जेल में दिल का दौरा पड़ने से मुख्तार अंसारी की मौत, कभी सलाखों के पीछे रहता था ऐसा जलवा
माफिया से नेता बने मुख्तार अंसारी की गुरुवार को बांदा मेडिकल कॉलेज में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. तबीयत बिगड़ने के बाद अंसारी को जिला जेल से अस्पताल लाया गया था.
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Mukhtar Ansari Death News: माफिया से नेता बने मुख्तार अंसारी की गुरुवार को बांदा मेडिकल कॉलेज में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. तबीयत बिगड़ने के बाद अंसारी को जिला जेल से अस्पताल लाया गया था. मुख्तार अंसारी की मौत के बाद बांदा मेडिकल कॉलेज से इसकी आधिकारिक जानकारी जारी की गई है. इसमें लिखा गया है कि मुख्तार को मेडिकल कॉलेज के आकस्मिक विभाग में उल्टी की शिकायत एवं बेहोशी की हालत में लाया गया. मगर भरसक प्रयासों के बावजूद कार्डिएक अरेस्ट के कारण उसकी मौत हो गई. बता दें कि भले ही आज मुख्तार इस दुनिया में नहीं है. मगर एक समय ऐसा था जब माफिया का सलाखों के पीछे जलवा हुआ करता था.
उत्तर प्रदेश में जब कभी भी बाहुबली नेताओं की सूची बनेगी तो वह माफिया मुख्तार अंसारी के नाम के बिना अधूरी ही रहेगी. एक समय ऐसा था जब मुख्तार की पूर्वांचल में तूती बोलती थी. वह आसानी से कानून व्यवस्था को अपने इशारों पर नचाता था. आज जब मुख्तार सुर्खियों में है, तो जानिए वो किस्से जब माफिया का पूर्वांचल में जलवा रहता था.
पहले जानिए मुख्तार के बारे में
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गाजीपुर के ही युसुफपुर-मुहम्मदाबाद में 1963 में मुख्तार अंसारी का जन्म हुआ. मुख्तार के दादा ने आजादी के आंदोलन में भाग लिया था. मुहम्मदाबाद स्थित मुख्तार के घर को ‘फाटक’ के नाम से जाना जाता है. एक समय यहां लोग अपनी समस्याओं का समाधान कराने आते थे. मुख्तार अंसारी के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को 1947 की लड़ाई में शहादत के लिए महावीर चक्र से नवाज़ा गया था. ग़ाज़ीपुर में साफ़-सुथरी छवि रखने वाले और कम्युनिस्ट बैकग्राउंड से आने वाले मुख़्तार के पिता सुभानउल्ला अंसारी स्थानीय राजनीति में सक्रिय थे. भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी रिश्ते में मुख्तार अंसारी के चाचा हैं.
मुख्तार की सभी गाड़ियों का नंबर होता था 786 पर खत्म
एक समय वो था जब माफिया मुख्तार का कारवां निकलता था, तब लाइन से 20-25 गाड़ियां गुजरती थीं. सारी गाड़ियों के नंबर 786 से खत्म होते थे. तब किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि पूरे शहर का भारी ट्रैफिक 2 मिनट भी मुख्तार को रोक सके.
मुख्तार का ड्राइवर बनना नहीं था आसान
लोग तो यह भी बताते हैं कि मुख्तार किस गाड़ी में बैठता इसका अंदाजा लगाना मुश्किल होता था. मुख्तार और उसके लोगों को करीब से जानने वाले बताते हैं कि मुख्तार की गाड़ी या उसके काफिले की गाड़ी का ड्राइवर बनना आसान नहीं था. ड्राइवर वही बन सकता था जो दुश्मनों को दूर-दूर से पहचानता हो और किसी भी रास्ते से गाड़ी निकालने में एक्सपर्ट हो.
इंटरव्यू देते वक्त बंदूक से खेलने लगता था मुख्तार
कुछ समय पहले तक मुख्तार का इंटरव्यू लेने के लिए पत्रकार लाइन लगाए खड़े रहते थे. तब माफिया मुख्तार सुनहरे फ्रेम का चश्मा लगाए मीडिया के सामने आता था. इंटरव्यू के दौरान अचानक जेब से बंदूकें निकाल उनसे खेलना शुरू कर देता था. बताता था कि उसे सिर्फ ‘टॉप’ क्वॉलिटी की चीजें पसंद हैं. मुख्तार के अनुसार उसे रिवॉल्वर 957 मैग्नम और राइफल 975 मैग्नम पसंद हैं.
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गाजीपुर जेल में मिलती थीं मुख्तार को ये सब सुविधाएं
मुख्तार जब गाजीपुर जेल में था तभी एक दिन पुलिस रेड में पता चला कि उसकी जिंदगी बाहर से भी ज्यादा आलीशान और आरामदायक चल रही है. अंदर फ्रिज, टीवी से लेकर खाना बनाने के बर्तन तक मौजूद थे. तब उसे मथुरा के जेल में भेज दिया गया.
जेल में खुदवाया था तालाब
मुख्तार को ताजा मछली खाने का शौक था. ये तब की बात है जब वह जेल में बंद था. ऐसे में अपने शौक को पूरा करने के लिए माफिया ने जेल के भीतर ही तालाब खुदवा लिया था, ताकि उसे ताजा मछली खाने को मिल सकें.
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