UP की जेलों में महिला कैदी और उनके बच्चों का हाल कैसा? वर्तिका नन्दा की रिसर्च ने दिखाई असल तस्वीर
वर्तिका नन्दा के शोध ने उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद महिला कैदियों और उनके बच्चों की स्थिति को उजागर किया है. इस खबर में जानिए उनके जीवन की कठिनाइयों और जेल प्रशासन द्वारा किए जा रहे प्रयासों के बारे में.
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UP News: उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह और पुलिस महानिदेशक (जेल प्रशासन और सुधार सेवाएं) पीवी राम शास्त्री ने शुक्रवार को लखनऊ में एक व्यापक शोध को जारी किया. विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के संदर्भ में 'भारतीय जेलों में महिला कैदियों और उनके बच्चों की स्थिति व उनकी संचार आवश्कताएं' नामक शीर्षक पर यह शोध प्रसिद्ध जेल सुधारक, मीडिया शिक्षिका और तिनका तिनका फाउंडेशन की अध्यक्ष डॉ. वर्तिका नन्दा ने किया है. यह अध्ययन भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) के तहत किया है.
कार्यक्रम के दौरान मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने इन सिफारिशों को अपनाने के महत्व पर प्रकाश डाला. वहीं, पीवी राम शास्त्री ने महिला कैदियों और उनके बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए चल रही पहलों पर जोर दिया, जिनमें बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा कार्यक्रम और कौशल प्रशिक्षण शामिल हैं.
इस अध्ययन का उद्देश्य उत्तर प्रदेश की जेलों में महिला और बच्चों की संचार आवश्यकताओं और उनके जीवन की स्थिति को समझना था. इसमें उनकी संपूर्ण भलाई को बेहतर बनाने के सुझाव भी दिए गए हैं. ICSSR द्वारा इस अध्ययन को 'उत्कृष्ट' का दर्जा दिया गया है. इसके निष्कर्ष और सिफारिशें आने वाली नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं.
2019 से 2020 तक चला शोध
- अवधि और दायरा: यह अध्ययन मार्च 2019 से 2020 तक एक वर्ष तक चला और इसमें महामारी के दौरान कैदियों के सामने आने वाली संचार चुनौतियों को भी शामिल किया गया.
- चयनित जेलें: उत्तर प्रदेश की छह प्रमुख जेलों को इस अध्ययन के लिए चुना गया. इनमें जिला जेल, आगरा (मुख्य केंद्र), नारी बंदी निकेतन (लखनऊ), जिला जेल, गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर, बांदा और केंद्रीय जेल नैनी (प्रयागराज) शामिल हैं.
- व्यापक दृष्टिकोण: यह अध्ययन मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश पर केंद्रित था, लेकिन इसमें अन्य राज्यों, जैसे दिल्ली की तिहाड़ जेल, की स्थितियों के साथ तुलनात्मक विश्लेषण भी शामिल किया गया है.
जेलों में महिलाओं और बच्चों की स्थिति कैसी है?
- जेल के अंदर एक और जेल: अध्ययन से पता चला है कि महिला कैदी पूरी तरह से अलग-थलग क्षेत्रों में रहती हैं. यहां उनकी आवश्यकताओं की आमतौर पर अनदेखी की जाती है. जेल का वातावरण पुरुषों के लिए डिजाइन किया गया है, जिसके कारण महिला, बच्चे और ट्रांसजेंडर कैदियों को स्वास्थ्य सेवाओं, संचार सुविधाओं और व्यावसायिक प्रशिक्षण में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
- संचार सुविधाओं की कमी: महिला कैदियों को संचार में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है, विशेषकर COVID-19 महामारी के दौरान जब मुलाकातें बंद कर दी गईं. हालांकि मॉडल जेल मैनुअल में जेल रेडियो का प्रावधान किया गया है, लेकिन उत्तर प्रदेश की कई जेलों में यह सुविधा या तो मौजूद नहीं है या नियमित रूप से संचालित नहीं की जाती.
