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छठे, सातवें चरण की वोटिंग से पहले BSP संभली या और लड़खड़ाई? सीट दर सीट समझिए पूरा मामला

कुमार अभिषेक

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Mayawati
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UP News: लोकसभा चुनाव में 5 चरणों की वोटिंग हो चुकी है. अब छठें चरण पर सभी की निगाह हैं. उत्तर प्रदेश की कई हॉट सीटों पर छठें और सांतवे चरण में मतदान होना है. यूपी में मुख्य मुकाबला समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन और भारतीय जनता पार्टी का माना जा रहा है. मगर इस पूरे चुनावों में बहुजन समाज पार्टी को लेकर भी लगातार चर्चाएं होती रही.

मगर जैसे ही पांचवे चरण के चुनाव खत्म हुए, बसपा को लेकर नई चर्चा चल पड़ी. क्या बीएसपी कहीं चुनावी रेस में बाहर तो नहीं? जिस तरीके से बीएसपी लगातार उम्मीदवार बदलती रही और 14 उम्मीदवार उसने ऐलान के बाद बदल डाले उसे बसपा की धार कमजोर पड़ी है. दरअसल भाजपा की B टीम का टैग जो धीरे-धीरे बसपा से हटने लगा था, वह एक बार फिर बसपा पर लगने लगा है. आखिर क्यों मायावती ने इतने उम्मीदवार बदले की उसकी सियासी चाल ही लड़खड़ा गई.

मायावती के 2 फैसलों ने पहुंचा बसपा को भारी नुकसान

इस चुनाव के दौरान बीएसपी के लिए दो ऐसे मोड़ आए, जहां बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए फैसले ने बसपा को नुकसान पहुंचाया और लगभग चुनावी रेस से बाहर कर दिया है. पहले आकाश आनंद को बीच चुनाव से हटा लेना और कोऑर्डिनेटर के पद से यह कहकर बर्खास्त कर देना कि वह भी परिपक्व नहीं हुए हैं, इस फैसले ने बसपा के युवा वोटरों को बेहद ही निराश किया है. इसके बाद से बसपा के युवा वोटर अन्य विकल्प देखने लगे हैं और वह सपा की तरफ जा रहे हैं. 

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दूसरा मौका धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी को  लेकर आया. इस दौरान भी बसपा बैकफुट पर दिखाई दी. दरअसल बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने कैंडिडेट का टिकट काटकर श्रीकला धनंजय को टिकट दिया था, लेकिन मायावती धनंजय सिंह की सियासी चाल नहीं भांप पाई, धनंजय सिंह ने बीजेपी से सेटिंग कर मायावती को ठेंगा दिखा दिया और चुपचाप पत्नी को लेकर भाजपा के साथ हो लिए.

ये दोनों बसपा की चुनाव यात्रा में ऐसे झटके थे, जिससे उबरना बीएसपी के लिए मुश्किल हो रहा है. मायावती के वोटर भी है मानते हैं कि अगर बहन जी ने इंडी गठबंधन के साथ जाने का ऑफर ना ठुकराया होता या कम से कम कांग्रेस को ही साथ ले लिया होता तो शायद आज पार्टी की यह हालत नहीं होती.

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बसपा का कोर वोटर हो रहा मायावती से नाराज

बसपा का कोर दलित वोटर आज भी बीएसपी के साथ मजबूती से बना हुआ है, हालांकि इस समूह में भी पढ़े लिखे और युवा वोटर मायावती से नाराज दिखाई देता है और विकल्प की तलाश में है. ऐसे में वह कहीं-कहीं समाजवादी पार्टी तो कहीं चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी के साथ जाते दिख रहे हैं. मगर बुजुर्ग दलित वोटर आज भी मायावती को ही अपना नेता मानते हैं.

लोकसभा चुनावों को लेकर गंभीर नहीं बसपा!

बसपा की चुनाव की गंभीरता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है की चौथे चरण के चुनाव के पहले तक मायावती अपना उम्मीदवार बदलती रही. यही नहीं उन्होंने अपने भविष्य के चेहरे को भी बेरहमी से हटा दिया और यही से उनका चढ़ता हुआ चुनाव लुढ़कने लगा.

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आप इस सूची पर नजर डालिए उन 14 लोगों के नाम देखिए जिन्हें मायावती ने बीच चुनाव में बदल डाला


जौनपुर-
जौनपुर से बहुजन समाज पार्टी के पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पत्नी श्री कला रेड्डी को बहुजन समाज पार्टी ने अपना कैंडिडेट बनाया था. लेकिन उनका टिकट काटकर बहुजन समाज पार्टी के सांसद रहे श्याम सिंह यादव को टिकट दे दिया. 

वाराणसी-
इसी तरह वाराणसी में भी बसपा ने दो बार टिकट बदला. यहां पर पहले अतहर जमाल लारी को बसपा ने अपना कैंडिडेट बनाया था, लेकिन एक ही हफ्ते बाद बसपा ने अपना प्रत्याशी बदलते हुए सैयद नियाज अली मंजू को प्रत्याशी घोषित कर दिया. लेकिन बाद में इनका टिकट काटकर एक बार फिर अतहर जमाल लारी को प्रत्याशी घोषित कर दिया.

आजमगढ़-
आजमगढ़ में भी बसपा ने पहले भीम राजभर को प्रत्याशी बनाया.उसके बाद उनका टिकट काटकर सबिया अंसारी को प्रत्याशी बनाया गया. लेकिन बाद में सबिया अंसारी का भी टिकट काट दिया गया और उनके पति मसहूद अहमद को प्रत्याशी घोषित कर दिया गया.

