प्रयागराज में यूपी सरकार के बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का हंटर! जिनके घर गिराए उनको देना होगा इतना मुआवजा
SC on Bulldozer Action in Prayagraj: प्रयागराज में एक वकील, एक प्रोफेसर और तीन महिला याचिकाकर्ताओं के घरों को 2021 में बुलडोजर से ध्वस्त करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बयान दिया है. जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
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SC on Bulldozer Action in Prayagraj: प्रयागराज में एक वकील, एक प्रोफेसर और तीन महिला याचिकाकर्ताओं के घरों को 2021 में बुलडोजर से ध्वस्त करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी प्रतिक्रिया दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि घर गिराने की प्रक्रिया असंवैधानिक थी. कोर्ट के बयान के अनुसार, घर ध्वस्त करने की प्राधिकरण की ये मनमानी प्रक्रिया पनाह लेने के नागरिक अधिकार का असंवेदनशील तरीके से हनन भी है.
कोर्ट ने कहा कि 'यह हमारी अंतरात्मा को झकझोरता है. राइट टू शेल्टर नाम की भी कोई चीज होती है. इस सिलसिले में नोटिस और अन्य समुचित प्रक्रिया नाम की भी कोई चीज होती है.' सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण को आदेश दिया है कि पांचों पीड़ितों को 10-10 लाख रुपये हर्जाना का भुगतान करे.
इसी मामले में सुनवाई के दौरान जस्टिस उज्जल भुइयां ने यूपी के अंबेडकर नगर में 24 मार्च को हुई घटना का जिक्र करते हुए कहा कि अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान एकतरफ झोपड़ियों पर बुलडोजर चलाया जा रहा था तो दूसरी तरफ 8 साल की एक बच्ची अपनी किताबें लेकर भाग रही थी. इस तस्वीर ने सबको हैरान कर दिया. ये दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है.
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वहीं, याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उनको एक्शन से पहले कोई नोटिस नहीं मिला. यहां तक कि चौबीस घंटे पहले भी तो नोटिस भेजना चाहिए.
याचिकाकर्ताओं के मुताबिक, साल 2021 में 1 मार्च को उन्हें नोटिस जारी किया गया था. लेकिन उन्हें 6 मार्च को नोटिस मिला. फिर अगले ही दिन 7 मार्च को मकानों पर बुलडोजर एक्शन किया गया. अधिवक्ता जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद और अन्य लोगों की याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई की जिनके ध्वस्त कर दिए गए थे. याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि प्रशासन और शासन को ये लगा कि ये संपत्ति गैंगस्टर और राजनीतिक पार्टी के नेता अतीक अहमद की है.
इन सभी लोगों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में फरियाद की थी. लेकिन हाईकोर्ट ने घर गिराए जाने की कार्रवाई को चुनौती देने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी. हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने राज्य सरकार की कार्रवाई का बचाव करते हुए नोटिस देने में पर्याप्त उचित प्रक्रिया का पालन करने का आश्वासन दिया. उन्होंने बड़े पैमाने पर अवैध कब्जों की ओर इशारा करते हुए कहा कि राज्य सरकार के लिए अनधिकृत कब्जा छुड़ाना और इसे रोकना मुश्किल है.