भीड़ ने जब बाबरी को गिराया तो वहीं थे मुस्लिम कारसेवक मंसूरी फिर इनके जीवन में आ गया ट्विस्ट

यूपी तक

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Ram Mandir News: 6, दिसंबर 1992 को जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद तोड़ी गई, तब उस वक्त मौके पर लाखों कारसेवकों की भीड़ जमा थी. इन्हीं कारसेवकों में से एक थे राजस्थान के जयपुर के रहने वाले हाजी गुल मोहम्मद मंसूरी. आपको बता दें कि मंसूरी ने अपनी आंखों से बाबरी मस्जिद को गिरते हुए देखा था. वहीं, अब 22 जनवरी को राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का समारोह है, जिसे लेकर मंसूरी उत्साहित हैं. उनका कहना है कि राम मंदिर अगर हिंदुस्तान में नहीं बनेगा तो क्या इसे पाकिस्तान में बनाया जाएगा? इस बीच यूपी तक के सहयोगी राजस्थान तक ने मंसूरी से खास बातचीत की है. मंसूरी ने तफ्सील से बताया है कि घटना वाले दिन क्या-क्या हुआ था और इसके बाद उनका जीवन कैसे बदल गया था.

गुल मोहम्मद से बन गए थे गुल्लूराम

1992 की घटना को याद करते हुए गुल मोहम्मद मंसूरी ने बताया कि बाबरी मस्जिद के गिरने के बाद वापस जयपुर आने में उनके पसीने छूटे गए थे. राम मंदिर आंदोलन से जुड़ने का असर यह हुआ कि समाज ने उनके खिलाफ उस समय फतवा तक जारी कर दिया था. इसकी वजह से लोगों ने उनका नाम गुल मोहम्मद की जगह गुल्लूराम नाम रख दिया था.

पत्नी ने कर दिया था साथ रहने से मना

मंसूरी ने कहा कि, “बाबरी मस्जिद के ढांचे को नीचे गिराने के बाद हजारों धमकियां मिलीं, जो आज तक जारी हैं. इसकी वजह से डर के चलते पत्नी तक ने साथ रहने से इनकार कर दिया था. परिवार डर के साए में जी रहा था और पुलिस का पहरा 24 घंटे मेरे घर के बाहर तैनात रहता था. जयपुर की जामा मस्जिद से जारी हुए फतवे के बाद समाज में रहना मुश्किल हो गया था.’

उन्होंने आगे बताया, ‘बाद में गुल्लूराम से गुल मोहम्मद बनने के लिए कलमा पढ़ना पड़ा और खुद की पत्नी से दोबारा निकाह करने के बाद वापस मेरा नाम गुल मोहम्मद पड़ा.’

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ऐसे में अब राममंदिर बनने पर गुल मोहम्मद ने खुशी जताते हुए कहा कि यह मंदिर भारत में नहीं बनेगा तो क्या पाकिस्तान में बनेगा? भले ही उन्हें निमंत्रण न मिला हो लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कहा, ‘अल्लाह ने चाहा तो आगे दर्शन जरूर करुंगा.’

1977 में विधायक बने थे मंसूरी

गौरतलब है कि 1977 में गुल मोहम्मद मंसूरी जनता पार्टी से विधायक बने. फिर 1992 में जब राम मंदिर आंदोलन के तहत अयोध्या कूच हुआ और बाबरी मस्जिद को तोड़ा गया तब कारसेवकों की टोली में वह भी शामिल थे. हालांकि मस्जिद को ऊपर वह नहीं चढ़े लेकिन उस ढांचे के नीचे मौजूद थे.

उनका कहना है कि मस्जिद के ढांचे के ऊपर उस वक्त कुछ लोग कारसेवक बनकर नारे लगाने लगे. उसके बाद तनाव बढ़ गया तो सभी मस्जिद के ऊपर चढ़कर ढांचे को तोड़ने लगे. बाद में लाठी डंडे चले तो भगदड़ मच गई. उसके बाद देशभर में बवाल कटा तो जयपुर में भी तनाव बढ़ गया. फिर आंदोलन के बाद ट्रेन से जैसे तैसे जयपुर पहुंचे. मगर अब उन्हें खुशी है कि 1992 का आंदोलन आज रंग लाया है.

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(जयपुर से विशाल शर्मा के इनपुट्स के साथ)

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