रायबरेली से जब इंदिरा गांधी को मिली थी करारी शिकस्त, कांग्रेस को आज भी चुभती है ये हार
भारतीय राजनीति के इतिहास में कई मौके ऐसे आए हैं जिन्होंने देश की दशा और दिशा ही बदल दी. उत्तर प्रदेश की रायबरेली ऐसी ही लोकसभा सीट है जो देश की राजनीति में एक अहम मुकाम रखती है.
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Raebareli Seat History : भारतीय राजनीति के इतिहास में कई मौके ऐसे आए हैं जिन्होंने देश की दशा और दिशा ही बदल दी. उत्तर प्रदेश की रायबरेली ऐसी ही लोकसभा सीट है जो देश की राजनीति में एक अहम मुकाम रखती है. यूपी के अमेठी और रायबरेली को पहचान गांधी परिवार के चलते मिली. गांधी परिवार के सदस्यों ने दोनों सीटों का प्रतिनिधित्व करते हुए इसे अपना गढ़ बनाया. इसी परंपरा को निभाते हुए 2024 के चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने रायबरेली लोकसभा सीट से नामंकन दाखिल कर दिया है. देश की सबसे चर्चित लोकसभा सीटों में से एक रायबरेली में मतदाताओं ने जब जिसे चाहा सिर माथे बिठाया और जब जिसे चाहा उतार दिया.
कांग्रेस का गढ़ कही जाती रही रायबरेली की पिच पर राजनीति के बड़े-बड़े सूरमा भी आउट हो चुके हैं. रायबरेली से खुद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी हार का सामना करना पड़ा था. आइए जानते हैं ये देश की राजनीति का ये मजेदार किस्सा.
रायबरेली से कब-कौन लड़ा चुनाव
रायबरेली लोकसभा सीट के इतिहास की बात करें तो सबसे पहले 1952 में फिरोज गांधी ने चुनाव लड़ा और जीते. उसके बाद 1958 में भी उन्होंने चुनाव जीता. उनके निधन के बाद 1967 के चुनाव में इंदिरा गांधी ने इस सीट से पर्चा भरकर राजनीतिक पारी की शुरुआत की. ऐसे में यह सीट गांधी परिवार की विरासत बन गई. 2004 में इंदिरा गांधी की बहू सोनिया गांधी ने चुनाव लड़ा और पांच बार सांसद चुनी गईं.
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एंग्री यंग मैन और देश की राजनीति
साल था 1973 का और उस रोज सिलवर स्क्रीन पर आई एक फिल्म ने लोगों को दीवाना बना दिया था. फिल्म का नाम था जंजीर, जिसने हिन्दी सिनेमा को 'एंग्री यंग मैन' का तोहफा दिया था. एक तरफ तो बड़े पर्दे पर लोगों को 'एंग्री यंग मैन' यानी अमिताभ बच्चन की हीरोगिरी तो खूब भा रही थी तो वहीं दूसरी तरफ देश की राजनीति में सबसे बड़ा उल्टफेर देखने को मिल रहा था. जंजीर के रिलीज होने के दो साल पहले देश की राजनीति में इलाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले से सियासी भूचाल आ गया था.
इंदिरा गांधी को चुनौती
1971 में देश में लोकसभा चुनाव का पांचवां चुनाव हो रहा था. यह साल इंदिरा गांधी के लिए बेहद अहम था. इस वक्त तक कांग्रेस के दो फाड़ हो चुके थे. इंदिरा को कांग्रेस के भीतर से ही चुनौती मिल रही थी. चुनावी मैदान में एक तरफ इंदिरा की नई कांग्रेस और दूसरी तरफ पुराने बुजुर्ग कांग्रेसी नेताओं की कांग्रेस (ओ) थी. पांचवे लोकसभा चुनाव के रिजल्ट जब सामने आए तो लोगों के सामने एक ही नाम था. इंदिरा गांधी अपने एक नारे 'गरीबी हटाओ' की बदौलत फिर से सत्ता में आ गईं. उनके नेतृत्व वाली कांग्रेस ने लोकसभा की 545 सीटों में से 352 सीटें जीतीं. जबकि कांग्रेस (ओ) के खाते में सिर्फ 16 सीटें ही आई.
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रायबरेली के खुद इंदिरा गांधी ने जीत हासिल की और देश की प्रधानमंत्री बनी. उनकी जीत को उनके प्रतिद्वंद्वी राजनरायण ने चुनौती दी. तब संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे राजनारायण को भरोसा था कि वे जीतेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. परिणाम देखकर उन्होंने कोर्ट का सहारा लिया. राजनारायण ने सरकारी तंत्र के दुरुपयोग और चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए चुनाव नतीजे को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी.
राजनारायण को मिली जीत
राजनारायण की इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने इंदिरा के निर्वाचन को अवैध घोषित कर दिया. इसी घटना को देश में इमरजेंसी लागू करने के इंदिरा सरकार के फैसले का आधार माना गया. वहीं इमरजेंसी के बाद 1977 में एक बार फिर देश में लोकसभा चुनाव हुए. इस चुनाव में कांग्रेस को कारारी हार का सामने करना पड़ा.1977 में हुए चुनाव में इस सीट पर फिर से रायबरेली से इंदिरा गांधी के सामने राजनारायण की चुनौती थी. इस बार राजनारायण ने जीत हासिल की और इंदिरा गांधी को हार का सामने करना पड़ा. 1977 लोकसभा चुनाव में राजनारायण से मिली शिकस्त ने इंदिरा गांधी को पूरी तरह से झकझोर दिया था. इस हार के महज तीन साल बाद ही 1980 में हुए चुनाव में जनता ने एक बार फिर कांग्रेस पर विश्वास जताया. इस चुनाव में रायबरेली की जनता ने इंदिरा गांधी को भारी मतों से जीत दिलाई थी.
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