- बच्चों की उपेक्षा: जेल में रहने वाले बच्चों को शिक्षा, मनोरंजन और व्यक्तिगत विकास के पर्याप्त अवसर नहीं मिलते. इंटरनेट की अनुपलब्धता और कंप्यूटर प्रशिक्षण में अनियमितता उनके लिए स्थिति को और भी बदतर बना देती है.
शोध के बीच आगरा जेल में शुरू हुआ रेडियो
- आगरा में जेल रेडियो का शुभारंभ: अध्ययन के दौरान, जिला जेल आगरा में एक जेल रेडियो स्टेशन शुरू किया गया, जिसे पूरी तरह से कैदियों द्वारा संचालित किया गया. इस पहल में पहली महिला रेडियो जॉकी तुहिना शामिल थी, जिसने संचार की खाई को पाटने और कैदियों के मनोबल को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस रेडियो स्टेशन की सफलता ने हरियाणा की 10 जेलों में भी ऐसे ही प्रोजेक्ट शुरू करने की प्रेरणा दी.
- टेलीफोन सुविधाओं का विस्तार: महामारी के दौरान बेहतर संचार की जरूरत को पहचानते हुए, अध्ययन के सुझावों के आधार पर विभिन्न जेलों में टेलीफोन की सुविधाएँ उपलब्ध कराई गईं, जिससे कैदी अपने परिवारों और बाहरी दुनिया के संपर्क में बने रह सकें.
- कौशल विकास और पुनर्वास: अध्ययन ने कैदियों में कौशल की कमी की पहचान की और ऐसे कार्यक्रमों की शुरुआत की, जिनसे न केवल व्यावसायिक प्रशिक्षण मिला बल्कि उनके व्यक्तिगत विकास को भी बढ़ावा मिला.
जानें शोध में कौन-कौनसी की गईं सिफारिशें?
अध्ययन ने महिला और बच्चों की जेल जीवन को सुधारने के लिए कई महत्वपूर्ण सिफारिशें दी हैं:
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- बच्चों के लिए अलग आवास: बच्चों को अन्य कैदियों के नकारात्मक प्रभाव से बचाने के लिए उनकी आवासीय व्यवस्था उनकी माताओं के आवास के निकट होनी चाहिए.
- संचार पहुंच में वृद्धि: जेल में रहने वाले बच्चों को टेलीफोन का उपयोग और डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों की नियमित पहुंच होनी चाहिए.
- जेल रेडियो का संस्थानीकरण: गृह मंत्रालय को एक नीति निर्देश जारी करना चाहिए ताकि सभी राज्य जेल मैनुअल में जेल रेडियो को शामिल किया जा सके. यह एक बेहतरीन अभ्यास के रूप में माना जाना चाहिए और इसे 'Prison Statistics India' में जोड़ा जाना चाहिए.
- भागीदारी को प्रोत्साहन: जेल रेडियो संचालन में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले कैदियों को विशेष रियायतें दी जानी चाहिए.
यह शोध महिलाओं और बच्चों के सामने आने वाली चुनौतियों को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. इन सिफारिशों को लागू करके, उत्तर प्रदेश जेल सुधार में नए मानक स्थापित कर सकता है, जिससे इन हाशिए पर रहने वाले समूहों को उनकी आवश्यक देखभाल, संचार पहुंच और पुनर्वास के अवसर मिल सकें.
कौन हैं डॉ. वर्तिका नन्दा?
डॉ. वर्तिका नन्दा एक प्रसिद्ध जेल सुधारक और मीडिया शिक्षिका हैं, जिन्होंने इस शोध का नेतृत्व किया. वे Tinka Tinka Foundation की संस्थापक हैं, जो जेल सुधार के विभिन्न पहलुओं पर काम करती है. 'तिनका तिनका' ने कई राज्यों में जेल रेडियो की शुरुआत की है. डॉ. वर्तिका नन्दा के काम को व्यापक रूप से सराहा गया है, जिसके लिए उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा स्त्री शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. डॉ. नन्दा का नाम Limca Book of Records में भी दो बार दर्ज किया गया है.
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