसकी याचिका खारिज कर दी गई. अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह मामला सिविल विवाद है और इसे आपराधिक मामले के रूप में नहीं लिया जा सकता. इसके बावजूद, स्थानीय पुलिस ने एफआईआर दर्ज की, जिसमें आरोप था कि बिरानी दंपति ने धोखाधड़ी और आपराधिक धमकी दी थी.

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सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकरण को गंभीरता से लिया और कहा कि उत्तर प्रदेश में कानून का शासन पूरी तरह से टूट चुका है. कोर्ट ने यह भी कहा कि "सिविल मामलों को आपराधिक मामलों में बदलना अस्वीकार्य है" और इसका पालन नहीं करना कई न्यायिक आदेशों का उल्लंघन है. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पुलिस अधिकारियों को इस तरह के मामलों में एफआईआर दर्ज नहीं करनी चाहिए और "सिविल मामलों को आपराधिक प्रकृति के मामलों में बदलना ठीक नहीं है". कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि वह अधिकारियों से जुर्माना वसूलकर उसे भरवाए.

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यूपी पुलिस अधिकारियों पर जुर्माना

सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया और कहा कि "इस फाइन को अधिकारियों से वसूल किया जाए". राज्य सरकार के वकील ने जुर्माने को माफ करने की अपील की, लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए यह कहा कि पुलिस अधिकारियों को इस तरह के मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले कड़ी सोच-विचार करना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि यदि इस तरह की घटनाओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता, तो इससे कानून व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. 

(इनपुट: पीटीआई).
 

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