जेल में लगने वाली पगली घंटी, पचासा की कहानी, घड़ी की जगह इससे तय होता है कैदियों का रुटीन
बदलते वक्त के साथ लोगों का समय देखने का अंदाज भी बदल गया. घंटी की आवाज से सुनने का और उठने का दौर अब बदल…
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बदलते वक्त के साथ लोगों का समय देखने का अंदाज भी बदल गया. घंटी की आवाज से सुनने का और उठने का दौर अब बदल गया है. अब लोग घर में घड़ी के अलार्म से उठते हैं और समय देखकर ऑफिस जाते हैं. क्योंकि घर में लोगों के पास हर वक्त घड़ी मौजूद होती है, इसलिए समय का पालन करना आसान होता है. मगर क्या आपको पता है कि उत्तर प्रदेश की जेलों में रहने वाले बंदियों के लिए समय का पता लगाना बेहद मुश्किल होता है और उनकी सुबह और शाम जेल में बजने वाले घंटे पर निर्भर होती है. जेलों में बजने वाले घंटों को पचासा का नाम दिया गया है, जिसके बाजते ही जेल के बंदियों के काम की शुरुआत हो जाती है.









