जेल में लगने वाली पगली घंटी, पचासा की कहानी, घड़ी की जगह इससे तय होता है कैदियों का रुटीन

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बदलते वक्त के साथ लोगों का समय देखने का अंदाज भी बदल गया. घंटी की आवाज से सुनने का और उठने का दौर अब बदल गया है. अब लोग घर में घड़ी के अलार्म से उठते हैं और समय देखकर ऑफिस जाते हैं. क्योंकि घर में लोगों के पास हर वक्त घड़ी मौजूद होती है, इसलिए समय का पालन करना आसान होता है. मगर क्या आपको पता है कि उत्तर प्रदेश की जेलों में रहने वाले बंदियों के लिए समय का पता लगाना बेहद मुश्किल होता है और उनकी सुबह और शाम जेल में बजने वाले घंटे पर निर्भर होती है. जेलों में बजने वाले घंटों को पचासा का नाम दिया गया है, जिसके बाजते ही जेल के बंदियों के काम की शुरुआत हो जाती है.

जेल के घंटे का है एक अलग महत्त्व

उत्तर प्रदेश की जेलों में अपराध कर अलग-अलग जगह से आने वाले लोगों के लिए जेल का घंटा उनके जीवन में अहम हिस्सा है. प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में बंद कैदियों के दिन की शुरुआत घंटा बजने से ही होती हो. जेल में कैदियों के लिए घंटा बजना सुबह की शुरुआत की निशानी है. खाने से लेकर सोने तक का समय घंटा के बजने से ही तय होता है.

जेल में सिपाहियों की ड्यूटी के लिए भी घड़ी नहीं होती है. नैनी जेल में सुरक्षा के चलते परिसर में केवल दो घड़ियां लगाई गई हैं. नैनी सेंट्रल जेल अधीक्षक डॉ. पीएन पांडेय ने बताया, “जेल में बजने वाला घंटा घड़ी के तर्ज पर बजाया जाता है.”

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प्रयागराज नैनी सेंट्रल जेल में करीब चार हजार से अधिक बंदी बंद हैं. प्रदेश की हर जेल में हर बीतते घंटे के बाद एक घंटा बजाया जाता है. बंदियों की रक्षा करने वाले रक्षक भी अपनी ड्यूटी घंटी के मुताबिक ही करते हैं. बंदी रक्षक ब्रिटिश काल से ही चार घंटे की ड्यूटी करते हैं, क्योंकि इन्हें मूवमेंट करना होता है. ये बैठ या खड़े नहीं हो सकते. पहला पचासा सुबह 5:30 बजे लगता है, जिसके बाद बैरक को खोला जाता है.

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जेल में क्या है तिकड़ी का मतलब?

बंदी खाने पीने के बाद अपने-अपने काम मे लग जाते हैं. दूसरी घंटी को तिकड़ी कहते हैं, जो सुबह 7 बजे लगाई जाती है. इस घंटी का मतलब होता है कि जेल में सब ठीक है. 11 बजे तीसरी बार घंटी लगती है, जिसे पचासा कहते हैं. इसमे बंदियों को आराम करने के लिए एक घंटा मिलता है. एक बजे फिर से पचासा लगता है, तो बंदी अपने काम में फिर लग जाते हैं.

जेल में काम करने वाले बंदी बताते हैं कि शाम के पचासा लगने के बाद आदमी के साथ साथ जानवर भी काम नहीं करते. उन्होंने बताया कि वे अपनी घंटी से जेल गेट पर जाकर घंटी हिला कर जेल का दरवाजा खुलवाते है और भोजन करने के बाद गिनती होते ही आराम करने सोने के लिए चले जाते हैं.

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क्या है जेल में लगने वाली पगली घंटी?

आम घंटियों के अलावा यहां एक ऐसी घंटी भी है, जिसके बजते ही न सिर्फ अपराधियों के साथ विचाराधीन कैदियों के भी हाथ पांव फूल जाते हैं. दरअसल जेल परिसर में अगर कोई भी अनहोनी होती है तो ‘पगली’ शब्द की घंटी को लगातार 10 मिनट तक बजाया जाता है. अगर जेल में किसी की मौत, दो गुटों में संघर्ष या कोई कैदी जेल से भाग जाए तब यह घंटी बजाई जाती है. इससे जेल के सभी कर्मचारी अलर्ट हो जाते हैं.

जेल अधीक्षक पीएन पांडे के मुताबिक, पगली घंटी के साथ अब अलार्म भी बजाया जाता है.

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