अलीगढ़-
अलीगढ़ में पहले बहुजन समाज पार्टी ने गुफरान नूर को अपना प्रत्याशी घोषित किया था, लेकिन बाद में उनकी जगह हितेंद्र उपाध्याय को प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतार दिया.

मथुरा-
मथुरा में भी बसपा ने अपना कैंडिडेट बदला था. पहले मथुरा से कमलकांत उपमन्यु को टिकट दिया गया लेकिन बाद में इनका टिकट काटकर चौधरी सुरेश सिंह को टिकट दे दिया गया.

फ़िरोज़ाबाद-
फिरोजाबाद में बहुजन समाज पार्टी ने पहले सत्येंद्र जैन सोली को अपना उम्मीदवार बनाया था. लेकिन बाद में उनका टिकट काटकर उनकी जगह चौधरी सुरेश सिंह को प्रत्याशी बना दिया.

झाँसी-
झांसी में बहुजन समाज पार्टी ने पहले एडवोकेट राकेश कुशवाहा को अपना प्रत्याशी बनाया था. लेकिन बाद में इनका टिकट काट कर रवि कुशवाहा को दे दिया और उनको अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया.

डुमरियागंज-
डुमरियागंज लोकसभा सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने पहले गोरखपुर के रहने वाले ख्वाजा शमसुद्दीन को अपना प्रत्याशी बनाया था.लेकिन चार दिन बाद ही बसपा नें जब 11वीं सूची जारी की तो उसमें शमसुद्दीन का टिकट काटकर मोहम्मद नदीम मिर्जा का नाम घोषित कर दिया.

संत कबीर नगर:
संत कबीर नगर में बहुजन समाज पार्टी ने पहले मोहम्मद आलम को प्रत्याशी बनाया था.लेकिन 15 दिन बाद ही उनका टिकट काटकर दानिश अशरफ को टिकट दे दिया गया. लेकिन चार दिन बाद ही बहुजन समाज पार्टी ने एक बार फिर अपना प्रत्याशी बदल दिया और यहां से नदीम अशरफ को प्रत्याशी घोषित कर दिया.

मैनपुरी -
बहुजन समाज पार्टी ने मैनपुरी सीट पर पहले गुलशन शाक्य को अपना प्रत्याशी बनाया था.लेकिन तीन-चार दिनों बाद ही इनका टिकट काट दिया और शिव प्रसाद यादव को अपना कैंडिडेट घोषित कर दिया

गाजियाबाद
गाजियाबाद लोकसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी ने पहले अंशय कालरा उर्फ़ राकी को अपना प्रत्याशी बनाया था.लेकिन बाद में बहुजन समाज पार्टी ने अंशय कालरा का टिकट काटकर यहां से नंदकिशोर पुंडीर को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया.

अमेठी:
अमेठी लोक सभा सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने पहले रवि प्रकाश मौर्य को अपना प्रत्याशी बनाया था. लेकिन बाद में इनका टिकट काटकर नन्हे सिंह चौहान को दिया गया.

भदोही-
भदोही से बसपा ने पहले अतहर अंसारी को प्रत्याशी बनाया था.लेकिन इनका टिकट काटकर इरफ़ान अहमद को दे दिया. लेकिन बसपा नें बाद में इनका भी टिकट काट दिया और हरिशंकर सिंह चौहान को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया.

बस्ती-
बस्ती में बसपा के पूर्व प्रत्याशी दयाशंकर मिश्रा का टिकट कटा. उनकी जगह पर लवकुश पटेल को बसपा ने बनाया उम्मीदवार बनाया।

लगातार चुनाव प्रचार कर रही मायावती

बता दें कि इन सब के बाद भी बसपा सुप्रीमो मायावती लगातार चुनाव प्रचार कर रही हैं. वह हर दिन किसी ना किसी लोकसभा क्षेत्र में अपने प्रत्याशी के पक्ष में बड़ी सभा करती नजर आ रही हैं, लेकिन इसका फायदा सिर्फ इतना है कि उनके अपने वोटर में उनके प्रति जो अगाध विश्वास था, वह बचा हुआ है. अगर मायावती इस बार चुनाव प्रचार में नहीं आती, जैसा कि उन्होंने 2022 में किया था, तो उनके कोर वोट बैंक का बड़े स्तर पर बिखरने का खतरा मौजूद था. लेकिन मायावती ने अपने वोट बैंक तो बचा लिया. मगर क्या वह चुनाव बचा पाएंगीं? ये बड़ा सवाल है.

मायावती ने हटा लिया था BJP की B टीम होने का ठप्पा

दरअसल इस चुनाव के पहले मायावती ने बीजेपी की B टीम का ठप्पा लगभग हटा लिया था. कहा जा रहा था कि मायावती ने जिस तरीके से टिकट का वितरण किया है, उससे भाजपा और सपा, दोनों को नुकसान हो सकता है. जैसे मुजफ्फरनगर में प्रजापति उम्मीदवार देना संजीव बालियान के लिए सर दर्द बना रहा. इस चरण में बसपा ने कई जगह ठाकुर उम्मीदवार देकर भाजपा को मुश्किल में डाल दिया था. मगर तीन चरणों के चुनाव के बाद बसपा ने जो किया, उससे बसपा को ही नुकसान हुआ. तब एक बार फिर कहा जाने लगा कि बसपा ने बीजेपी के निशाने पर ये किया है.

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