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Jaunpur Seat: धनंजय सिंह के BJP के साथ आने से सपा को कितना नुकसान? देखें सियासी समीकरण

यूपी तक

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Srikala Singh Jaunpur BSP Dhananjay Singh
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Jaunpur loksabha Seat: सियासी गलियारों में एक कहावत काफी प्रचलित है और जब भी देश में आम चुनाव आते हैं तब उसका जिक्र जरूर होता है. यह कहावत है- 'दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है', इस कहावत को समझा जाए तो यही कहेंगे कि जिस भी पार्टी का यूपी की 80 लोकसभा सीटों पर शानदार प्रदर्शन रहता है, उसकी केंद्र में सरकार बनाने की संभावना बन जाती है. मालूम हो कि उसी उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में जौनपुर लोकसभा सीट भी है, जो आजकल चर्चा के केंद्र में है. यह एक ऐसी लोकसभा सीट है, जिसकी चर्चाएं चुनावों की तारीखों के ऐलान से ही हो रही है. गोमती नदी के किनारे बसा, अपनी ऐतिहासिक इमारतों और इमरती के लिए प्रसिद्ध ये शहर पिछले कुछ समय से नित नए बदलते सियासी घटनाक्रम के कारण सुर्खियों में बना हुआ है.

क्यों सुर्खियों में है जौनपुर सीट?

 

जौनपुर लोकसभा सीट पर 2009 में बसपा से सांसद रहे और क्षेत्र के बाहुबली नेता धनंजय सिंह इस चुनाव में उतरने के लिए पूरी तरह से तैयार थे. मगर एमपी-एमएलए कोर्ट से 7 साल की सजा होने के बाद वह प्रत्यक्ष रुप से चुनाव से बाहर हो गए. इसके बाद धनंजय की पत्नी श्रीकला सिंह को बसपा ने अपना प्रत्याशी बनाया. श्रीकला का चुनावी प्रचार भी जोर-शोर से चल रहा था. 

 

 

धनंजय को मिली जमानत और बदल गया खेल

इस बीच धनंजय सिंह को इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिल गई. धनंजय ने जेल से निकलकर अपनी पत्नी के प्रचार की कमान संभाली, जिसके बाद श्रीकला की ओर से इस सीट पर कड़ी टक्कर दिख रही थी. मगर ऐन मौके पर रातोंरात बसपा ने अपना प्रत्याशी बदलकर टिकट वर्तमान सांसद श्याम सिंह यादव को दे दिया. इस घटना के बाद एक ओर जहां बसपा ने आरोप लगाया कि श्रीकला ने खुद टिकट लौटाया. वहीं श्रीकला ने इनकार करते हुए टिकट कटने की बात कही. इसके बाद धनंजय सिंह ने अपने समर्थकों की एक बैठक बुलाकर भाजपा को अपना समर्थन दे दिया. भाजपा की मुखालिफत करने वाले धनंजय सिंह अब भाजपा के लिए ही वोट की अपील करते नजर आ रहे हैं. 

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जौनपुर में किस-किस के बीच है मुकाबला?

भाजपा से प्रत्याशी कृपाशंकर सिंह महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा नाम रहे हैं. वे महाराष्ट्र सरकार में मंत्री पद पर भी रह चुके हैं. कृपाशंकर मूल रूप से जौनपुर के ही रहने वाले हैं. अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत कांग्रेस से करने वाले कृपाशंकर सिंह ने 2021 में भाजपा ज्वॉइन कर ली थी. हालांकि एक समय में महाराष्ट्र की राजनीति में उत्तर भारतीयों के चेहरे के रुप में पहचान रखने वाले कृपाशंकर सिंह पर उन्हीं के इलाके में बाहरी होने का टैग लगाया जा रहा है.

 

 

उनके प्रतिद्वंदी और सपा के प्रत्याशी बाबू सिंह कुशवाहा मूलत: बांदा जिले के हैं. अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत बसपा से करने वाले बाबू सिंह मायावती सरकार में मंत्री पद पर रहे. एक समय में बसपा सुप्रीमो मायावती के खास माने जाने वाले बाबू सिंह ने बसपा का साथ छोड़ अपनी पार्टी भी बनाई, लेकिन अभी तक सफल नहीं हो पाए.
 
वहीं इस मुकाबले में सबसे लास्ट एंट्री करने वाले श्याम सिंह यादव राजनीति में आने से पहले प्रशासनिक अधिकारी रहे हैं. यादव ने 2019 लोकसभा चुनाव में राजनीतिक पर्दापण करते हुए बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर जौनपुर से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. यादव ने भाजपा प्रत्याशी कृष्णा प्रताप सिंह को करीब 80 हजार वोटों के अंतर से हराया था. श्रीकला का टिकट कटने के बाद बसपा ने फिर एक बार श्याम सिंह यादव पर दांव खेला है.

क्या है जौनपुर का जातिगत समीकरण?

 

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2019 के लोकसभा चुनावों के आधार पर जौनपुर लोकसभा में 18 लाख 67 हजार 976 मतदाता हैं.  इनमें से 10 प्रतिशत ठाकुर, 9 प्रतिशत ब्राह्मण, 13 प्रतिशत मुसलमान, 16 प्रतिशत अनुसूचित वर्ग, 12 प्रतिशत यादव,  8 प्रतिशत कुशवाहा/मौर्या और अन्य ओबीसी जातियां हैं.

 

 

कितना असर डालेंगे जातिगत समीकरण?

भाजपा प्रत्याशी कृपाशंकर सिंह और धनंजय सिंह दोनों एक ही समाज से होने के कारण इस वोटबैंक के बंटने की उम्मीद कम हो गई है. हालांकि धनंजय सिंह की पकड़ ठाकुर समुदाय के अलावा दलित, ओबीसी और मुस्लिम वोटबैंक पर भी मानी जाती है, लेकिन कांग्रेस के चुनावी बयानबाजी और भाजपा पर दलित और मुस्लिम विरोधी होने के आरोप के कारण इन दोनों समुदायों के भाजपा की ओर झुकाव पर संशय बना हुआ है. वहीं सपा की ओर से बाबू सिंह कुशवाहा को मैदान में उतारकर मुस्लिम-यादव-कुशवाहा समीकरण बनाने की कोशिश की है. तीसरी तरफ बसपा ने श्याम सिंह यादव को उतारकर दलित-यादव समीकरण साधने का प्रयास किया है. जौनपुर की इस हॉटसीट पर  प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला छठे चरण के चुनाव में 25 मई को होगा होगा. देखना अब यह दिलचस्प होगा कि 4 जून को चुनावों के परिणाम आने पर किस पार्टी का खेला हुआ दांव यहां सही साबित होगा.
 

(यह खबर यूपी Tak के साथ इंटर्नशिप कर रहे मनन अवस्थी ने लिखी है.)

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